गुरुवार, 26 जुलाई 2018

ये बातें गर्व की नहीं हैं 

हमारे देश के अखबारों में रोज ही ऐसी बातें छपती हैं और टीवी व इंटरनेट पर प्रसारित की जाती हैं जिनका मतलब होता है कि एक भारतीय के रूप में हमें उन पर गर्व करना चाहिए। अक्सर ही इन्हें राष्ट्रवाद की उपलब्धियों के रूप में पेश किया जाता है। यह बातें कुछ इस तरह की होती हैं कि रिलायंस इंडस्ट्री का मालिक मुकेश अंबानी चीनी कम्पनी अलीबाबा जैक मा को पछाड़कर एशिया के सबसे बड़े अमीर बने। कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी में से एक है। कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन में मंत्री बना आदमी भारतीय मूल का है आदि। 


और कुछ इस तरह की खबरें भी हैं जो हकीकत से एकदम अलग हैं पर गर्व की घोषणा का आधार बनाती हैं। कि भारत दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। कि भारत की अर्थव्यवस्था फ्रांस को पछाड़कर दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बनी। कि भारत की सेना संख्या बल के हिसाब से दुनिया की दूसरी बड़ी सेना है इत्यादि। 

और इस तरह की बातों को तब से एक नई बाढ़ आई हुई है जब से नरेंद्र मोदी की केंद्र में सरकार बनी है। कोरी गप्प इतिहास का दर्जा देकर कहा जाता है कि इंटरनेट महाभारत काल से ही भारत में था। कि गणेश के सिर पर हाथी का सिर जोड़ने वाली अद्भुत सर्जरी भारत में की गयी। कि प्राचीन भारत में कई तरह के विमान थे आदि, आदि। 

इसी तरह की बातों की लंबी से लंबी सूची बनाई जा सकती है। उपरोक्त बातों में तीसरी तरह की बातों को खारिज करते हुए कोई कह सकता है कि यह तो गर्व की बात है कि किसी भारतीय अमीर का डंका दुनिया भर में बज रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था ने फ्रांस जैसे देशों को पछाड़ दिया।

हकीकत में इन सब बातों का एक ही सार है कि हम आम भारतीय उन बातों पर गर्व करें जिनका हमारे जीवन से, हमारी समस्याओं से लेना-देना नहीं है। इन बातों के जरिए एक झूठी व आभासी चेतना का निर्माण किया जाता है, जिसे नाम राष्ट्रीय गौरव दिया जाता है।

मुकेश अंबानी एशिया के नहीं दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन जाते तो क्या भारत का नाम दुनिया में सबसे गरीब देशों की सूची से हट जाएगा। मुकेश अंबानी तो अपनी बीवी नीता अंबानी को उसके जन्मदिन पर जेट विमान भेंट करते हैं, क्या इससे हमारी गली, मोहल्ले, शहर, देहात की सड़कें ठीक हो जाएंगी। क्या फ्रांस की अर्थव्यवस्था को पछाड़ने से भारत में गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी समाप्त हो जाएगी। और क्या वह देश जो भारत से आगे हैं यानी संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन जापान, जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन वहां बेरोजगारी, गरीबी, गैरबराबरी, महिला हिंसा, समानता नहीं मौजूद है।

राष्ट्रीय गौरव के नाम पर हमें भारत के प्राकृतिक संपदा, मजदूरों और किसानों सहित आम भारतीयों को लूटने वाले वहशी अमीरजादों पर गर्व करना सिखाने का क्या मतलब है। मुकेश अंबानी, टाटा, अनिल अग्रवाल, सुनील मित्तल आदि ऐसे धनपशु हैं जो भारत को दोनों हाथों से लूट रहे हैं। और इसकी व्यक्तिगत या इनकी कंपनियों की संपत्ति दुनिया के सबसे बड़े लुटेरों से होड़ कर रही है तो किसलिए कर रही है। और उससे भारत के युवा बेरोजगार को क्या मिलने वाला है। 

