बुधवार, 21 नवंबर 2018

एच.एन.एल.यू. के छात्र-छात्राओं का बहादुराना संघर्ष जीत के साथ समाप्त
-दीपक


        इस वर्ष कैम्पसों के भीतर छात्राओं के हाॅस्टलों व लाइब्रेरी की टाइमिंग में गैरबराबरी के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन देखने को मिले। इन सभी आंदोलनों में हिदायतुल्ला नेशनल लाॅ यूनिवर्सिटी (एचएनएलयू) के छात्र-छात्राओं का संघर्ष एक विशेष स्थान रखता है। कैम्पसों में छात्राओं की गैरबराबरी के खिलाफ शुरू हुआ ये आंदोलन अन्ततः अपनी सारी मांगें मनवाने और वी.सी. के इस्तीफे के साथ खत्म हुआ। एचएनएलयू, रायपुर (छत्तीसगढ़) में स्थित एक लाॅ यूनिवर्सिटी है। जहां 27 अगस्त की रात से छात्र-छात्राओं का आंदोलन तब शुरू हुआ जब छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने वी.सी. सुखपाल सिंह के कार्यकाल बढ़ाने के संस्थान के फैसले पर रोक लगा दी। सुखपाल सिंह अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके थे और इसके बाद यूनिवर्सिटी के कानूनों में बदलाव करवाकर उन्होनें अपना कार्यकाल बढ़वा लिया था। 27 अगस्त को हाइकोर्ट का फैसला आने के बाद इसी रात को कैम्पस में छात्राओं द्वारा हाॅस्टल और लाइब्रेरी टाइमिंग को बढ़ाने और छात्राओं का उत्पीड़न बंद करने की मांग के साथ आंदोलन की शुरुआत कर दी गयी। जिसमें बाद में छात्र भी शामिल हो गए और आंदोलन बढ़ने के साथ इसमें कई मांगें जुड़ती चली गयीं।
 
        एचएनएलयू, छत्तीसगढ़ और केन्द्र सरकार द्वारा सहायता प्राप्त लाॅ कालेज है, जहां लगभग 1000 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। सभी के लिए कैम्पस में ही हाॅस्टल और लाइब्रेरी की सुविधा उपलब्ध है। परंतु हाॅस्टल और लाइब्रेरी दोनों की ही टाइमिंग छात्र-छात्राओं के प्रतिकूल थी। लाइब्रेरी साप्ताहिक दिनों में 10 बजे तक तो शनिवार को 5 बजे तक ही खोली जाती थी। छुट्टियों के दिनों में लाइब्रेरी को बंद रखा जाता था। छात्र-छात्राओं को इसके चलते बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।

        इसी प्रकार हाॅस्टल के गेट, छात्र-छात्राओं दोनों के लिए 10ः30 बजे बंद कर दिए जाते थे। इसमें भी छात्राओं पर ये नियम बहुत सख्ती से लागू किया जाता था। थोड़ा सा भी लेट होने पर प्रशासन द्वारा सीधे अभिभावकों को शिकायत कर दी जाती थी। आंदोलन शुरू होने के एक सप्ताह पहले सभी छात्राओं से कोरे कागज पर ये कहते हुए हस्ताक्षर करवाए गए कि हाॅस्टल प्रवेश के रजिस्टर से हस्ताक्षरों का मिलान किया जाएगा। यदि किसी ने कोरे कागज पर हस्ताक्षर नहीं किए अथवा उसके हस्ताक्षर रजिस्टर से सत्यापित नहीं हुए तो उसे अनुपस्थित माना जाएगा। यदि कोई छात्र-छात्रा तीन दिन तक लगातार अनुपस्थित रहता था तो उस पर जुर्माना लगाया जाता था। यही नहीं प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने वाले छात्रों को प्राॅक्टोरियल नोटिस भेज दिए जाते थे। जिसमें छात्रों को बर्खास्त तक किया जा सकता था। यदि किसी छात्र को कभी भी नोटिस मिला हो तो उसे स्वर्ण पदक पाने से वंचित कर दिया जाता था। भले ही उसके कितने भी अंक आए हों। एक तरह से कैम्पस में आवाज उठाना गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। अध्यापकों को ही हाॅस्टल वार्डन की जिम्मेदारीदी गयी थी। हाॅस्टल में वार्डन से किसी बात पर कहासुनी हो जाने पर उसका इस्तेमाल अध्यापकों द्वारा क्लासरूम में किया जाता था। कई बार इस बिनाह पर अध्यापकों द्वारा छात्रों को कम ग्रेड दिए जाते थे। कैम्पस में शिक्षकों द्वारा छात्राओं पर यौन उत्पीड़न की घटनाएं भी इस आंदोलन की जड़ में थीं।

