- इमरान
ईरानी हुक्मरानों के विरूद्ध एक बड़ा जनउभार खड़ा हो गया है। हांलाकि 10 जनवरी तक इसमें गिरावट आ गयी है। लेकिन 28 दिसंबर से शुरू होने वाला यह जनउभार 1979 के बाद से सबसे व्यापक है। 1979 में ईरानी जनता के विद्रोह के फलस्वरूप अमेरिकी साम्राज्यवादी पिट्ठू शाह रजा पहलवी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। इससे पहले 2009 में एक हरा आंदोलन हुआ था जो तेहरान और कुछ बड़े शहरों में चुनाव में धांधली के विरूद्ध हुआ था। वह आंदोलन कुछ सुधार चाहने वाले लोगों द्वारा चलाया गया था। 1999 में एक छात्र आंदोलन तेहरान के इर्द-गिर्द हुआ था। उस समय छात्रों ने ‘सलाम’ नामक अखबार को जबरन बंद करने के विरूद्ध अपना आक्रोश बड़े आंदोलन के जरिये व्यक्त किया था।
लेकिन 28 जुलाई को शुरू होने वाला जन उभार इनसे भिन्न है। इसकी शुरूआत ईरान के दूसरे नंबर की आबादी वाले शहर मासहाद से हुयी और जल्दी ही बिजली की गति से समूचे देश को अपने आगोश में समेट लिया। जहां पहले होने वाले आंदोलन मुख्यतः मध्यम वर्ग तक सीमित थे और उनकी मांगें राजनीतिक सुधारों तक सीमित थीं। वहीं मौजूदा जन उभार राजनीतिक सुधारों की उतनी नहीं थी जितनी की बेरोजगारी, अभाव व निराशा-हताशा से उपजी थी। इस जनउभार के पहले फैक्टरियों और तेल कुओं में काम करने वाले मजदूर लगातार अपनी मजदूरी में हो रही कटौतियों का विरोध कर रहे थे। सेवा निवृत्त लोग बैंकों से पैसा न मिलने के विरूद्ध आवाज उठा रहे थे। दरअसल मजदूरों, सेवा निवृत्त कर्मचारियों, बेरोजगारों और महंगाई की मार झेल रहे गरीब लोगों का यह व्यापक जन उभार बन गया। यह वस्तुतः मजदूर-मेहनतकश आबादी का जनउभार है।
ईरान के मौजूदा जनउभार के पीछे एक तरफ तो ईरानी हुकूमत की नव उदारवादी नीतियां है और दूसरी तरफ अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा लगाये गये आर्थिक प्रतिबंध रहे हैं। ईरान की इस्लामी हुकूमत समाज में अपनी जकड़बंदी को बनाये रखने के लिए लोगों के जनतांत्रिक हकों को बराबर कुचलती रही है। इस्लामिक हुकूमत के दोनों पक्ष तथाकथित उदारपंथी और रूढ़ीवादी या कट्टरपंथी, नवउदारवादी नीतियों को लागू करने में एकमत रही हैं। समाज में अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिए तथा हर तरह के विरोध को कुचलने के लिए राज्य के सुरक्षा तंत्र को लगातार मजबूत करने में दोनों पक्ष एकजुट हैं। अमेरिकी साम्राज्यादियों द्वारा लगातार लगाये गये प्रतिबंधों और ‘‘हुकूमत परिवर्तन’’ की साजिशों ने ईरानी हुकूमत के सुरक्षा तंत्र को और ज्यादा मजबूत करने तथा जनता पर निगरानी करने वाले खूफिया तंत्र को सशक्त बनाने का आधार दिया है। अमेरिकी साम्राज्यवादी हर विरोध का इस्तेमाल ‘‘हुकूमत परवर्तन’’ की साजिशों में करते रहे हैं। इस जनउभार का भी इस्तेमाल अमेरिकी साम्राज्यवादी ईरान की हुकूमत परिवर्तन के लिए कर रहे हैं।
