परीक्षाओं का जाल और नकल
-सतीश कुमार
हमारे यहां किसी भी व्यक्ति या छात्र की योग्यता का पैमाना उसकी काबिलियत नहीं बल्कि उसके अंक तय करते हैं। अंक तालिका के अंक ही इस बात को तय करते हैं कि फलां छात्र पढ़ने में कैसा है और यहां अंकों के आधार पर बनी मेरिट ही उसके उच्च शिक्षा में जाने का रास्ता तय करती है और प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर भर्ती परीक्षाओं की मेरिट तय करती है कि कौन नौकरी के लायक है, कौन नहीं।
यही अंक हासिल करने की आपाधापी एक तरफ परीक्षाओं में नकल जैसी चीजों को पैदा करती है तो अन्य परीक्षाओं में भ्रष्टाचार। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि छात्रों व समाज के लोगों की चेतना का स्तर क्या है? उनकी समझदारी वैज्ञानिक है या नहीं, फर्क सिर्फ इससे पड़ता है कि अंक पत्र में अंक कितने हैं और इन्हीं अंकों को हासिल करना है। छात्रों के लिए शिक्षा का मकसद सिर्फ इतना है कि परीक्षा की काॅपी पर किसी भी तरह प्रश्नों के उत्तर उतार आयें जिससे अंक हासिल हो जाएं।
वर्गीय समाज में शिक्षा वर्गीय हितों के अनुरूप ही होती है। पूंजीवादी समाज व्यवस्था की भी शिक्षा व्यवस्था इसी समाज के हितों के अनुरूप ढाली गयी है। पतित होते जा रहे पूंजीवाद की पतनशीलता शिक्षा में भी साफ-साफ दिखाई दे रही है। पूंजीवाद में जैसे सभी आदर्श वाक्य सिर्फ किताबों की शोभा बढ़ाते हैं, उनका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता वैसे ही शिक्षा सम्बन्धी पूंजीवादी आदर्श वाक्य किताबों की ही शोभा बढ़ा रहे हैं। वास्तव में शिक्षा परीक्षाओं के जाल, नकल माफियाओं के जाल, कोचिंगों के जाल में फंसी है। जो छात्रों -नौजवानों को अवसाद, तनाव में डाल दे रही है। वर्तमान व्यवस्था हर इंसान को शिक्षा व रोजगार देने में असमर्थ है। इसीलिए अलग-अलग मामलों में परीक्षाओं व प्रतियोगिताओं का जाल खड़ा किया गया है और इस जाल की पतनशीलता लगातार बढ़ती जा रही है।
इन परीक्षाओं के जाल में फंसकर जहां एक ओर नौजवान अवसादग्रस्त हो रहे हैं, आत्महत्याएं कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व का पतन हो रहा है। वे इस व्यवस्था के चरित्र और उसमें शामिल भ्रष्टाचार को समझने के बजाय खुद को दोषी ठहराने लगते हैं। वे नहीं समझ पाते कि सरकारों पर बेरोजगारी व छात्रों-नौजवानों में उच्च शिक्षा के प्रति पैदा हो रही ललक का दबाव एवं सरकारों के पास संसाधनों की कमी, समान तरह की प्रतियोगिताओं के सामने अवरोध खड़े करती है।
भारत में नकल का प्रचलन काफी पहले से चल रहा है। आजकल नकल के तौर-तरीके काफी विकसित हो चुके हैं। अब नकल कराने के गिरोह सक्रिय हो गये हैं। जिन्हें सरकारें ही संचालित करती हैं। आज भारत की शिक्षा व्यवस्था में नकल एक महामारी बन चुकी है। पिछले कुछ सालों से माइक्रो ब्लूटूथ, मोबाइल सिम कार्ड, माइक्रोफोन, कैमरे वाले बटन और इयरफोन का सहारा लेकर नकल का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ा है। प्रश्न पत्र की स्कैन करने वाली कलम की मदद से भी अब नकल की जा रही है। कई वेबसाईटें इस तरह के उपकरणों को बेच रही हैं। तकनीकी विकास और खुफिया उपकरणों से आसानी से नकल उपलब्ध हो रही है। सामूहिक नकल और बलपूर्वक नकल का तरीका भी भारत के उत्तरी राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में काफी व्यापक है। हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट की परीक्षाओं में इस तरह के हथकण्डे स्थानीय दबंगों द्वारा काॅलेज मैनेजमेन्ट के माध्यमों से भी अपनाये जाते हैं।
वर्तमान सरकार जो नकल विहीन परीक्षाओं की बातें करती थी। परीक्षा हाॅलों में कैमरे लगाए गए, लेकिन यहां नकल का और भी संगठित रूप सामने आया। भाजपा नेताओं के घरों पर बोर्ड की काॅपी के साथ सामूहिक नकल करते छात्र पकड़े गए। गोरखपुर के एक भाजपा नेता के खिलाफ कार्यवाही भी हुयी।
