सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

वर्ष 2018 में उत्तराखण्ड के औद्योगिक केन्द्रों में मजदूर संघर्ष
-कैलाश

विगत वर्ष 2018 में उत्तराखण्ड के औद्योगिक केन्द्रों में मजदूरों ने शानदार संघर्ष किये। मालिकों, सरकार, व प्रशासन के गठजोड़ के समक्ष मजबूत चुनौति प्रस्तुत की। महिला मजदूरों व घरेलू महिलाओं ने इन संघर्षो में शानदार भूमिका निभाई व अग्रणी मोर्चे पर शामिल रहीं। महिला मजदूरों व मजदूरों के परिवार की महिलाओं की गूंज पूरे उत्तराखण्ड समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी चर्चा का विषय रहा। महिला शक्ति की मजदूर आन्दोलन में सशक्त व निर्णायक भूमिका से जहां एक ओर मालिकों, प्रशासन व सरकार के हाथ पांव फूले वहीं व्यापक जनसमुदाय ने इसका स्वागत किया, सम्मान दिया। यह भविष्य में महिला मजदूरों व मजदूरों की जीवनसंगिनियों की मजदूर आन्दोलन में निभायी जाने वाली निर्णायक भूमिका को रेखांकित करता है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि मजदूर आन्दोलन व ट्रेड यूनियन संघर्ष में महिला मजदूर अगुवा व नेतृत्वकारी कतारों में (पहले किसी भी समय की तुलना में) शामिल रहेंगी। महिला मजदूरों की इस भूमिका को स्वीकार करना ही होगा।


सिडकुल पन्तनगर, सिडकुल हरिद्वार, सिडकुल सितारगंज में वर्ष 2018 में कई शानदार मजदूर संघर्ष हुए। खासकर सिडकुल पन्तनगर में तो मजदूर संघर्ष का सिलसिला ही लगा रहा जो कि आज भी जारी है। काशीपुर की रिचा कंपनी, रामनगर के हल्दुआ स्थित डेल्टा कम्पनी ,इंटरार्क किच्छा, रूड़की स्थित भगवानपुर औद्योगिक केन्द्र व पन्तनगर विश्वविद्यालय में भी मजदूरों ने शानदार संघर्ष किये।

रामनगर के हल्दुआ स्थित डेल्टा कम्पनी के मजदूरों, खासकर महिला मजदूरों, के शानदार संघर्ष का साक्षी वर्ष 2018 रहा। गैरकानूनी मिलबन्दी व छटनी के विरोध में चले इस संघर्ष में महिला मजदूर नेतृत्वकारी भूमिका में रहीं। इस संघर्ष की मुख्य लड़ाकू शक्ति महिलायें रही। भाजपा सरकार व स्थानीय भाजपा विधायक को विधायक के घर एक दिवसीय सामूहिक भूख हड़ताल व दीवाली में काले दिये देकर ललकारा। आचार संहिता के दौरान रिटर्निंग ऑफिसर/एस.डी.एम. के कार्यालय पर सामूहिक धरना व भूख हड़ताल कर प्रशासन को चुनौती दी। अन्ततः उत्तराखण्ड शासन को मालिक की मिलबन्दी की अपील को खारिज करने को बाध्य होना पड़ा। महिला मजदूरों के नेतृत्व में लड़े गये इस संघर्ष का रामनगर की जनता ने स्वागत किया। रामनगर की सामाजिक शक्तियां इस संघर्ष में गोलबन्द हुई। कम्पनी के भीतर कब्जा कर कई दिनों तक मजदूर कम्पनी में बैठे रहे। यह संघर्ष अभी भी जारी है।

इण्टरार्क कम्पनी सिडकुल पन्तनगर व किच्छा के मजदूरों के शानदार व जुझारू संघर्ष ने एक के बाद एक शानदार मिसालें कायम की। 6 माह की लम्बी अवधि तक चले इस संघर्ष में महिलाओं की भूमिका निर्णायक साबित हुई। इस दौरान मजदूरों ने स्टे आर्डर व आचार संहिता तोड़कर 3 बार दोनों कम्पनियों में कब्जा कर मालिक व प्रशासन के होश उडा़ दिये। वही भारी ठंड में महिलायें अपने छोटे-छोटे व दुधमुंहे बच्चों के संग 22 दिन तक कम्पनी गेट पर चूल्हा-चौका छोड़ डटी रहीं। महिलायें मजदूरों संग 18 दिनों तक आमरण अनशन में डटी रहीं। पुलिसिया दमन, मुकदमे व जेल हर प्रकार के हथकंडे अपनाकर सरकार व पुलिस ने मजदूरों, महिलाओं की आवाज कुचलना चाहा। पर महिलायें व मजदूर विचलित हुए बिना समझौता होने तक संघर्ष के मैदान में डटे रहे। इस संघर्ष से पहले तक चूल्हे-चौके तक सिमटी जरीना बेगम, निहारिका सिंह, अखिलेश देवी, सुनीता देवी जैसी ये सैकडो़ं महिलायें आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उत्तराखण्ड व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मजदूर पक्षधर ताकतों व मजदूर विरोधी ताकतों में शायद ही कोई होगा जिसके जेहन में जरीना बेगम, निहारिका सिंह, अखिलेश देवी, सुनीता देवी समेत सैकडा़ें इण्टरार्क की महिलाओं का नाम न हो। संघर्ष के कानूनी व गैरकानूनी रूपों का कुशलता से प्रयोग करना भी इस आन्दोलन की विशेषता रही। चुनाव बहिष्कार, सामूहिक भूख हड़ताल, महापंचायत, कंपनी में कब्जा करना, आमरण अनशन आदि संघर्ष के प्रमुख रूप रहे। संघर्ष के हर रूप में भाजपा सरकार, प्रशासन, श्रम विभाग व मालिकान गठजोड़ को बेपर्दा करना इंटरार्क मजदूरों व महिलाओं के वर्गीय बोध को दिखलाता है।