इसी तरह भारत के इतिहास के बारे में झूठी बातों से एक छात्र को क्या हासिल होगा। हमारे देश के इतिहास में ऐसी कई बातें हैं (जैसे शून्य का आविष्कार) जिससे हम कह सकते हैं कि हमने दुनिया को इससे यह दिया और साथ ही उसी क्षण हमें यह याद रखना होगा कि हमने दुनिया से क्या-क्या लिया। (जैसे यह कागज जिस पर हम पढ़-लिख रहे हैं, यह चीन का अविष्कार था)। ऐसी बातों की भी लंबी सूची बनाई जा सकती है जो प्राचीन से आधुनिक समय तक महान भारतीयों के काम हैं। और ऐसी सूची बनाई जा सकती है कि हम भारतीयों ने दुनिया में क्या-क्या लिया।

मुकेश अंबानी की अमीरी और प्राचीन भारत के बारे में गप्प से जो चीजें हासिल की जाती हैं वह यह कि हम अपनी समस्याओं - गरीबी, बेरोजगारी, गैरबराबरी आदि पर गहराई से विचार न कर सकें। उनके कारणों को न तलाश सकें। और दोस्त-दुश्मन की पहचान न कर सकें। हम पर राष्ट्रीय गौरव का एक नशा सा छाया रहे जो मतिभ्रम दृष्टिभ्रम का शिकार बनाये रखें। हम न तो अतीत के बारे में सही वैज्ञानिक दृष्टि हासिल कर सके न वर्तमान को समझ सके और न भविष्य का निर्माण कर सकें।

राष्ट्रीय गौरव में वीरोचित वृद्धि हो सके इसके लिए देश के भीतर और बाहर निकली दुश्मन भी पैदा किए जाते रहे हैं। और जो दुश्मन हैं उन्हें भारत के महान मित्र के रूप में पेश किया जाता है। पाकिस्तान और चीन को भारत की दुश्मन रूप में तो अमेरिकी व जापानी साम्राज्यवादियों को महान मित्र के रूप में पेश किया जाता है। सीमा पर सारे तनाव, हत्याओं के बावजूद भारत की पूजीपतियों का पाकिस्तान व चीन के साथ करोबार बढता जाता है।

भारत की आबादी का धार्मिक व जातीय आदि के आधार पर वर्गीकरण कर (जो कि एक हकीकत भी है) सामाजिक वैमन्सय व तनाव को हवा दी जाती है। मुकेश अंबानी व नरेंद्र मोदी जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं उसके लिए जरूरी है कि समाज में मेहनतकशों की एकता कायम न हो। एक बेरोजगार हिंदू गरीब मुसलमान को दुश्मन समझकर उसकी बस्ति में तिरंगा लहरा कर घर आकर राष्ट्रीय, हिंदू गौरव के नशे में झूमता रहे। एक बेरोजगार स्वर्ण युवक आरक्षण को गाली दे-देकर कुठित होता रहे। और इस सच का सामना करने को भी तैयार ना हो कि उसकी बेरोजगारी के जिम्मेवार मुकेश अंबानी और मोदी जैसे हैं। 

हम भारतीयों को ‘राष्ट्रीय गौरव’ महसूस करने का एक पुनित अवसर शीध्र ही मिलने वाला है। यह गौरव सिर्फ एक व्यक्ति की हां पर निर्भर है। वह व्यक्ति है संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। खबर है कि अगले वर्ष जब हम अपने जलियांवाला बाग हत्याकांड सौ वर्ष पर अपने अतीत के जुल्मों और प्रतिरोध को याद कर रहे होंगे तब यह व्यक्ति गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि होगा। पूरी दुनिया की मजदूर-मेहनतकश जनता के सबसे बड़े दुश्मन को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाने में जिन्हें राष्ट्रीय गौरव महसूस होता है उन्हें महसूस करने दीजिए। हम भारत के छात्र-युवाओं के लिए शर्म, घोर शर्म की बात होगी।     

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