        जुलाई माह में एक छात्रा द्वारा लिखित रूप से वी.सी. को एक शिक्षक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गयी। जिसमें कहा गया था कि उपरोक्त शिक्षक द्वारा 5 कक्षाओं में उपस्थिति दर्ज करने के एवज में छात्रा से उसके केबिन में डांस करने की मांग की गई थी। पहले भी छात्राएं उक्त शिक्षक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराती रहीं परंतु प्रशासन द्वारा इन पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी। कई बार दोषी व्यक्तियों या उनके साथियों को ही जांच कमेटी का सदस्य बना दिया जाता था। वी.सी. तक शिकायत पहुंचने पर कार्यवाही करने के बजाए उन्होंने आरोपी शिक्षकों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि आगे से वो ऐसा नहीं करेंगे। आंदोलन की शुरुआत होने के अगले दिन, 28 अगस्त को आंदोलनरत छात्राओं के बीच छात्र संघ द्वारा 180 कोरे कागज यह कहते हुए बांटे गए कि वो यौन उत्पीड़न की अपनी शिकायतें इसमें लिख कर दें। उसी समय 78 शिकायतें दर्ज की गयीं। जिसमें से 22 छात्राओं ने नाम सहित शिकायतें दर्ज की थीं। इस प्रकार दोषी शिक्षकों पर उचित कार्यवाही करने की मांग भी इस आंदोलन के केन्द्र में थी।

         इसके अलावा रिसर्च, सेमिनार, मूट कोर्ट (लाॅ छात्रों का एक तरह का आयोजन) आदि के लिए पिछले साल जुलाई में प्रशासन द्वारा छात्रों को नोटिस देते हुए बताया गया कि सरकार द्वारा पैसा न देने के कारण इस संबंध में कोई भी फण्ड प्रशासन द्वारा नहीं दिया जाएगा। लेकिन जनवरी में छात्रों को पता चला कि सरकार द्वारा इस मद में वि.वि. को 60 लाख रूपये पहले ही दे दिए गए हैं। इस प्रकार इस घटना ने दिखाया कि पूरे कैम्पस में वी.सी. के नेतृत्व में भ्रष्टाचार एवं आर्थिक अनियमितताएं अपने चरम पर थीं। जिसका खामियाजा छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा था। इन मांगों के साथ आंदोलन आगे बढ़ता रहा। 27 अगस्त से छात्र लगातार कक्षाओं का बहिष्कार कर रहे थे। छात्रों के आंदोलन के सामने झुकते हुए वी.सी. को जाना पड़ा तथा उनकी जगह 29 अगस्त को आर.एस.शर्मा को वि.वि. का अंतरिम वी.सी. बनाया गया। 29 अगस्त के बाद छात्र कक्षाओं में लौट गए पर उनका धरना जारी रहा। इस बीच पूरे देशभर से छात्रों को व्यापक समर्थन मिल रहा था। कई पुराने छात्र व वर्तमान फैकल्टी सदस्य भी छात्रों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। ऐसे में आंदोलन के सामने झुकते हुए प्रशासन को 4 सितम्बर को छात्रों की सारी मांगे माननी पड़ी। लाइब्रेरी व हाॅस्टल की टाइमिंग को बढ़ाकर सुबह 3 बजे कर दिया गया। यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करने के लिए जांच कमेटी बना दी गयी। मूट कोर्ट आदि के लिए 1 करोड़ का फण्ड प्रशासन द्वारा निर्गत कर दिया गया। अन्ततः इस जीत के साथ छात्रों ने 4 सितम्बर को अपना आंदोलन वापस ले लिया।

