शनिवार, 3 मार्च 2018

भगत सिंह के चुनिंदा पत्र

पिता जी के नाम पत्र

पूज्य पिता जी,
नमस्ते।
मेरी जिन्दगी मकसदे आला यानि आजादी-ए-हिन्द के असूल के लिए वक्फ हो चुकी है। इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी खाहशात बायसे कशिश नहीं है।
आपको याद होगा कि अब मैं छोटा था, तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतीक्षा पूरी कर रहा हूं।
उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएंगे।
 आपका ताबेदार
   भगत सिंह

शब्द-अर्थ- मकसदे आला- उच्च उद्देश्य, असूल- सिद्धांत, वक्फ- दान, खाहशात- सांसारिक इच्छाएं, बायसे कशिश- आकर्षक, खिदमते वतन- देश सेवा


जयदेव को एक और पत्र

 सेंट्रल जेल, लाहौर
 24 जुलाई, 1930
मेरे प्रिय जयदेव!
कृपया निम्नलिखित किताबें द्वारकानाथ पुस्तकालय से मेरे नाम पर जारी करवाकर शनिचरवार को कुलबीर के हाथ भेज देनाः
मैटीरियेलिज्मः कार्ल लीब्नेख्त
व्हाई मैन फाइट-बी.रसेल
सोवियट्स एट वर्क
कोलेप्स आफ सेकिण्ड इण्टरनेशनल
लैफ्ट विंग कम्युनिज्म
म्यूचुअल एण्ड प्रिंस क्रोपाटकिन
फील्ड्स फेक्ट्रीज एण्ड वर्कशाप्स
सिविल वार इन फ्रांसः माक्र्स
लैण्ड रिवोल्यूशन इन एशिया, और
अप्टन सिंकलेयर की ‘स्पाई’
कृपया यदि हो सके तो मुझे एक और किताब भेजने का प्रबंध करना, जिसका नाम ‘थ्योरी आफ हिस्टोरिकल मैटिरियेलिज्मः बुखारिन है।(यह पंजाब पब्लिक लाइब्रेरी में मिल जायेगी) और पुस्तकालयाध्यक्ष से यह मालूम करना कि कुछ किताबें क्या बोस्र्टल जेल में भेजी गयी है? उन्हें किताबों की बहुत जरूरत है। उन्होंने सुखदेव के भाई जयदेव के हाथों एक सूची भेजी थी, लेकिन उनको अभी तक किताबें नहीं मिली अगर उनके (पुस्तकालय) पास कोई सूची न हो तो कृपया लाला फिरोजचन्द से जानकारी ले लेना और उनकी पसंद के अनुसार कुछ रोचक किताबें भेज देना। इस रविवार जब मैं वहां जाऊं तो उनके पास किताबें पहुंची हुई होनी चाहिए। कृपया यह काम किसी भी हालात में कर देना। इसके साथ ही डार्लिंग की ‘पंजाब पेजेण्ट्री इन प्राॅसपैरिटी एण्ड डैट’ और इसी तरह की एक-दो अन्य किताबें किसान समस्या पर डा. आलम के लिए भेज देना।
आशा है तुम इन कष्टों को ज्यादा महसूस न करोगे। भविष्य के लिए तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि तुम्हें कभी कोई कष्ट न दूंगा। सभी मित्रों को मेरी याद कहना और लज्जावती जी को मेरी ओर से अभिवादन उम्मीद है कि अगर दत्त की बहन आयीं तो वे मुझसे मुलाकात करने का कष्ट करेंगी।
                                                                                                  आदर के साथ
                                                                                                     भगत सिंह




बटुकेश्वर दत्त को पत्र

सेण्ट्रल जेल, लाहौर
अक्टूबर, 1930
प्रिय भाई,
मुझे सजा सुना दी गयी है और फांसी का हुक्म हुआ है। इन कोठरियों में मेरे अलावा फांसी का इंतजार करनेवाले बहुत से मुजरिम हैं। यह लोग यही प्रार्थनाएं कर रहे हैं कि किसी तरह वे फांसी से बच जायें। लेकिन उनमें से शायद मैं अकेला ऐसा आदमी हूं जो बड़ी बेसब्री से उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के तख्ते पर चढ़ने का सौभाग्य मिलेगा। मैं खुशी से फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से कुर्बानी दे सकते हैं।
मुझे फांसी की सजा मिली है, मगर तुम्हें उम्र कैद। तुम जिन्दा रहोगे और जिन्दा रहकर तुम्हें दुनिया को यह दिखा देना है कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए सिर्फ मर ही नहीं सकते, बल्कि जिन्दा रहकर हर तरह की यातनाओं का मुकाबला भी कर सकते हैं। मौत सांसारिक मुसीबतों से छुटकारा पाने का साधन नहीं बननी चाहिए, बल्कि जो क्रांतिकारी संयोगवश फांसी के फंदे से बच गये हंै उन्हें जिन्दा रहकर दुनिया को यह दिखा देना चाहिए कि वे ना सिर्फ अपने आदर्शों के लिए फांसी पर चढ़ सकते हैं बल्कि जेलों की अंधेरी कोठरियों में घुट-घुटकर हर दर्जे के अत्याचारों को भी सहन कर सकते है।
                                                                                                   तुम्हारा,
                                                                                                 भगत सिंह

बलिदान से पहले साथियों को अंतिम पत्र

 22 मार्च, 1931
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूं, कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है-इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता।
आज मेरी कमजोरियां जनता के समाने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जायंेगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जायेगा या सम्भवतः मिट ही जाये। लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में में थीं, उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, जिन्दा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता।
इसके सिवाए मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाये।
                                                                                         आपका साथी
                                                                                          भगत सिंह।



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