गुरुवार, 26 जुलाई 2018

जाधवपुर विश्वविद्यालयः छात्रों के संघर्ष को मिली जीत

जाधवपुर वि.विद्यालय के छात्रों द्वारा तीन दिवसीय भूख हड़ताल की गयी। यह हड़ताल 6 जुलाई से शुरू हुई। छात्रों की यह भूख हड़ताल कालेज प्रशासन द्वारा 6 विषयों में प्रवेश परीक्षा समाप्त कर उनमें दाखिले के लिए मैरिट प्रणाली लागू करने के विरोध में की गयी थी। छात्र मांग कर रहे थे कि अंग्रेजी, तुलनात्मक साहित्य, बांग्ला, इतिहास, राजनीति और दर्शन में पूर्व की ही भांति दाखिले करवायें जायें। मैरिट के आधार पर दाखिले बंद किये जायें।


छात्रों के आंदोलन के दवाब में कालेज प्रशासन को अपने फैसले में बदलाव करना पड़ा। कालेज प्रशासन द्वारा फैसला बदलते हुए अब मैरिट और प्रवेश परीक्षा का मिला जुला रूप निकाला है। जिसके तहत 50 प्रतिशत अंक मेरिट के आधार पर और 50 प्रतिशत प्रवेश परीक्षा के आधार पर दाखिले होंगे।

इस तरह छात्र-छात्राओं के संघर्ष ने इतना रंग तो दिखाया कि उनकी मांग एक हद तक मानने को प्रशासन मजबूर हुआ।    


मध्ययुगीन आदेशों के खिलाफ छात्रों और अभिभावकों का प्रदर्शन

महाराष्ट्र के पुणे में एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल ग्रुप माईर्स एम आई टी विश्व शांति गुरुकुल के तहत आने वाले श्री सरस्वती न्यू स्कूल, श्री स्वामी विवेकानंद प्राथमिक शाला व एमआईटी पूर्व प्राथमिक शाला में वार्षिक कैलेंडर(डायरी) के जरिए नियमावली जारी की है। छात्राओं को सफेद या स्किन रंग के अंतःवस्त्र पहनने के निर्देश जारी किए गए हैं। इसके अलावा छात्राओं की स्कर्ट की लंबाई कितनी होनी चाहिए, कहां सिलवानी है, एक खास समय में उनको शौचालय का इस्तेमाल करना होगा आदि। इसी तरह अभिभावकों के लिए भी नियमावली बनाई गई है। वह आपस में बात नहीं करेंगे, प्रबंधन व मीडिया से संवाद नहीं करेंगे। ऐसे 22 जटिल नियम बनाए गए हैं। इनको लागू करने के लिए अभिभावकों से एफिडेविट पर साइन कराए गए। उल्लंघन करने पर फौजदारी तक कार्यवाही की चेतावनी दी गई। जिनके खिलाफ अभिवावकों ने प्रदर्शन किया। स्कूल प्रशासन फैसले को वापस लेने को मजबूर हुए।

आज की सरकारें समाज के अंदर काफी पिछड़ी मध्ययुगीन मूल्यों को स्थापित कर रही हैं। मध्ययुगीन मूल्यों के तहत मंत्री-नेताओं के बयानों की बाढ़ आयी हुयी है। महिलाओं की आजादी को सीमित करने वाले ऐसे नियम इसी कड़ी का हिस्सा हैं।  

निजी स्कूल अभिभावकों से मोटी फीस वसूलते हैं। इसके बावजूद भी उनके हिसाब से पढ़ाई ना होने पर आपस में बात न करने, मीडिया प्रबंधन से बात न करने व आंदोलन न करने जैसे नियम बनाकर अभिभावकों को चुप करा कर शिक्षा के नाम पर मोटी फीस वसूल रहे हैं। इनकी मनमर्जी के खिलाफ संघर्ष करना आवश्यक है।
                       

लखनऊ वि.वि. : दाखिले पर रोक का विरोध कर रहे छात्र गिरफ्तार 

उत्तर प्रदेश के लखनऊ विश्वविद्यालय (एल.यू) में दाखिला न मिलने से छात्र 2 जुलाई से भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे। 4 जुलाई को ही पुलिस ने लाठीचार्ज कर उनको गिरफ्तार कर लिया। 

एलयू में 26 छात्रों के दाखिले पर रोक लगा दी गई थी। यह छात्र स्नातक अंतिम वर्ष के थे। एलयू विश्वविद्यालय ने उनका प्रवेश परीक्षा परिणाम रोक लिया था। इसके रिजल्ट ही जारी नहीं किए गए। इनमें से कुछ छात्र पिछले वर्ष जून में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लखनऊ विश्वविद्यालय में आने पर उनको काले झंडे दिखाए थे। जिस कारण छात्रों को जेल भेजा गया बाद में यह छात्र जमानत पर रिहा हुए थे। एलयू विश्वविद्यालय ने उनका निष्कासन कर दिया था। 

विश्वविद्यालय के अधिकारियों के अनुसार इन छात्रों का निष्कासन किये जाने के कारण इनका प्रवेश परीक्षा परिणाम रोक दिया था। निष्कासन किए गए छात्रों में से कुछ को परीक्षा में इसलिए बैठने दिया गया था ताकि भविष्य में वह किसी पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में आवेदन नहीं करेंगे। यह स्वीकारोक्ति इन छात्रों से ली गई थी। यह विश्वविद्यालय प्रशासन की तानाशाही पूर्ण रवैया को प्रदर्शित करता है। 

अनशन पर बैठे छात्रों ने बताया कि हम लोग शांतिपूर्वक तरीके से अपनी मांगों के साथ धरने पर बैठे थे। तभी आशीष मिश्रा नामक युवक ने प्राक्टर विनोद सिंह से हाथापाई कर घटनास्थल से फरार हो गया। पुलिस उसकी जगह निर्दोष छात्रों पर लाठीचार्ज करने लगी। घसीट कर छात्रों को जेल में ठूसा गया। जब छात्र वीसी सुरेंद्र प्रताप से मिले तो वह किसी सड़क छाप गुंडे की भाषा में बोल रहे थे। बोले, ‘‘जो करना है कर लो। यह मेरा विश्वविद्यालय है मेरी मर्जी जिसको चाहूंगा उसको दाखिला दूंगा। मैं योगी आदित्यनाथ को काले झंडे दिखाने वालों को दाखिला नहीं दूंगा।’’ 
छात्रों ने बताया कि शिक्षकों पर हाथापाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों ने की थी। हमला करने वाला एबीवीपी से जुड़ा आशीष मिश्रा वीसी का करीबी है। खुद वीसी के साथ बैठकर शराब पीता है। यह हमला वीसी व एबीवीपी ने मिलकर कराया था।

यह घटना दिखा देती है कि किस तरीके से छात्रों के जनवादी अधिकारों को कुचला जा रहा है। विश्वविद्यालय कुलपति छात्रों संग द्वेषपूर्ण व भेदभावपूर्ण रवैया रख रहे हैं और विश्वविद्यालय का प्रशासन आरएसएस कार्यकर्ता के तौर पर चला रहे हैं।

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