रविवार, 20 मई 2018

पेपर लीक, भ्रष्टाचार और पूंजीवादी व्यवस्था

-महेश

        छात्र सालों-साल पढ़ाई करते हैं, तैयारी करते हैं, कोचिंग लेते हैं इस उम्मीद से कि उन्हें अच्छी सी नौकरी मिल सके। जब पता चलता है कि भर्तियों में धांधली हुई है, पेपर ही लीक हो गये तब क्या हो? एसएससी की 17 से 22 फरवरी, 2018 के बीच हुई आॅनलाइन परीक्षाओं के बारे में ऐसा ही हुआ। जिसके विरोध में करोड़ों छात्र 27 फरवरी से दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्रों के प्रदर्शन को माह भर से अधिक हो चुका है। 



        छात्रों की मांग है कि मामले की किसी रिटायर्ड जज की निगरानी में सी.बी.आई. जांच हो। सरकार औपचारिक सहमति दे चुकी है पर कोई ठोस काम नहीं शुरू किया है। 


विभिन्न राज्य व केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की तरफ से की जाने वाली नियुक्तियां, परीक्षायें धांधली से ही हो रही हैं तो मेहनत से तैयारी कर रहे छात्रों का आक्रोशित होना स्वाभाविक ही है। यह साफ दिख रहा है कि नौकरियों का एक हिस्सा भ्रष्टाचार से भरा जा रहा है। यह भी साफ हो रहा है कि परीक्षायें ईमानदारी से करवाने के सारे नये तरीके (आॅनलाइन, आदि) फेल ही रहे हैं और भ्रष्टाचार करने वालों ने नये रास्ते निकाल लिये हैं। एक अन्य बात यह भी है कि हर परीक्षा में कुछ थोड़ी सी ही सीटों के लिए हजारों-लाखों आवेदन हो रहे हैं जो बेरोजगारी की भयानकता को ही जाहिर करते हैं।


        परीक्षाओं के पेपर लीक का मामला 10 वीं, 12 वीं के सीबीएससी बोर्ड के एग्जाम तक में हो रहा है। 


        ऐसा क्या है जिससे ईमानदार परीक्षायें नहीं होती हैं? सरकार और पूरा तंत्र इसे क्यों चलाता है? क्या मौजूदा व्यवस्था में ईमानदारी से परीक्षाओं की उम्मीद की जानी चाहिए? 


        मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था में बेरोजगारी लगातार मौजूद रहती है। यह  इसलिए कि लगातार एक रिजर्व आबादी बने रहे जिसे किसी भी क्षेत्र में काम पर लगाया जा सके। पर आज बेरोजगारी अपने भयावह स्तर पर मौजूद है और सरकार की नीतियां रोजगार को लगातार और सीमित करने की हैं। जिससे एक गलाकाटू प्रतियोगी माहौल बन गया है।


         जब नौकरियां सीमित हैं तो छात्र ज्यादा मेहनत से तैयारी करते हैं। तैयारी करने के लिए घंटों पढ़ने से लेकर कोचिंग सेन्टरों की शरण लेते हैं। कोचिंग सेन्टरों व हबों में दिख रही भयंकर भीड़ छात्र को सिर्फ तैयारी से ही आश्वस्त नहीं करती। वह लगातार चिंतित रहता है। और चिंतित रहते हैं कोचिंग सेन्टर स्वामी। क्योंकि उनका धंधा कोचिंग के बढ़िया रिजल्टों पर टिका होता है। ऐसे में बड़े कोचिंग सेन्टर भ्रष्टाचार की जोड़-तोड़ में लग जाते हैं। सरकारी संस्थाओं में बैठा व्यक्ति चूंकि व्यवस्था में और उच्च जीवन स्तर पाने को लालायित है। उच्च जीवन स्तर का माहौल आम तौर पर ही रोज प्रचार माध्यम बनाते ही हैं। कोचिंग स्वामी अपने व्यवसाय को चमकाने के लिए इसमें लगे रहते हैं। कुछ छात्र भी ऐसे मिल जाते हैं जो पैसा चुका सकते हैं और अपनी तैयारी से संतुष्ट नहीं हैं पर नौकरी पाने के लिए परेशान हैं। व्यवस्था आम तौर पर ही रोज खाओ-पिओ ऐश करो, अपना देखो, सबके चक्कर में तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, सफल होना ही जिंदगी है चाहे जैसे हो, आदि; व्यक्तिवादी, स्वार्थपरक विचारों को समाज में बैठाती जाती है। ऐसे में सामूहिकता, ईमानदारी, आदि पुराने और अव्यवहारिक बताये जाते हैं या लगने लगते हैं।


        इस सब में सरकारी तंत्र की लेटलतीफी और खौफनाक माहौल बना देती है। परीक्षा हुई परिणाम लेट, परिणाम आया मेन परीक्षा लेट, मेन परीक्षा हुई परिणाम लेट, परिणाम आया इंटरव्यू लेट, इंटरव्यू हुआ तो ज्वाइनिंग लेट और बीच में कहीं कोई परीक्षा न्यायालय के फैसलों में फंसी, तो कोई रद्द हो गयी। हाल ये है कि सालों की तैयारी, परीक्षाओं के भंवर से निकलकर जब तक नौकरी शुरू न हो; अनिश्चितता बनी रहती है। 


       सबको रोजगार देना जैसी बात तो मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था में बेमानी बात है। इस पर तो सरकार ही कह देती है पकोड़ा तल तो रहे हो। परंतु सबको रोजगार दिया जा सकता है और दिया जाना चाहिए। जब तक ऐसी व्यवस्था न हो तब तक किसी ईमानदार परीक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती। रोजगार के लिए आश्वस्त व्यक्ति को ही भ्रष्टाचार के प्रति आकर्षित नहीं किया जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार देना और उसका बेहतर सामाजिक उपयोग करना व्यवस्था की जिम्मेदारी है। परन्तु पूंजीवादी व्यवस्था इसे जिम्मेदारी नहीं बोझ मानती है। इसलिए परीक्षाओं में हो रही धांधली-भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए यह याद रखा जाना चाहिए कि पूंजीवादी व्यवस्था इसकी पोषक है। लड़ाई इस पूंजीवादी व्यवस्था और उसके तंत्र को उखाड़ फेंकने की भी होनी चाहिए। वरना, हम हर साल-दो साल में ऐसी लड़ाईयां लड़ने को अभिशप्त होंगे। हमें लूट, शोषण, भ्रष्टाचार, पूंजीवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में अपनी ऊर्जा लगानी होगी।

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