गुरुवार, 26 जुलाई 2018

31 जुलाई शहीदी दिवस
शहीद उधम सिंहः राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के योद्धा 

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर, 1899 को पंचाब के संगरूर जिले की सुनाम तहसील के शाहपुर कला गांव में हुआ था। उनके पिता सरदार तेहल सिंह जम्मू एक दरिद्र किसान थे, जो बाद में रेलवे में चौकीदार बन गये थे। उधम सिंह के एक बड़े भाई थे जिनका नाम मुक्ता सिंह था। 


उधम सिंह का बचपन बेहद दरिद्रता, अभाव व कठिनाईयों में व्यतीत हुआ। जब वे अभी दो साल के ही थे कि उनकी माता का देहान्त हो गया। और 8 साल की उम्र्र में पिता जी की भी मृत्यु हो गयी। 


उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह और उधम सिंह की परवरिश इसके बाद अमृतसर के एक अनाथालय में हुयी, जिसका प्रबंधन एक सिक्ख संस्था द्वारा किया जाता था। यहां उन्हें सिक्ख धर्म की दीक्षा दी गयी और इनका नाम बदलकर शेर सिंह से उधम सिंह और इनके भाई का नाम मुक्ता सिंह से साधु सिंह कर दिया गया। 1917 में इनके भाई साधु सिंह की मृत्यु हो गयी। अनाथालय में ही इन्होंने कई दस्तकारियों और कला का प्रशिक्षण लिया। 1918 में हाईस्कूल पास किया और 1919 में इन्होंने अनाथालय छोड़ दिया। 

13 अप्रैल, 1919 को जलियावाला बाग में 20 हजार से अधिक लोग रालेट एक्ट के विरोध में और डॉ0 सत्यपाल व सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी और निर्वासन के विरोध में सभा कर रहे थे। उधम सिंह और उनके दोस्त अनाथालय से इस सभा में एकत्र लोगों को पानी पिलाने के लिए लगाये गये थे। 

शांतिपूर्ण सभा में ब्रिगेडियर जनरल रेगिनेल्ड डायर की कमान में सैनिकों ने बिना किसी चेतावनी के लोगों पर गोली चलाना शुरू कर दिया। इस गोलीकाण्ड में केवल कुएं से 120 लाशें निकाली गयी थी। इस जलियावाला बाग नरसंहार के लिए उधम सिंह ने मुख्यतः माईकल ओ’डवायर को जिम्मेदार माना था। माईकल ओ’डवायर उस समय गर्वनर था। इस हत्याकाण्ड ने नौजवान उधम सिंह के जीवन को बदल दिया। इसके बाद उधम सिंह सक्रिय राजनीति में कूद पड़े और समर्पित क्रांतिकारी बनने के लिए अनाथालय छोड़ दिया और अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए कई देशों की यात्रा करते रहे। उनका लक्ष्य लंदन में अपने शिकार पर प्रहार करना था। 

वे 1920 में अफ्रीका पहुंचे। वहां से वे 1921 में नैरोबी गये। 1924 में वे भारत आये और उसी वर्ष अमेरिका पहुंच गये। वहां वे गदर पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रवासी भारतीयों को संगठित करते रहे।  

1927 में भगत सिंह के कहने पर वे भारत लौटे। वे 25 साथियों के साथ रिवाल्बरें व गोलियां लाये। 30 अगस्त, 1927 को बिना लाइसेंस के हथियार रखने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके ऊपर आर्म्स एक्ट की धारा 20 के तहत मुकदमा चलाया गया। 5 साल की कठोर कारावास की सजा दी गयी। 

इसी दौरान उधम सिंह जिस वक्त कारावास में सजा भुगत रहे थे उसी दौरान भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दी जा चुकी थी और चन्द्रशेखर आजाद शहीद हो चुके थे। 

1934 के शुरूआती दौर तक वे लगातार भारत में घूमते रहे थे। और इसके बाद इटली गये जहां वे 3-4 माह रहे। इटली से वे फ्रांस, स्विटजरलैण्ड, आस्ट्रिया गये और अंत में 1934 में लंदन पहुंच थे, जहां पर इन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी। लंदन में इंडियन वर्क्स एसोसियेशन जो एक समाजवादी संगठन था, उसमें शामिल हो गये। वही पर इन्होंने 6 राउण्ड वाला रिवाल्वर और गोलियां खरीदीं।

