उत्तराखण्ड के मेडिकल कालेजों में भारी फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन
- कैलाश
श्री गुरू राम राय (एस.जी.आर.आर.) मेडिकल कालेज, देहरादून में फीस में 300 से 400 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी कर दी गई। एम.बी.बी.एस. प्रथम वर्ष की फीस 6.70 लाख से 23 लाख, द्वितीय वर्ष की फीस 7.25 लाख से 20 लाख, तृतीय वर्ष की फीस 7.36 लाख से बढ़ाकर 26 लाख कर दी गयी। इसके अलावा हिमालयन मेडिकल कालेज, सुभारती मेडिकल कालेज, महंत इंद्रेश हाॅस्पिटल ने भी फीस में भारी वृद्धि की।
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने शुल्क नियामक संस्था पूरे देश भर में बनाने को कहा था। उत्तराखण्ड में वह संस्था बनाई गयी, जो मेडिकल कालेजों में फीस तय करती थी। अभी उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार ने एस.जी.आर.आर. को डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया। कैबिनेट ने मेडिकल कालेजों को फीस वृद्धि करने का अधिकार भी दे दिया। एक टी.वी. इंटरव्यू देते हुए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि एक कालेज को खोलने में 700 से 800 करोड़ का खर्च आता है। इसीलिए वह इस 300-400 प्रतिशत की वृद्धि को जायज ठहरा रहे हैं। इसके विरोध में एस.जी.आर.आर. कालेज के छात्र कालेज के बाहर प्रदर्शन करने लगे। जब यह मामला राष्ट्रीय मीडिया में आने लगा तथा छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा इसमें उनको अन्य संस्थाओं का साथ मिला। दबाव में आकर यह सभी कालेज अभी फीस कम करने पर राजी हुए हैं।
शिक्षा के निजीकरण के जरिए सरकारों ने कालेजों- यूनिवर्सिटियों को अपनी मनमानी करने की छूट दी हुई है। शिक्षा जैसे विशाल क्षेत्र में देशी-विदेशी पूंजीपतियों की निगाह पहले से ही जमीं हुयी थी। उत्तराखण्ड विधानसभा ने सभी विधायकों-मुखिया के वेतन में 120 प्रतिशत तक की भारी बढ़ोत्तरी की थी। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों में कटौती हर वर्ष जारी है। जिसमें सत्ता और विपक्ष के सभी लोग चुप्पी साधे रहते हैं।
केन्द्र की भाजपा सरकार ने अभी 60 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को स्वायत्ता का आदेश दिया है। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडे़कर इसे ऐतिहासिक फैसला करार दे रहे थे। यूनिवर्सिटी के कुल खर्च का 70 प्रतिशत यूजीसी देगा, 30 प्रतिशत यूनिवर्सिटी खुद उस खर्च को वहन करें। यह सारे कदम मेहनतकश वर्गों से आये छात्रों को शिक्षा से धीरे-धीरे बाहर कर देंगे। इसी तरह के कदम आज शिक्षा को निजी हाथों में सौंपने के लिए उठाये जा रहे हैं। छात्रों की व्यापक एकता बनाकर देश भर में संघर्ष करके ही हम सरकारों को शिक्षा जैसे क्षेत्रों को बेचने से रोक सकते हैं। तभी मेहनतकश वर्गों से आये छात्रों को शिक्षा मिलना संभव हो सकेगा।
लेकिन इसने यह जाहिर कर दिया कि सरकारें व शिक्षा की दुकानें सजाये पूंजीपति क्या इरादा रखते हैं? सरकारों और पूंजीपतियों के गठजोड़ को भी यह उजागर कर देता है कि कैसे शिक्षा बाजार के पूंजीपतियों को मुनाफा कमाने व अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने के लिए सरकार की कैबिनेट आसानी से मंजूरी दे देती है। शिक्षा को लेकर सरकार और पूंजीपतियों की खतरनाक योजना के प्रति छात्रों और अभिभावकों को आज ही सचेत हो जाना चाहिए।
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