बी.एच.यू. आंदोलन -कैलाश
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) की गणना देश में अच्छे वि.वि.के रूप में की जाती है। पूर्वांचल में ज्ञान व संस्कृति के केन्द्र के बतौर बी.एच.यू. पूरे देश-दुनिया में जाना जाता है। भारत के सबसे बड़े आवासीय परिसर वाले वि.वि.के तौर पर भी बी.एच.यू. की गणना की जाती है।
लेकिन सितम्बर माह के अन्तिम पखवाड़े में बी.एच.यू. की छात्राओं की गूंज देशभर में सुनायी दी। 21 सितम्बर की सायं कैम्पस के भीतर एक छात्रा के साथ छेड़खानी की घटना के विरोध में बी.एच.यू. की छात्रायें एवं छात्र लंका स्थित मुख्य द्वार ‘सिंह द्वार’ पर धरने में बैठ गये। ‘सुरक्षा’ व ‘सम्मान’ तथा ‘दोषियों के खिलाफ कार्यवाही’ की मांग को लेकर छात्राओं एवं छात्रों ने खामोशी तोड़ते हुये सड़क पर अपनी आवाज बुलंद की।
छात्राओं का गुस्सा यूं ही नहीं सामने आया और ना ही बी.एच.यू. के अन्दर यह कभी-कभार घटने वाली कोई घटना थी। दरअसल बी.एच.यू. के अन्दर छात्राओं के साथ छेड़खानी व अभद्रता आम बात है। आये दिन छात्राओं को इस तरह की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। 21 सितम्बर को घटना वाले दिन भी छात्राओं ने ज्ञापन के जरिये वि.वि. प्रशासन से इस तरह की घटनाओं की शिकायत कर इनकी रोकथाम व सुरक्षा की मांग की थी।
इस तरह की घटनाओं पर बी.एच.यू. प्रशासन का रुख बेहद ही लापरवाही व गैर जिम्मेदाराना रहा है। छात्राओं द्वारा छेड़खानी या अभद्रता की शिकायत करने पर दोषियों पर कार्यवाही के बजाय बी.एच.यू. प्रशासन (कुलपति, चीफ प्राॅक्टर, वार्डन आदि) छात्राओं को ही प्रताड़ित करने या उनके चरित्र पर सवाल उठाने लगते हैं तथा उन्हें बचकर रहने की सलाह देते हैं। मसलन ‘तुम वहां गयी ही क्यों थी’, ‘इतनी रात में तुम वहां क्या कर रही थी’, ‘अगर लड़के छेड़ते हैं तो तुम दूसरे रास्ते से चले जाया करो’ आदि-आदि।
21 सितम्बर की घटना में भी घटना स्थल (भारत कला भवन) से 10 मीटर की दूरी पर खड़े सुरक्षा गार्ड छात्रा को बचाने नहीं आये। वार्डन को बताने पर वार्डन ने कह दिया कि कपड़े में ही तो हाथ डाला है ‘‘ऐसा क्या हो गया’’। चीफ प्राॅक्टर से शिकायत करने पर उनका सवाल होता है कि तुम हाॅस्टल के बाहर क्या कर रही थी?