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के लगभग 21 साल बाद 13 मार्च, 1940 को वह अवसर आया जब टैक्सर हाल में ईस्ट इंडियन एसोसियेशन और सेन्ट्रल एशियन सोसाइटी की संयुक्त सभा होनी थी। इस सभा में माइकल ओ’डवायर एक वक्ता थे। मीटिंग के अंत में भारत के लिए सेकेटरी आफ पालेण्ड मौजूद थे। माइकल ओ’डवायर जब जैकलैण्ड से बातचीत करने के लिए आगे बढ़े तो उधम सिंह ने माइकल ओ’डवायर पर दो गोलियां चलाई। माइकल ओ’डवायर तत्काल मर गया फिर जैकलैण्ड पर भी गोली चला दी। जैकलैण्ड घायल हुए। लुईस नामक आदमी गंभीर रूप से घायल हो गया। एक गोली लार्ड लैमिंगटन को भी लगी, जिसका दायां हाथ जख्मी हो गया। उधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की । उसी जगह अपने को गिरफ्तार करा दिया। उनके साथ उनका रिवाल्वर, एक चाकू और एक डायरी पकड़ी गयी। जो इस समय स्काटलैण्ड यार्ड के ब्लैक म्यूजियम में रखी हुई हैं। 

महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने उधम सिंह के इस काम की निंदा की। जबकि भारतीय जनता ने इसे राष्ट्र के अपमान के बदले के तौर पर लिया व इसका स्वागत किया। 

1 अप्रैल, 1940 को उनके खिलाफ माइकल ओ’डवायर की हत्या की चार्जशीट लगायी गयी। ब्रिक्सटन जेल में मुकदमा का इंतार करते समय वे 22 दिन तक भूख हडताल पर भी रहे। उनके मुंह में जबरदस्ती खाना डाला जाता रहा। 4 जून, 1940 को जब न्यायाधीश ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने राम मुहम्मद सिंह आजाद बताया। उधम ने मारने का कारण बताया कि ‘‘मैंने उसे मारा है और वह उसी लायक था।’’ 11 जुलाई, 1940 को पेटविले जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। 

उधम सिंह द्वार ब्रिटिश कोर्ट में दिये गये बयान- 13 मार्च, 1931 को उधम सिंह ने कहा था ‘‘मैंने विरोध प्रदर्शित करने के लिए गोली चलायी। मैंने ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारत में लोगों के भूखे मरते देखा है। मैंने ये किया है। पिस्टल तीन या चार बार चला। मुझे इस विरोध प्रदर्शन का कतई दुख नहीं। ऐसा करना मेरा कर्तव्य था। अपने देश के लिए विरोध करने के लिए सही कदम था। मुझे अपनी सजा पर कोई अफसोस नहीं। मुझे चाहे 10-20-50 साल तक जेल में रखो या फांसी चढ़ा दें, मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया।’’

जब जज ने उससे पूछा कि आपको भी कुछ कहना है तो जज की ओर मुह करके उन्होंने घोषणा की, ‘‘ मैं ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद कहता हूं। आप कहते हैं भारत में शांति नहीं है, हम सिर्फ गुलामी में हैं। तथाकथित सभ्यता की पीढ़ियों ने हमको मानव जीवन के गंदगी व पतनशीलता दी है। वास्तव में आपको अपना इतिहास पढ़ने की जरूरत है। यदि  आपके अंदर किसी भी किस्म की मानवीय भावना है तो आपको शर्म के मारे मर जाना चाहिए। अपने को दुनिया की सभ्यता के रक्षक कहने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों को निशसृता व रक्तपिपासु तरीके से शासक बने हुए हैं। वे दुनिया के हरामी खून पीने वाले हैं।’’...

‘‘तुम्हारा व्यवहार, मैं ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में बात कर रहा हूं। ब्रिटिश आवाम के खिलाफ मेरे पास कहने को कुछ नहीं है। मेरे पास भारत की तुलना में इंग्लेण्ड में अंग्रेज दोस्त ज्यादा हैं। इंग्लैण्ड के मजदूरों के साथ मेरी व्यापक सहानुभूति है। मैं साम्राज्यवादी सरकार के विरूद्ध हूं।...........’’

शहीद उधम सिंह भारत के उन राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों की श्रेणी में आते हैं जो समाजवाद, बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे। उन्हें ब्रिटिश राज के अधिकारियों ने इसी रूप में लिया था। क्रांतिकारी उत्साह, दृढ़ता, एकनिष्ठता और बलिदान की भावना से भरपूर उधम सिंह भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे। उनके जीवन में भगत सिंह की छाप को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 

भगत सिंह और उधम सिंह के जीवन की कुछ समानताएं भी हैं। दोनों का ताल्लुक पंजाब से था। दोनां हिन्दू-मुस्लिम एकता के पैरोकार थे। दोनों नास्तिक थे। दोनों की जिंदगी की दिशा तय करने में जलियावाला बाग काण्ड की बड़ी भूमिका रही। 

        दोनों को लगभग एक जैसे मामले में सजा हुयी। भगत सिंह की तरह उधम सिंह ने भी फांसी से पहले कोई धार्मिक गं्रथ पढ़ने से इन्कार कर दिया था। 


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