2015 में ईरान के साथ आणविक समझौते के तहत अमेरिकी साम्राज्यवादियोें ने यूरोपीय संघ के साथ मिलकर प्रतिबंध हटाने की घोषणा कर दी थी। उससे यह उम्मीद की जा रही थी कि ईरान की अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार होगा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आगमन से कुछ रोजगारों की वृद्धि होगी। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आर्थिक प्रतिबंधों की डेमोक्लीज की तलवार लगातार लटका रखी है। वह अपनी शर्तों को समझोते से इतर और कड़ी करता जा रहा है। उसने यूरोपीय संघ के देेशों को भी धमकी जैसी दे रखी है और कहा है कि यदि ईरान अमेरिकी शर्तों को नहीं पूरा करेगा तो वह इन प्रतिबंधों को फिर से लागू करेगा और यदि यूरोपीय संघ के देश अमेरिका की बातों को मानकर प्रतिबंध नहीं लगायेंगे तो वह आणविक समझौते से अपने को अलग कर लेगा। इसके साथ ही अभी हाल ही में ईरानी हुकूमत को हटाने या उसे घुटना टेकने के लिए मजबूर करने के लिए उसने इजराइल के साथ गुप्त वार्ता की है। पश्चिम एशिया में सऊदी अरब के शेख से मिलकर अन्य शेखवादियों को अपने ईरान में ‘हुकूमत परिवर्तन’ के अपने नायाब मंसूबों को अंजाम देने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादी हर चंद साजिशें तेज करते जा रहे हैं।
अमेरिकी साम्राज्यवादियों की ‘हुकूमत परिवर्तन’ की इस साजिश के चलते ईरान की मजदूर-मेहनतकश आबादी को कुचलने का यह बहाना ईरानी हुकूमत को मिल जाता है। मौजूदा जनउभार को बेरहमी से कुचलने के लिए उसने आंदोलनकारियों को अमेरिकी साम्राज्यवादियों के एजेंट के बतौर चिन्हित किया है। ईरानी हुकूमत के द्वारा नवउदारवादी नीतियों के चलते जहां एक तरफ बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है, महंगाई सुरसा की तरह बढ़ती चली गयी है। ईरान के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी की दर 12.7 प्रतिशत है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि वह करीब 50 प्रतिशत के आस-पास है। इसके अतिरिक्त, सरकार रोटी और ऊर्जा को दी जानी वाली सब्सिडी में भारी कटौती करती जा रही है। अंडे और मुर्गों के दामों में भारी बढ़ोत्तरी के चलते लोगों में गुस्सा फूट पड़ा। इससे ईरान के मजदूर वर्ग, गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की जिंदगी और दूभर हो गयी।
जब ईरान के 70 शहरों और कस्बों के ये गरीब लोग सड़कों पर उतर पड़े और ईरान के धार्मिक नेताओं के विरूद्ध नारे लगाने लगे तो ईरानी हुकूमत ने आंदोलनकारियों को बेरहमी से कुचला। इस जनउभार में ईरान के सत्ताधारियों और शीर्ष के मुल्लाओं-धार्मिक नेताओं के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी सामने ला दिया। धार्मिक नेताओं की ऐशो-आराम की जिंदगी और उनके बच्चों के शाही खर्चीली जीवनशैली जो व्यापक गरीब आबादी की कंगाली के सामने दिख रही थी, उनके गुस्से को और ज्यादा बढ़ा दिया। जिस माशहाद शहर से यह जनउभार शुरू हुआ था, वहां की धार्मिक संस्था के पास शहर की 43 प्रतिशत जमीन है और उसकी आमदनी लगभग 15 करोड़ डालर वार्षिक है। इन धार्मिक संस्थाओं की आमदनी पर कोई कर नहीं लगाया जाता। ये धार्मिक नेता दूसरों को सदाचार का आदेश देते हैं और खुद औरतों के साथ व्यभिचार में लिप्त रहते हैं। यह धार्मिक नेताओं की पूरी आबादी परजीवियों की तरह पल रही है और इनके शीर्ष के लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इस जनउभार में ईरान की इस्लामिक हुकूमत के पूर्ण जनविरोधी चरित्र को बेनकाब कर दिया और जिस तरह से पाशविक दमन किया गया उससे इसका बर्बर निरंकुश चरित्र उजागर हो गया। 10 जनवरी तक विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार 25 से ज्यादा लोग गोलियों से मारे गये और 4000 लोगों को जेेलों में बंद किया गया है। सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। इसके बावजूद लोग जेलों के सामने सैकड़ों की तादाद में प्रदर्शन करते रहे हैं।
अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके अन्य साम्राज्यवादी सहयोगी ईरानी हुकुमत द्वारा किये गये दमन की निंदा करते हुए उसे मानव अधिकारों का उल्लंघन कहा है और इसे भी ईरान में सत्ता परिवर्तन के आह्वान के लिए उकसाया है। वे इसे भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बहाने के तौर पर तथा वहां हस्तक्षेप करने के एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी इजरायल द्वारा समूचे फिलिस्तीन को बाड़े बंदी रखने तथा इजरायल द्वारा की जा रही हमलावर कार्यवाइयों की निंदा करना तो दूर उसका पूरा समर्थन करते हैं। खुद अमरीकी साम्राज्यवादी दुनिया भर में सैनिक हमलों द्वारा जनसंहार करने के लगे हुए हैं। दुनिया के 76 देेशों में अपनी फौजें तैनात किये हुए हैं और वहां पर कत्ले आम मचाते रहे हैं। तब मानव अधिकारों का उल्लघंन नहीं होता। ईरान में मानव अधिकारों के हनन की बात अमरीकी साम्राज्यवादियों की बेशर्मी बकवास के सिवाय कुछ नहीं है।
ईरान में भले ही मौजूदा जन उभार कुछ समय के बाद ठंडा पड़ जाय। लेकिन जिन बुनियादी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को लेकर यह उठा है, उन समस्याओं का समाधान ईरान की मौजूदा हुकूमत नहीं कर सकती। यह इसके चरित्र में ही नहीं है। ईरान की मौजूदा हुकूमत व्यापारियों-धन्नासेठों-बैंक पतियों-धार्मिक नेताओं और नौकरशाहों के हितांे की सेवा कर रही है। यह विश्व के पैमाने पर साम्राज्यवादी लुटेरों के हितों के साथ अपने को नाभीनाल बद्ध किये हुए है। यह हुकूमत इराक और अफगानिस्तान में अमरीकी साम्राज्यवादियों की मद्दगार रही है। अब भी यह अमरीकी और अन्य साम्राज्यवादियों के साथ साठ-गांठ करने को तैयार है लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादी इसके क्षेत्रीय विस्तारवाद की आकांक्षा को अपने विश्व प्रभुत्व के रास्ते में बाधक समझते हैं और इसलिए वे इसके विरूद्ध है।
ईरान की मौजूदा हुकूमत के विरूद्ध मजदूरों-मेहनतकशों का संघर्ष अपनी ताकत के बल पर ही आगे बढ़कर आगे बढ़ सकता है। अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान में भी वही करेंगे जो वे इराक, लीविया, अफगानिस्तान या अन्यत्र करते रहे हैं। ईरान के पुराने शासक रजा शाह के वारिस या प्रतिक्रियावादी मुजाहिद्दीन खल्क जैसे संगठन अमरीकी साम्राज्यवादियों के बल पर ईरान पर फिर से 1979 के पहले के दिन लाना चाहते हैं।
ईरान की मजदूर-मेहनतकश अवाम अपने वे पुराने दिन भूले नहीं हैं।
ईरान की मजदूर- महेनतकश अवाम मौजूदा हुकूमत के विरूद्ध संघर्ष को मुकाम तक पंहुचाने यानी पूंजीवाद के खात्मे के लिए देर-सबेर एकजुट होकर आगे बढ़ेगी। वे अपने साथ छात्रों-नौजवानों और समाज के अन्य दबे कुचले लोगों को खड़ा करके ही इसे पूरा कर सकते हैं।
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