        परंतु ये शांति भरे दिन ज्यादा दिन कायम नहीं रहे। नए वी.सी. ने आते ही पिछले कई दस्तावेजों को सार्वजनिक कर दिया, जिसने कैम्पस में अब तक हो रही कई धांधलियों को छात्रों के सामने खोल कर रख दिया। इसी बीच पुराने वी.सी. सुखपाल सिंह भी सुप्रीम कोर्ट से अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ स्टे आर्डर लाकर कैम्पस में पुनः अवतरित हो चुके थे। जिसके बाद आंदोलन का दूसरा चरण शुरू हुआ।

        25 सितम्बर को सुखपाल सिंह के पदग्रहण वाले दिन ही आम सभा (जी.बी.एम.) बुलाई गई। जिसमें वी.सी. सहित कैम्पस के सभी छात्र व फैकल्टी सदस्य मौजूद थे। इसी जी.बी.एम. में छात्र संघ ने वी.सी. से यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर कोई कार्यवाही न करने, कैम्पस में आर्थिक अनियमितताओं को 7 सालों तक जारी रखने सहित छः सूत्री आरोप लगाते हुए जवाब मांगा। इन सभी आरोपों का वी.सी. से कोई भी संतोषप्रद जवाब न मिलने के बाद वहां मौजूद सभी 850 छात्रों ने वी.सी. के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास किया तथा वी.सी. से तत्काल अपना पद छोड़ने की मांग करते हुए धरने की घोषणा कर दी। साथ ही छात्र संघ द्वारा मांग न माने जाने पर 1 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा भी जी.बी.एम. में कर दी गयी। इसके बाद छात्रों का आंदोलन जारी रहा और 1 अक्टूबर को सुबह 8 बजे से 25 छात्रों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। छात्रों के जुझारू तेवरों के आगे अन्ततः वी.सी. को हार माननी पड़ी और भूख हड़ताल के पहले ही दिन, शाम को 6 बजे वी.सी. ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। इस प्रकार आंदोलन का दूसरा चरण भी अपनी मांगे मनवाने में सफल रहा और वी.सी. के इस्तीफे के साथ ही एक बहादुराना संघर्ष समाप्त हुआ।

        यह आंदोलन अपनी खूबियों के कारण वर्षो तक याद रखा जाएगा। जैसा कि हम पहले ही बता आए हैं कि छात्राओं की पहलकदमी पर शुरू हुआ ये आंदोलन कैसे धीरे-धीरे एक व्यापक आंदोलन बन गया। पूरे आंदोलन के दौरान छात्राओं की भूमिका ये बताती है कि छात्राएं किसी भी कीमत पर पिजड़ों में रहने को तैयार नहीं हैं। पूरे देश की छात्राओं को ये आंदोलन एक राह दिखाता है। पूरे आंदोलन का नेतृत्व छात्र संघ द्वारा पूरे सुनियोजित तरीके से किया गया। हर एक छात्र की भूमिका बनाने, कैम्पस के बाहर पुराने छात्रों व अन्य लाॅ वि.वि. से समर्थन हासिल करने, प्रचार करने, मामले को और अधिक गहराई से समझने जिससे वी.सी. के खिलाफ अपने पक्ष को मजबूती से रखा जा सके आदि-आदि कामों के लिए छात्रों ने अपने बीच से ही कमेटियों का निर्माण किया था। इन कमेटियों और पूरे छात्रों के सहयोग व समर्पण से ही आंदोलन अपनी परिणती तक पहंुच पाया। इस मामले में भी यह आंदोलन भारत के आने वाले छात्र आंदोलनों को लम्बे समय तक सबक देता रहेगा। अन्त में इस आंदोलन ने साबित किया है कि छात्रों की व्यापक और फौलादी एकता के सामने सभी ताकतों को अन्ततः हार माननी ही पड़ती है। आज सरकारों द्वारा शिक्षा को बर्बाद करने के लिए नित्य जो नीतियां बनाई जा रही हैं, उनके खिलाफ छात्रों को लड़ने के लिए यह आंदोलन उदाहरण का काम करेगा। 

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