चीफ प्राॅक्टर से छात्राओं ने स्पष्ट मांग की कि दोषियों के खिलाफ क्या कारवाई की जायेगी, उन्हें बताया जाये तथा कुलपति को बुलाया जाये। छात्राओं की यह मांग पूर्व में इस तरह की घटनाओं पर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के बजाय उनको प्रश्रय देने व दोषियों के खुलेआम कैम्पस में घूमने के कारण पैदा हुयी।
पूर्व की तरह इस मामले में चीफ प्राॅक्टर द्वारा टाला-मटोली व कुलपति के अड़ियल रुख के कारण छात्रायें 22 सितम्बर की सुबह से धरने पर बैठ गयीं। बी.एच.यू. के संवेदनशील छात्रों तथा जनपक्षधर संगठनों व न्यायप्रिय व्यक्तियों ने भी छात्राआंे की मांग का समर्थन कर धरने में भागीदारी की। घोषित तौर पर 8 बजे तथा अघोषित तौर पर 6 बजे ही हाॅस्टल में कैद हो जाने वाली छात्रायें अपनी बेड़ियां तोड़कर रात भर धरने में डटी रहीं।
धरने में बैठी छात्राओं ने कैम्पस व छात्रा छात्रावासों में स्ट्रीट लाइट व सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाने’, ‘24 घंटे सुरक्षा गार्ड की तैनाती’, ‘लैंगिक भेदभाव पर रोक’ ‘जी.एस. कैश बनाने’, ‘मोरल पुलिसिंग खत्म करने’, ‘छात्रावास में अघोषित कैद खत्म करने’ तथा ‘कुलपति धरना स्थल पर आकर सुरक्षा की गांरटी देें’; आदि की मांग कीं।
छात्राओं की जायज मांगों के प्रति भी बी.एच.यू. व जिला प्रशासन का रुख अड़ियल व गैर जिम्मेदार बना रहा। छात्राओं की मांगों को सुनने, सोच-विचार करने व सामूहिक वार्तालाप करने के बजाय बी.एच.यू. के प्राइवेट सुरक्षा कर्मियों व पुलिस ने छात्राओं तथा छात्रों पर रात में करीब 11 बजे लाठीचार्ज कर दिया। सारे नियम कानूनों को ताक पर रखकर पुरूष पुलिसकर्मी छात्राओं को धरना स्थल व कैम्पस के अलावा छात्रा हाॅस्टल के अन्दर घुसकर भी पीटने लगे। पूरे कैम्पस को छावनी में तब्दील कर प्रशासन द्वारा चुन-चुन कर छात्र-छात्राओं को पीटा गया। बी.एच.यू. प्रशासन द्वारा 3 दिन पूर्व ही छुट्टी घोषित कर 24 सितम्बर की शाम तक छात्र-छात्राओं को हाॅस्टल खाली करने का मौखिक हिटलरी आदेश दे दिया तथा जिला प्रशासन की मद्द से छात्र-छात्राओं को कैम्पस से बाहर खदेड़कर आंदोलन को कुचलना चाहा। 1000 से अधिक छात्र-छात्राओं पर गैर इरादतन हत्या सहित तमाम धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया।
इस पूरे ही आंदोलन के दौरान बी.एच.यू.के कुलपति गिरीश चन्द्र त्रिपाठी की भूमिका बड़ी घटिया रही। छात्राओं की समस्या व मांगों के प्रति सहानुभूति के बजाय कुलपति आंदोलन को प्रधानमंत्री के बनारस दौरे के मद्देनजर ‘प्रायोजित’, बाहरी लोगों द्वारा उकसाया व बी.एच.यू.को बदनाम करने की साजिश बताने लगे। छेड़खानी, गुंडागर्दी, अवैध वसूली व दुष्कर्म आदि घटनाओं के बावजूद भी सुरक्षित बी.एच.यू. का तथाकथित राष्ट्रवाद छात्राओं की सुरक्षा, सम्मान व बराबरी की मांग के कारण खतरे में पड़ गया। कुलपति बी.एच.यू. से राष्ट्रवाद खत्म न होने देने तथा बी.एच.यू. को जे.एन.यू. न बनने देने के लिये दृढ़ संकल्पित हो गये।
