बढ़ते अमीर बढ़ते गरीब
-कविता
कुछ समय पूर्व ‘फोब्र्स’ पत्रिका में दुनिया के अरबपतियों की सूची छपी। इस सूची में भारत के 121 अरबपतियों का नाम था। जिसमें से मुकेश अम्बानी दुनिया में 19 वें स्थान पर था। 2017 की सूची के अनुसार भारत में अरबपतियों की संख्या 102 थी जो 2018 में बढ़कर 121 हो गयी। मुकेश अम्बानी जिनकी हम अक्सर ही प्रधानमंत्री मोदी के साथ हंसते-खिलखिलाते फोटो देखते हैं की सम्पत्ति में तो तेजी से वृद्धि हुई है। 2017 में इनकी सम्पत्ति 1.09 लाख करोड़ थी और ये सूची में 33 वें स्थान पर थे। 2018 में इनकी सम्पत्ति में 72.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2.60 लाख करोड़ हो गयी। सूची में भी यह 33 वें स्थान से छलांग लगाकर 19 वें स्थान पर पहुंच गये।
किसी अर्थशास्त्री ने कहा था, यदि देश में सम्पत्ति बढ़ेगी, अर्थव्यवस्था बढ़ेगी तो इसका फायदा सभी को मिलेगा। गरीबों को भी। आइए! अब देश में गरीबी की स्थिति देखते हैं।
किसी अर्थशास्त्री ने कहा था, यदि देश में सम्पत्ति बढ़ेगी, अर्थव्यवस्था बढ़ेगी तो इसका फायदा सभी को मिलेगा। गरीबों को भी। आइए! अब देश में गरीबी की स्थिति देखते हैं।
2017 में वैश्विक भूख सूचकांक पेश हुआ। यह सूचकांक बताता है कि 119 देशों में भारत 100 वें स्थान पर है। 2004 से यह 45 अंक नीचे खिसका, 2016 में यह 118 देशों की सूची में 97 वें नम्बर पर था।
भूख सूचकांक के हिसाब से भारत को न्यूनतम श्रेणी पर रखा गया है। यह इराक, बांग्लादेश, उत्तर कोरिया (जिसके खिलाफ भारतीय मीडिया लगातार जहर उगलता रहता है) से भी पीछे है। हां! भारत की स्थिति अफगानिस्तान, सोमालिया से जरूर बेहतर है। हो सकता है भारतीय मीडिया इस बात पर खुशी महसूस करे।
संयुक्त राष्ट्र संघ खाद्य व कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत में कुपोषितों की संख्या 19.07 करोड़ बतायी गयी है। रिपोर्ट कहती है भारत में 51.4 प्रतिशत महिलाओं मेें खून की कमी है और भोजन की कमी के कारण हर साल 3000 बच्चे मर जाते हैं। पिछले दिनों झारखण्ड में एक बच्ची (संतोषी) भात-भात कहकर मर गयी। ये आंकड़े उसी हकीकत को बयां करते हैं। कई परिवार गरीबी, भूख से तंग आकर अपना जीवन ही खत्म कर देते हैं।
गरीबी, बदहाली, भूख का यह जीवन देखकर निश्चित ही आंखों में 121 अरबपति चुभते हैं। नरेन्द्र मोदी, अम्बानी हंसते हैं तो लगता है हमारी भूख पर हंस रहे हैं। और जब नरेन्द्र मोदी लखटकिया सूट; जिस पर सोने की कड़ाई से नरेन्द्र मोदी लिखा होता है; पहनते हैं तो लगता है कि वे हमारा मजाक उड़ा रहे हैं।
गरीबी और अमीरी के बीच यह खायी हर जगह हर कहीं साफ-साफ देखी जा सकती है। आयोगों का गठन इसलिए नहीं किया जाता कि वे गरीबी दूर करने के उपाय बतायें बल्कि इसलिए किया जाता है कि वे गरीबों की संख्या कम से कम बताएं। यही उनकी बुद्धि का कौशल होता है। कभी आय के आधार पर गरीबी रेखा तय की जाती है तो कभी उपभोग के आधार पर तो कभी कैलोरी के आधार पर। चाहे जैसे भी तय की जाये मकसद साफ है आंकड़ों में गरीबोें की संख्या को कम करना है। गरीबी की रेखा को गिराते-गिराते उसे भुखमरी की रेखा तक पहुंचा दिया गया है। यानी जो भूखा है वही गरीब है।
वर्तमान में सरकार द्वारा घोषित गरीबी की रेखा भी भुखमरी की ही रेखा है। सरकार के हिसाब से शहरों में 28.65 रुपये और गांव में 22.24 रुपये प्रतिदिन आय वाला व्यक्ति ही गरीबी रेखा के नीचे है। यानी शहर में 859 और गांव में 667 रुपये प्रति माह कमाने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। इस तरह सरकारी आंकड़ों के अनुसार मात्र 29.8 प्रतिशत लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं।
देश में लोग भूख से तब मर रहे हैं जबकि देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है। देश में खाद्यान से लेकर कपड़ा हर चीज का उत्पादन आजादी के बाद से कई गुना बढ़ चुका है। 1950-51 में भारत में खाद्यान का कुल उत्पादन 5 करोड़ टन था जो कि 2015-16 में बढ़कर 25.22 करोड़ टन हो गया। यानी खाद्यान के उत्पादन में पांच गुना से भी ज्यादा की वृद्धि हुई है। फिर भी लोग भूख से मर रहे हैं। क्यों? हमारी गरीबी बढ़ने और अरबपतियों की दौलत बढ़ने में क्या कोई सम्बन्ध है?
