पछास कार्यकर्ताओं पर हमला
-सुनिल
23 मार्च भारत के इतिहास की वो तारीख है जो आज भी करोड़ों-करोड़ लोगों के जेहन में दर्ज है। इस दिन प्रगतिशील जनपक्षधर लोग जहां भगतसिंह व उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए उनकी क्रांतिकारी विरासत व संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं, वहीं दक्षिणपंथी प्रतिगामी लोग भगत सिंह के विचारों, क्रांतिकारिता को भरसक छुपाते हुये उन्हें भगवा केसरिया रंग में रंगकर मात्र तस्वीरों तक सीमित कर देना चाहते हैं।
इस वर्ष भी भगत सिंह की शहादत के मौके पर यह टकराहट जारी रही। डीएसबी कैैम्पस नैनीताल में परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) के कार्यकर्ता 21 मार्च को भगत सिंह के विचारों व साथियों की शहादत को याद करते हुए पर्चा बांट रहे थे। तभी तथाकथित ‘राष्ट्रवादी’ संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्र नेता (छात्र संघ अध्यक्ष और कुमांऊ महा संघ अध्यक्ष) वहां पहुंचे। उन्होंने पर्चा बांटते पछास के साथियों से मारपीट करते हुए पर्चा न बांटने को कहा तथा पर्चा छीन लिया। पछास के साथियों द्वारा विरोध करने पर वह उन्हें डायरेक्टर के पास ले गये। उन्होंने पछास के साथियों पर देश विरोधी नारे लगाने का झूठा आरोप भी लगाया।
डायरेक्टर भी संवैधानिक लोकतांत्रिक अधिकारों को ताक पर रखकर पछास के साथियों को धारा 144 लगी होने का हवाला दे परमिशन दिखाने को कहते हैं। वह पछास के साथियों को डराते हुए उन्हीं के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करने की धमकी देते हैं। कैम्पस डायरेक्टर व एबीवीपी की नजर में भगत सिंह व उनके विचारों को याद करने व उनका प्रचार करने के लिए भी अनुमति की आवश्यकता है अन्यथा यह देशद्रोह माना जायेगा।
एबीवीपी की इस गुडंई के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने पर पुलिस प्रशासन भी सत्ता के दबाव में एफआईआर दर्ज करने के बजाए तहरीर की कापी लेकर मामले में टालमटोली करता रहा। प्रशासन पर दबाव बनाने पर वह प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करने के बजाए समझौते की बात करने लगा।
एबीवीपी के इस कृत्य की पूरे प्रदेश में निंदा हुई। हल्द्वानी, लालकुआं, काशीपुर, रामनगर आदि जगहों पर पछास व बिरादराना संगठनों (इमके, क्रालोस, प्रमएके) द्वारा एबीवीपी का पुतला दहन किया गया। अन्य जगह पर ज्ञापन, सभा आदि के जरिये एबीवीपी के दोषी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की मांग की गयी। दोषियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पछास द्वारा अन्य जनपक्षधर संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन प्रदर्शन की योजना बनाने व नैनीताल में एबीवीपी के चरित्र का भंडाफोड़ करते हुए हस्त लिखित पोस्टर लगाने की कार्यवाही से प्रशासन व एबीवीपी झुकने को मजबूर हुए। अंततः 23 मार्च को एबीवीपी ने अपने कृत्य के लिए लिखित में माफी मांग ली। इस दौरान पछास के जनपक्षधर संगठनों, व्यक्तियों व आम छात्रों का सहयोग मिला।
भगत सिंह के विचारों व शहादत को याद करते हुए पछास के साथियों पर एबीवीपी का यह हमला कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ सालों में ही डीयू, जेएनयू, हैदराबाद केन्द्रीय वि.वि., हरियाणा आदि जगहें एबीवीपी की गुण्डागर्दी के गवाह रहे हैं। इसी संगठन से जुडे लोगों ने 2006 में मध्यप्रदेश के उज्जैन में प्रो. हरभजन सिंह सब्बरवाल की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। ‘ज्ञान शील एकता’ की बात करने वाले इस छद्म राष्ट्रवादी संगठन के लोगों व इनके पोषकों ने ही रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर किया था।
खुद को राष्ट्रवादी कहने वाला एबीवीपी आखिर शहीदों की शहादत व विरासत को याद करने पर मारपीट पर उतारू क्यों हो गया? इसका कारण इस संगठन की राजनीतिक पक्षधरता है। एबीवीपी व इसके सहयोगी भाजपा, बजरंग दल, विहिप आदि अपने मातृ संगठन आरएसएस की तरह ही साम्प्रदायिक राजनीति के पक्षधर व वाहक है। यह संगठन मेहनतकश जनता व आम छात्रों को जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के विभाजनकारी विचारों पर खड़ा कर लूट-शोषण पर टिकी मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने का काम करते हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र के नाम पर मेहनतकश समुदाय अपने सामुहिक हितों, स्वास्थ्य, रोजगार, जनवाद आदि के लिए एकजुट संघर्ष नहीं कर पायेगा। जिससे इस लुटेरी व्यवस्था को और चंद सांसे लेने का मौका मिल जायेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें