गुरुवार, 26 जुलाई 2018

रैगिंग की बढ़ती घटनाएं

शिक्षण संस्थानों में जब एडमिशन का दौर चल रहा है। उसी समय रैगिंग के मामलों की बढ़ोत्तरी के आकडे़ भी सामने आ रहे हैं। लोक सभा में प्रस्तुत आकड़ों के अनुसार 2013-17 के बीच रैगिंग के मामलों मे 41 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इन वर्षों के दौरान कुछ 3022 शिकायतें यूजीसी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दर्ज की गयीं।

2013 में रैगिंग के कुल 640 मामले दर्ज किये गये। 2016 मे 515 मामले और 2017 में यह 75 प्रतिशत बढ़कर 901 हो गये। यदि राज्यवार देखें तो उत्तर प्रदेश में पांच सालां में 461, मध्यप्रदेश में 357, पश्चिम बंगाल में 337, उड़ीसा में 207 और बिहार में 170 मामले दर्ज किये गये।


मई 2018 में कोलकाता के सेंट पॉल कालेज में रैगिंग की शर्मनाक घटना घटी। जहां सीनियर द्वारा जूनियर छात्र को निर्वस्त्र कर अपमानित किया। उक्त छात्र द्वारा इस घटना से पीड़ित होकर आत्महत्या तक का प्रयास किया गया।

रैगिंग के खिलाफ सख्त कानून बनाने के बावजूद रैगिंग की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं। नये छात्र रैगिंग के भय के साथ शैक्षिक संस्थानों में दाखिल हो रहे हैं। तमाम मौकों पर कालेज में होने वाली रैगिंग उनके जीवन पर गहरे निशान छोड़ जाती है। जो कभी मिट नहीं पाते। कई छात्र रैगिंग के दौरान मारे जाते हैं या अपमानित महसूस कर आत्महत्या तक कर देते हैं।

रैगिंग में भारतीय समाज के तमाम घृणित मूल्यमान्यताएं काम करती हैं। जैसे जातिवाद, क्षेत्रवाद, नारी विरोध, पुरूष प्रधानता, अल्पसंख्यक विरोध आदि। तमाम छात्र अपनी कुठांओं को शांत करने के लिए बेहद अमानवीय ढंग से रैगिंग करते हैं। इस दौरान इन्हें साथी छात्र से, उसकी भावनाओं से उसके जीवन से भी कोई सरोकार नहीं रहता।

रैगिंग समाप्ति के लिए सिर्फ कानून को सख्त करना काफी नहीं। इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिए आवश्यक है समाज में जनवादी, बराबरी, भाईचारे के मूल्य प्रसारित किये जायें। समाज में फैली घृणित मध्ययुगीन मान्यताओं को समाप्त किया जाए।              

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