सिडकुल पन्तनगर में मिण्डा व माइक्रोमैक्स के मजदूरों का भी वर्ष 2018 में संघर्ष जारी रहा। मिण्डा व माइक्रोमैक्स  कम्पनी के मजदूरों के संघर्ष में भी महिला मजदूर अग्रणी कतारों में खड़े हो पुरूष मजदूरों के साथ में बहादुरी से लड़ी और आज भी लड़ रही हैं। इसमें भी महिला मजदूर मुख्य लडा़कू शक्ति साबित हो रही हैं। ये मजदूर ट्रेड यूनियन पंजीकरण, गैरकानूनी गेटबन्दी व छंटनी के खिलाफ लड़ रहे हैं। मिण्डा मजदूर अगस्त 2018 से ही निरन्तर संघर्षरत हैं। 24 दिनां तक चले आमरण अनशन से भी पूंजीपरस्त उत्तराखण्ड भाजपा सरकार व प्रशासन न पसीजा। अन्ततः मिण्डा के आमरण अनशनकारियों  को समझौता हुए बिना अनशन तोड़ना पड़ा। माइक्रोमैक्स के महिला व पुरूष मजदूर साथी भी गैरकानूनी तालाबन्दी व छंटनी के खिलाफ दिन रात भारी ठंड के बावजूद कंपनी गेट पर डटे हैं। 

मिण्डा व माइक्रोमैक्स के मजदूरों की व्यथा पढ़-लिख कर सम्मानजनक रोजगार की आशा लगाये व दिन-रात एक कर पढ़ाई में जुटे छात्रों व नौजवानों के लिए अत्यन्त सबक लेने वाली है। माइक्रोमैक्स में ज्यादातर मजदूर बी0टेक की डिग्री व पालिटैक्निक डिप्लोमा धारी हैं, कई आई.टी.आई. किये हैं। वहीं मिण्डा मजदूरों में से 90 प्रतिशत से अधिक इण्टरमीडिएट अथवा उससे उच्च शिक्षा ग्रहण किये हुए हैं। कैसे राज्य व केन्द्र सरकार नीम ट्रेनिंग, वाई.एस.एफ., फिक्स टर्म व अप्रेन्टिस के नाम पर श्रम कानूनों में बदलाव कर पढ़े-लिखे नौजवानों को पूंजीपतियों का आसान शिकार बना रही है? कैसे सरकारें पढ़े-लिखे नौजवानों का भविष्य तबाह-बर्बाद करने को पूंजीपतियों को लूट की खुली छूट दे रही है? नीम ट्रेनिंग, फिक्स टर्म इम्प्लोयमेन्ट व ठेका प्रथा के संक्रामक कोढ़ के ही शिकार मिण्डा मजदूर बन रहे हैं। सरकारों द्वारा मालिकों को कानूनी व गैरकानूनी रूप से छंटनी व मिलबन्दी आदि सभी प्रकार की छूट दिये जाने से पूरे देश में मजदूर आबादी कराह रही है। माइक्रोमैक्स के मजदूर भी इस त्रासदी के शिकार हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि सरकारों की मजदूर-मेहनतकश विरोधी नीतियों का शिकार आज मिण्डा व माइक्रोमैक्स के मजदूर बन रहे हैं। आने वाले समय में आज के पढ़े-लिखे छात्रों-नौजवानों के इससे भी बुरे दिन आ सकते हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि यथाशीघ्र मजदूरों, किसानों, छात्र-नौजवानों की वर्गीय एकजुटता सरकारों के पूंजीपरस्त रथ को रोककर पलटती नहीं है तो इस देश में तबाही-बर्बादी का ही मंजर होगा। इसका जवाब सरकारों की पूंजीपरस्त नीतियों के खिलाफ व्यापक जनसमुदाय का एकजुट संघर्ष है। इसका मुकम्मल इलाज इंकलाब है। 