निश्चित तौर पर सम्बन्ध है और बेहद गहरा सम्बन्ध है। दरअसल उनका दौलतमंद होना ही हमारे गरीब होने का कारण है।
यह एक पूंजीवादी समाज व्यवस्था है। इस व्यवस्था में उत्पादन के सभी साधनों और वितरण पर अमीर वर्ग का मालिकाना होता है। फैक्टरियां इनकी होती हैं, हजारों एकड़ के फार्म और खदानों का यही वर्ग मालिक होता है। मजदूर, खेत मजदूर अपनी श्रम शक्ति बेचकर जो भी बनाता है, उसका मालिक पूंजीपति हो जाता है। पूंजीपति इन्हें बेहद कम मजदूरी देकर भारी शोषण करता है। जिस कारण पूंजीपति अमीर से अमीर होता जाता है। एक फैक्टरी से चार, चार से आठ, खड़ी हो जाती हैं और मजदूर वहीं का वहीं गरीब पड़ा रहता है। पूंजीपति अधिक मुनाफा कमाने के लिए कम से कम लोगों से अधिक से अधिक काम करवाता है। जिस कारण काम करने योग्य भारी अतिरिक्त आबादी बेकार पड़ी रहती है। गरीब किसान, छोटे कारोबारी को यह बर्बाद कर या तो मजदूर बना देता है या उसे बेरोजगार बना देता है। इस तरह उजड़े, बर्बाद हुए लोगों की बहुसंख्या समाज में पैदा हो जाती है, जिसे पूंजीपति वर्ग व उसकी व्यवस्था पैदा कर रही होती है।
मजदूर वर्ग अपने भयानक शोषण के खिलाफ और किसान अपनी बर्बाद होती जिन्दगी के खिलाफ इस वर्ग के खिलाफ होता है। बेरोजगार अपने रोजगार के लिए और भूखा अपनी रोटी के लिए इस व्यवस्था के लिए गम्भीर खतरा होता है। यह बात पूंजीपति वर्ग अच्छे से जानता है इसीलिए वह हथियारों पर पैसा खर्च करता है। पुलिस, नेताओं पर पैसा खर्च करता है किन्तु जनता की रोटी पर नहीं। नेता, सरकार, पुलिस, सेना, अदालत, आदि सभी इसी वर्ग की सम्पत्ति पर पलते हैं और इसी की सुरक्षा के लिए खड़े किये जाते हैं। पूंजीपति वर्ग की यह रक्षा पंक्ति गरीब लोगों को वायदे, डण्डे, गोली, जेल देती है किन्तु रोटी नहीं देती, ना दे सकती है और ना देना ही चाहती है।
देश के मजदूर-मेहनतकश भूखे अभागे लोगों को चाहिए कि वे अपना भाग्य खुद लिखें। इस अन्यायी व्यवस्था को खत्म कर खुद का राज मजदूर राज कायम करें, एक समाजवादी राज। इस राज में सत्ता तो होगी किन्तु वह मजदूर-किसानों की होगी, पूंजीपतियों की नहीं। इस व्यवस्था में हर व्यक्ति को उसकी योग्यतानुसार काम मिलेगा और काम के अनुसार वेतन। मजदूर राज उत्पादन के साधनों और वितरण पर मजदूर व किसान वर्ग के मालिकाने को स्थापित कर हर व्यक्ति को एक सम्मानजनक जीवन देता है। चंद अरबपति और करोड़ों की गरीबी की पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने का नाम ही समाजवाद है।
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