इसके अलावा एक और माध्यम भी खूब फल-फूल रहा है। परीक्षाओं में नकली उम्मीदवारों की सेवाएं भी खूब ली जा रही हैं। अखबारों में इस तरह की सुर्खियां आम हैं कि फलां परीक्षा में नकली उम्मीदवार पकड़े गये। जहां छात्रों की तुलना में नौकरियां बहुत कम हों वहां प्रतियोगी परीक्षाएं उत्तीर्ण करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में लोग पेशेवर लोगों, कोचिंग के लोगों आदि की मदद लेते हैं।
अमीर और रसूखदार लोग परीक्षकों को भी प्रभावित करने का काम करते हैं।
पिछले वर्ष मध्य प्रदेश में कई अधिकारियों को परीक्षा में धांधली के आरोप में गिरफ्तार किया गया। यह घोटाला (व्यापम) प्री-मेडिकल टेस्ट, टीचर, कांस्टेबल, फूड इंस्पेक्टर सहित कई सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं से जुड़ा था। इस घोटाले से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े कई लोगों की मौत हो चुकी है।
इसके अलावा प्रश्न पत्र का लीक होना भी नकल का काफी प्रचलित रूप हो चुका है। कल्पना कीजिए सिविल सर्विसेज के किसी उम्मीदवार की खुशी का, जिसे परीक्षा से एक घंटे पहले अपने मोबाइल के व्हाट्सऐप मैसेन्जर में प्रश्न पत्र मिल गया हो। हाल ही में उत्तर प्रदेश में ऐसा हुआ। जिस कारण परीक्षा रद्द करनी पड़ी। प्रश्न पत्र लीक करके परीक्षाओं को प्रभावित करने का तरीका भी रसूखदार लोग और राजनीति से जुड़े लोग अपनाते हैं।
इस तरह हमारे देश में हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट, उच्च शिक्षा से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं व भर्ती परीक्षाओं में नकल व भ्रष्टाचार सामान्य फैला हुआ है। इसकी एक बानगी बिहार के मुजफ्फरनगर में सेना की भर्ती परीक्षा के दौरान मिली। भर्ती परीक्षा देने आये युवकों को खुले मैदान में महज जांघिया पहने इसलिए बैठा दिया गया ताकि वे किसी भी सूरत में नकल न कर पाएं।
क्या इस तरह इन चीजों को रोका जा सकता है। यह बीमारी बढ़ क्यों रही है? इसका इलाज क्या है? कहीं हमारे समाज में शिक्षातंत्र की खामी तो नहीं?
देश में पढ़ाई और परीक्षा की मौजूदा व्यवस्था कहती है कि जो छात्र परीक्षा में अच्छे नम्बर लाएगा वही उच्च शिक्षा और नौकरी में आगे बढ़ सकेगा। इसका इससे कोई वास्ता नहीं रहता कि छात्र के जीवन में पढ़ाई का उद्देश्य दुनियां-जहां के बारे में ठोस समझ पैदा करना है। रचनात्मकता, कल्पना शक्ति और वैज्ञानिक समझ विकसित करने का काम पढ़ाई के जरिए होता है। इस बारे में सोचने का वक्त न अभिभावकों के पास है न शिक्षकों के पास।
ऐसा हो भी कैसे, जिस देश में शिक्षा अलग-अलग वर्गों के लोगों को अलग-अलग तरीकों से हासिल होती हो, जिस देश में रोजगार की कोई गारन्टी न हो, जिस देश में शिक्षा एक माल बन चुकी हो, जिसका व्यवसायीकरण कर दिया गया हो। ऐसे में परीक्षाओं में छात्रों का पास होना भी कुछ लोगों के लिए व्यापार बन गया है। आज तो तमाम भर्ती परीक्षाओं को निजी कम्पनियों द्वारा कराया जा रहा है जिनमें सम्बन्धित विभाग और कम्पनियों के बीच में खूब मारा-मारी होती है। इनके ही जरिए छात्रों को परीक्षाओं में पास कराने के लिए मोटी रकमें ली जाती हैं। इस व्यवस्था में परीक्षाएं छात्रों की काबिलियत तय नहीं करती बल्कि उनकी आर्थिक हैसियत तय करती हैं। पूंजीवाद की पतनशीलता ने अब पूरे मामले को एक नये चरण में पहुंचा दिया है। दो-तीन दशक पहले नकल का जो रूप प्रचलित था कि कुछ लड़के पर्चियों से नकल करके पास होने लायक अंक प्राप्त करते थे अब मामला काफी आगे बढ़ चुका है। जो पेपर लीक से लेकर पूरी की पूरी परीक्षाओं के आयोजन तक पहुंच चुका है। अब खेल परीक्षाओं के आयोजन और प्रबन्धन में होता है। इस व्यवस्था में इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। इन मामलों से छात्रों-नौजवानों के संगठित प्रतिरोध से ही निपटा जा सकता है।
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