सिडकुल पंतनगर में इस दौरान एमिनेन्ट पावर के मजदूरों ने यूनियन मान्यता, स्थायीकरण, गैरकानूनी गेटबंदी के खिलाफ सफल संघर्ष हुए जो जीते गये। वोल्टास कम्पनी के ठेका मजदूर भी अपनी आवाज उठा रहे हैं।

पंतनगर विश्वविद्यालय का ठेका मजदूर भी इस दौरान चुप नहीं बैठा। बीएमएस, सीटू, एटक, इंटक जैसी पूंजीपरस्त ट्रेड यूनियन सेंटरों से जुड़ी व पतित यूनियनों को दरकिनार कर ईएसआईसी, बोनस, स्थायीकरण, पीएफ आदि मांगों को लेकर ठेका मजदूर कल्याण समिति के नेतृत्व में सड़कों से लेकर हाईकोर्ट तक संघर्ष चलाया। इसमें भी महिला मजदूर भारी तादाद में शामिल रहीं। लगभग 700 मजदूरों ने पंतनगर विश्वविद्यालय से लेकर उपश्रमायुक्त कार्यालय रूद्रपुर तक साईकिल रैली निकाली व प्रदर्शन किया। ठेका मजदूरों ने इस प्रदर्शन के दिन सामूहिक रूप से कार्यबहिष्कार कर विश्वविद्यालय प्रशासन, जिला प्रशासन, श्रम विभाग व सरकार को अपनी ताकत का एहसास कराया। इस प्रदर्शन में सैकड़ों की संख्या में महिला मजदूरों ने शामिल होकर इस बात का एहसास कराया कि अब जुल्म और शोषण के खिलाफ होने वाले संघर्ष में महिला मजदूर कमर कस लोहा लेने को तैयार व तत्पर हैं। 

सिडकुल सितारगंज की गुजरात अंबुजा के मजदूरों, महिलाओं व छोटे-छोटे बच्चों संग किया गया शानदार संघर्ष को भला कौन भुला सकता है। ट्रेड यूनियन संघर्ष से एक तरह से कटे हुए इस औद्योगिक केन्द्र में अंबुजा मजदूरों का संघर्ष यादगार रहा। यह संघर्ष ट्रेड यूनियन अधिकारों, यूनियन उपाध्यक्ष की कार्यबहाली, वेतन समझौते की मांग को लेकर लड़ा गया। सामूहिक कार्यबहिष्कार, धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि इस संघर्ष के प्रमुख रूप रहे। महिलाओं व बच्चों की भूमिका इस आंदोलन में भी निर्णायक रही। महिला शक्ति का प्रबंधकों पर ऐसा खौफ बना कि उसे यूनियन सदस्यों के उत्पीड़न, यूनियन तोड़ने की नीति से पीछे हटना पड़ा। यूनियन उपाध्यक्ष की कार्यबहाली करनी पड़ी। सैकड़ों बच्चों ने सितारगंज शहर में मार्मिक जुलूस निकालकर सितारगंज की जनता को झकझोरने व मालिक, प्रशासन, सरकार को डराने का काम किया। मजदूर आज भी यूनियन पंजीकरण को संघर्षरत हैं। ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार के विरूद्ध हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है। 

काशीपुर स्थित रिचा कंपनी के मजदूरों को भी उनके संघर्षों के कारण याद किया जाता है, अत्यंत सम्मान प्राप्त है। इस संघर्ष में भी महिला शक्ति की भूमिका निर्णायक रही थी। साल के अंत में मालिक कंपनी बंद करने की फिराक में है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) चण्डीगढ़ में कंपनी द्वारा सरकारी व निजी क्षेत्र के लिए कम्पनी ऋण पर सुनवायी चल रही है। पता चला है कि मालिक द्वारा लगभग 470 करोड़ का ऋण विभिन्न वित्तीय संस्थानों से लिया हुआ है। रिचा यूनियन इसके खिलाफ कमर कस रही है। रिचा प्रकरण भी आज का काला सच है। कैसे मालिक सरकारों व प्रशासन की मेहरबानी से अरबों का कर्ज लेकर डकार जाते हैं और भरपाई मजदूरों से करते हैं। मजदूरों को बेरोजगार कर सड़क पर पटक कर भविष्य बर्बाद कर देते हैं। यही पूरे भारत की सच्चाई है। 

