सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

सरकार नहीं पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने के लिए एकजुट हों!
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम
-कबीर

पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव के परिणाम आने के बाद एक बार पुनः समाज में बहस पैदा हो गयी। इन विधान सभा चुनाव में तीन बड़े राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़) में जहाँ कांग्रेस ने बहुमत या गठबंधन से सरकार बनायी। वहीं मिजोरम में कांग्रेस की हार हुई और तेलंगाना में टी.आर.एस. (तेलगांना राष्ट्र समिति) दुबारा सत्ता में आ गई। इन चुनाव परिणामों को कांग्रेस की बड़ी जीत कहा जा रहा है। कांग्रेस जीत के बाद फूल कर कुप्पा है तो भाजपा शोक में। ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात करने वाले भाजपा नेताओं को कुछ कह नहीं मिल रहा है। इन चुनाव के बाद 2019 के आम चुनाव में किसकी सरकार की बहस तेजी हो गयी है। गठबंधनों का हिसाब-किताब तेज हो गया है।


मोदी-शाह-योगी की धुंआधार रैलियों के बावजूद मोदी-शाह की जोड़ी यहाँ जीत हासिल ना कर सकी। जैसा की हर बार ही होता है कि जीत का सेहरा मोदी-शाह के सर बंधता हैं और हार का ठीकरा अन्य के। इस बार भी यही हुआ हार के बाद रमन सिंह, शिवराज सिंह आदि हार की जिम्मेदारी ले रहे हैं। भाजपा-संघ के नेता लगातार कह रहे हैं कि चुनावी परिणामों को मोदी के काम से जोड़कर ना देखा जाए। कुल मिलाकर इन विधान सभा चुनाव परिणाम से भाजपा खेमे में खासी निराशा है। और 2019 के आम चुनावों के लिए उनकी चिंताए काफी बढ़ गयी हैं। 

कांग्रेस पार्टी इस जीत को राहुल गाँधी के कुशल नेतृत्व के रूप में प्रचारित कर रही है। कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की तारीफें करते नहीं थक रहे हैं साथ ही राहुल गांधी भी अलग ही रंग में नजर आ रहे हैं। वे मोदी के ऊपर अधिक हमलावर हुए और अपनी उदार छवि को प्रोजेक्ट कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि ‘हम भाजपा मुक्त भारत नहीं चाहते’। कांग्रेस पाटी हर स्तर पर भाजपा के उग्र का जवाब नरम से दे रही है। उग्र हिन्दुत्व के स्थान पर नरम हिन्दू, उग्र राजनीति के स्थान पर नरम राजनीति।

भाजपा-संघ द्वारा इन चुनावों में जमकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने की कोशिशें की गयी। राम मंदिर, धर्म सम्मेलन आदि के जरिये अल्पसंख्यकों को डराने और हिन्दुओं का भयदोहन करने की कोशिशें की। साथ ही जातिवाद का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया। योगी तो राम के साथ-साथ इन चुनाव में हनुमान को भी ले आये। इन सबके पीछे जनता के मुद्दे हवा में उड़ा दिये गये। भाजपा-संघ के हिंदुत्व की राजनीति का जवाब कांग्रेस ने मन्दिर-मन्दिर मत्था टेक कर, कैलाश मानसरोवर यात्रा कर दिया। राजस्थान में तो राहुल गाँधी अपना गोत्र बताकर कुल ‘‘श्रेष्ठ ब्राहमण’’ साबित करने तक से नहीं चूके। मध्यम मार्गी कांग्रेस पार्टी इससे अतिरिक्त और कर भी क्या सकती है। यह संघ-भाजपा के हिंदुत्ववादी फासीवादी विचारों के खिलाफ संघर्ष की जगह उसी कीचड़ में लोट-पोट करने में अपने को ज्यादा महफूज पाती है। यह सारी स्थिति बता देती है कि किस तरह हिंदुत्ववादी-ब्राह्मणवादी विचार समाज में जड़ जमा चुका है। जो कि संघ-भाजपा के फलने-फूलने के लिए मजबूत जमीन तैयार कर देता है। हिन्दू फासीवाद के लिए वैचारिक माहौल तैयार कर देता है। आज कोई भी शासक वर्गीय पार्टी इस वैचारिक जमीन पर हमला करने को तैयार नहीं हैं। इसलिए कांग्रेस की जीत को भाजपा-संघ के हिन्दू फासीवाद के हार के तौर पर देखना बेहद खतरनाक होगा। वोट प्रतिशत के हिसाब से भी भाजपा की स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है। राजस्थान में भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई खास गिरावट नहीं आयी और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत तो भाजपा को 41 प्रतिशत वोट मिले।

चुनाव जीतते ही कांग्रेस सरकार ने लोक लुभावन कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। जिसमें किसानों की कर्जमाफी, आशा वर्करों के मानदेय में वृद्धि आदि। जाहिर है कांग्रेस सरकार की नजर 2019 के लोक सभा चुनाव में है। इस जीत से उसकी उम्मीदें और बढ़ गयी हैं। लोक लुभावन कदम तो उठाये जा रहे हैं किन्तु किसानों, आषा वर्कर सहित सभी मेहनतकशों की बदहाल हालात के लिए जिम्मेदार पूंजीवादी नीतियों पर कोई सवाल नहीं उठाया जा रहा है। अगर सरकार बनने के बाद यही नीतियां जारी रही, जो कि रहेगी ही, तो मेहनतकशों के जीवन में कोई मूलभूत परिवर्तन संभव नहीं है। कांग्रेस की पूंजीपरस्त नीतियों को  भाजपा ने आगे बढ़ाया और भाजपा की पूंजीपरस्त नीतियों को अब कांग्रेस आगे बढ़ायेगी।

भाजपा-संघ के बढ़ते फासीवाद से वही लोग लड़ सकते हैं जो हर चुनाव की तरह ही इस चुनाव में भी हासिये पर रहे, ठगे गये। वे हैं देश के मेहनतकश और युवा। पूरे चुनाव में धर्म, मन्दिर, शराब, पैसा, नेताओं की नुक्ताचीनी आदि चलता रहा। बेरोजगारों को रोजगार, किसानों की दुर्दशा, मज़दूरों के हालात, महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों का दमन-उत्पीड़न प्रसंगवश ही नेताओं की जुबान पर आते हैं। और जब आते हैं तो उनके साथ आता है एक झूठा वादा। हर बार की तरह ही इस झूठे वादे की उम्र बहुत थोड़ी होगी। जल्द ही राजनेता अपने द्वारा किये वादे भूल जाएंगे। जनता पहले के ही समान अपने को ठगा पायेगी।

          छल, प्रपंच, झूठ से भरे इस चुनावी खेल को पूंजीवाद किसी महान कार्य की संज्ञा देता है और मेहनतकशों को लूटता-खसोटता है। अपनी इसी तानाशाही को छिपाने के लिए वह लोकतंत्र, जनवाद की दुहाई देता है। देश के युवाओं, मेहनतकशों, हर शोषित-उत्पीड़ित जन को इस तानाशाही के खिलाफ एक होना चाहिए। सरकार नहीं पूंजीवादी व्यवस्था बदलने के लिए संघर्ष करना चाहिए।

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