कुलपति का यह व्यवहार आर.एस.एस. व भाजपा के प्रति निष्ठा का परिणाम है। कुलपति खुद को गर्व से आर.एस.एस. का स्वयंसेवक घोषित करते हैं तथा उनके कार्यकाल में बी.एच.यू. कैम्पस में आर.एस.एस. का कार्यालय भी खुला है। आर.एस.एस. की ही तरह कुलपति भी सवर्ण मानसिकता व मध्ययुगीन पुरूष प्रधानता के पोषक व समर्थक हैं। कुलपति यह मानते हैं कि ‘मांसाहार खाने से लड़कियां अनैतिक हो जाती हैं’, इसलिये बी.एच.यू. की छात्रा मैस में मांसाहार वर्जित है।
मार्च 2017 में बी.एच.यू. के अन्दर महिला महाविद्यालय में कुलपति ने कहा ‘मेरे लिये बेटी वो है जिससे पूछा जाये कि उसके लिये उसका कैरियर महत्वपूर्ण है या भाई का? तो वो बोले मेरा नहीं, भाई का ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ शोध छात्राओं को मिलने वाली फैलोशिप के बारे में नवम्बर 2015 में इग्नू के स्थापना दिवस पर कुलपति ने कहा ‘शोध छात्र फैलोशिप के पैसे से बाइक खरीदते हैं और लड़कियां दहेज के लिये पैसा इकट्ठा करती हैं।’
ऐसे पिछड़े व महिला विरोधी मानसिकता के संघ समर्थक कुलपति की सरपरस्ती में ही पहले जाति व लैंगिक भेदभाव से ग्रस्त बी.एच.यू. में छात्राओं व दलित-पिछड़ी जातियों से आने-वाले छात्रों-शिक्षकों के साथ भेदभाव व उत्पीड़न में बढ़ोत्तरी हुयी है। कुलपति त्रिपाठी के कार्यकाल में छात्राओं पर शिकंजा और कसा है। हाॅस्टल में रहने वाली छात्राओं के रात 10 बजे बाद मोबाइल इस्तेमाल पर पाबंदी, खानपान, पहनावा, 8 बजे तक अनिवार्य रूप से उपस्थिति व धरना-प्रदर्शन में शामिल न होने हेतु शपथ पत्र आदि नियम छात्राओं के लिये माहौल को कैदनुमा बना देते हैं। कुलपति जी.सी. त्रिपाठी के खिलाफ ‘मोरल पुलिसिंग’ व लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाते हुये एक जनहित याचिका भी दायर की गयी जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।
इससे इतर बी.एच.यू.में गैर जनवादी माहौल का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वहां पर छात्रों की जनवादी संस्था छात्र संघ के चुनाव पर प्रतिबंध लगा है। यहां तक की शिक्षकों का भी कोई संघ या एसोसिएशन नहीं है। लैंगिक भेदभाव की शिकायत हेतु बनी आंतरिक शिकायत समिति (आई.सी.सी.) इतनी गैरजनवादी व महिला विरोधी है कि कोई भी छात्रा वहां जाना पसंद नहीं करती। क्योंकि समिति के सदस्य शिकायतों को गंभीरता से सुनने व जांच के बजाय शिकायतकर्ता के ही चरित्र हनन, उसको नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने लगते हैं।
ऐसे गैरजनवादी माहौल व लैंगिक- जातिगत वर्चस्व वाला बी.एच.यू. संघ-भाजपा को अपने चरित्र के अनुरूप देश के सभी वि.वि. तथा शिक्षण संस्थानों के लिये आदर्श नजर आता है। तार्किक, जनवादी, लैंगिक व जातिगत समानता वाले वि.वि. तथा कालेज-कैम्पस इनकी आंखों में चुभते हैं तथा राष्ट्र विरोध का अड्डा नजर आते हैं। ऐसे वि.वि. व कैम्पसों को यह राष्ट्रगान-राष्ट्रगीत, तिरंगा फहराने व टैंकों की तैनाती आदि के जरिये राष्ट्रवादी (बी.एच.यू.मार्का) बनाना चाहते हैं। अपनी इसी मुहिम के तहत तमाम शिक्षण व शोध संस्थानों के प्रमुख पदों पर नियुक्ति की योग्यता संघी मोदी सरकार के लिये संघ-भाजपा समथर्क या संघी मानसिकता का होना बन गया है।