वर्ष 2018 में हरिद्वार सिडकुल स्थित आईटीसी कंपनी के 5 प्लाटों के 1200 स्थाई मजदूरों का वेतन समझौते को लेकर 14 दिन की हड़ताल चली। मजदूरों ने जुझारूपन दिखाते हुए 14 दिनों तब कंपनी में कब्जा जमाये रखा। प्रशासन द्वारा स्टे आर्डर का हवाला देकर मजदूरों को डराने का काम किया। अंततः यूनियन नेतृत्व दबाव में आ गया। कंपनी से मजदूरों को बाहर कर दिया गया। बिना समझौते के हड़ताल समाप्त हो गयी। मामला लेबर कोर्ट में चल रहा है। इस हड़ताल की गूंज भी उत्तराखंड व उत्तर भारत में महसूस की गयी। हरिद्वार सिडकुल में ही शिवम आटो कंपनी के मजदूरों ने भी इस दौरान स्थायी नियुक्ति पत्र आदि मुददों पर कंपनी गेट जाम कर संघर्ष किया। 

रूड़की के भगवानपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित ट्रेडिंग इंजीनियरिंग व यूनिटेक कंपनी के 150 स्थायी व 650 ठेका मजदूरों ने बोनस, नियुक्ति पत्र आदि मांगों को लेकर सफल संघर्ष किया। दिसंबर माह में मालिक द्वारा की गयी गैरकानूनी तालाबंदी को कंपनी के भीतर कब्जा कर विफल किया। जीत के साथ वर्ष 2018 को अलविदा किया। 

इन आंदोलनों के अलावा भी उत्तराखंड के औद्योगिक केन्द्रों में कई छोटे-बडे़ संघर्ष हुए। डेल्टा, इन्टरार्क, गुजरात अंबुजा, पंतनगर विश्वविद्यालय व रिचा के मजदूरों व महिलाओं के शानदार संघर्ष के लिए वर्ष 2018 को याद किया जायेगा। इन कंपनियों में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के दिशा-निर्देशन की भी महती भूमिका रही। मजदूरों द्वारा भगत सिंह के लेखों, उधम सिंह की जीवनी व मकड़ा और मक्खी आदि पुस्तिकाएं छपवाकर व्यापक पैमाने पर वितरण करना, भगत सिंह व उधम सिंह के शहीदी दिवस पर व्यापक कार्यक्रम लेना इन कंपनियों के मजदूरों के वर्गीय बोध का ही परिचायक है। इसी वर्गीय बोध से इन कंपनियों के मजदूरों ने शुरू से ही सरकार, प्रशासन व मालिक के गठजोड़ को लक्षित किया। सरकार को कटघरे में खड़ा किया। हर दमन व जोर-जुल्म का डटकर मुकाबला किया। 

वहीं माइक्रोमैक्स व स्पार्क मिण्डा के मजदूरों ने भी अथक संघर्ष किया। परंतु सत्ताधारी भाजपा व इसके नेताओं, बीएमएस का ये मजदूर एक तरह से पिछलग्गू बने रहे। दोस्त व दुश्मन की सही-सही पहचान न कर पाना, वर्गीय बोध की कमी होने से इन आंदोलनों पर नकारात्मक प्रभाव डाला। इस कारण से भी ये अपने अभीष्ट को नहीं पहुंचे। फिर भी स्पार्क मिण्डा की महिला मजदूरों के लयबद्ध नारों की गूंज संघर्ष भावना व माइक्रोमैक्स के महिला मजदूरों की मुखरता व साहस लंबे समय तक याद की जाती रहेंगी। 

वर्ष 2018 में उपरोक्त जुझारू आंदोलन यह दिखाते हैं कि उत्तराखण्ड के औद्योगिक केन्द्रों के मजदूर अब परिपक्व हो रहे हैं। वो साहस का परिचय देकर संघर्ष के गैर कानूनी रूपों को भी अपना रहे हैं। धैर्यपूर्वक संघर्ष के कानूनी रूपों का प्रयोग कर लंबा संघर्ष चलाने में भी कौशल हासिल कर रहे हैं। ये मजदूर आंदोलन को व्यापक जन आंदोलन में तब्दील करने की जरूरत को महसूस कर एक-एक महिला व एक-एक बच्चे की महत्ता को समझकर शामिल कर रहे हैं। आज जब पूंजी पहले के मुकाबले ज्यादा संगठित है, सरकारें निरंकुश हो मजदूर संघर्षों को कुचल रही हैं। ऐसे में दोस्त व दुश्मनों की पहचान कर वर्गीय एकजुटता कायम कर सभी मजदूर आंदोलनों को एक कड़ी में पिरोने की जरूरत आज किसी भी दौर की तुलना में ज्यादा है। आज जब फासिस्ट संघी ताकतें व सरकारें मजदूरों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का षडयंत्र रच रही हैं। ऐसे में इसका जवाब शहीदे आजम भगत सिंह की क्रांतिकारी विरासत है। इसका जवाब मजदूरों की विचारधारा मार्क्सवाद है। इसका जवाब इंकलाब है। 

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