बी.एच.यू. के कुलपति पद पर जी.सी.त्रिपाठी की नियुक्ति भी इसी मुहिम का हिस्सा थी। कुलपति त्रिपाठी भी संघी सोच के अनुकूल बी.एच.यू. को और आगे बढ़ा रहे थे छात्राओं के आन्दोलन का आधार यह दमघोंटू माहौल ही था जिसको तात्कालिक घटना ने सतह पर ला दिया।
संघ के ‘हिन्दू राष्ट्र’ की कल्पना में जैसी नारी शक्ति चित्रित की गयी है वह पढ़ी-लिखी लड़कियों के सपने के ठीक उलट है। संघियों के लिये आदर्श नारी वह है जो घर की चारदीवारी के भीतर कैद रहे, अगर बाहर निकले तो पुरूष की इच्छा से तथा देशहित में बच्चे (पुत्र) पैदा करती रहे। स्त्रियां माता, पुत्री या बहन तो हो सकती हैं लेकिन उनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं हो सकता है। इसके उलट जब बी.एच.यू. की छात्राओं ने सड़क पर निकल कर अपनी आवाज बुलंद की तो तमाम संघी कूपमण्डूकों का कलेजा मुंह में आ गया। वह इसे बर्दाश्त नहीं कर सके तथा अनर्गल बयानबाजी व गाली-गलौज तक करने लगे।
छात्राओं के आंदोलन ने संघ-भाजपा के महिला हितैषी होने के सभी नारों-वादों-जुमलों की पोल खोल दी। आंदोलन के समय बनारस के दौरे पर गये, हर जगह सेल्फी लेने व फोटो खिंचवाने को आतुर मोदी इन संघर्षरत छात्राओं का समर्थन तो दूर, सेल्फी भी न ले सके तथा रास्ता बदल कर निकल गये। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ व ‘सेल्फी विद डाॅटर’ जैसी लफ्फाजी करने वाले संघी प्रधानमंत्री के मुंह से छात्राओं के आंदोलन व आंदोलन के निर्मम दमन पर एक भी बोल नहीं निकला। यू.पी. चुनाव से पहले ‘महिलाओं के सम्मान में, भाजपा मैदान में’ का नारा देने वाले मोदी-योगी की भाजपा छात्राओं द्वारा सुरक्षा-सम्मान की मांग करने पर पुलिस व गुण्डों को लेकर मैदान में आ गयी।
बी.एच.यू. की ही तरह पूरा समाज छात्राओं-महिलाओं के लिये असुरक्षित बना हुआ है। वह घर-बाहर कार्यस्थल कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं। शिक्षा-रोजगार हेतु घर की चारदीवारी लांघने के बावजूद समाज में मौजूद मध्ययुगीन दकियानूसी मूल्य-मान्यतायें, पुरूष वर्चस्व की सोच व महिलाओं को ‘उपभोग की वस्तु’ के बतौर प्रस्तुत करने वाली पतित उपभोक्तावादी संस्कृति वह वातावरण तैयार कर रही है कि हर जगह छात्राओं-महिलाओं को मानसिक, शारीरिक व यौन हमलों का शिकार होना पड़ता है। संघ-भाजपा के शासन में यह सब और तेजी से बढ़ रहा है।
इन हालातों को बदलने का रास्ता बी.एच.यू. की छात्राओं का ही रास्ता है। महिला विरोधी हर सोच व अभिव्यक्ति के खिलाफ संघर्ष। उत्पीड़न-भेदभाव के हर रूप के खिलाफ संघर्ष। मध्ययुुगीन मूल्य-मान्यताओं व उपभोक्तावाद की संस्कृति के खिलाफ संघर्ष। हमें इन संघर्षों को और ज्यादा व्यापक व संगठित कर महिला विरोधी सोच व संस्कृति को प्रश्रय व असमानता को बढ़ावा देने वाली पंूजीवादी व्यवस्था के खिलाफ लक्षित करना होगा।
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