-रजनी
एक नाबालिक बच्ची, जिसके पिता शराबी हैं। मां खेतों में मेहनत कर अपनी बच्ची और शराबी पति को पाल रही थी। गरीबी और तंगहाली में जी रहा यह परिवार तब बिखर गया जब मां की मौत हो गयी। मां की मौत के बाद बच्ची का जीजा उसे पालने के लिए अपने घर ले गया।
2 माह के बाद जब यह नाबालिग बच्ची अचानक अपनी एक मुंह बोली बहन के घर भागकर (बिना बताये) आयी तो पता चला कि जीजा ने, उसे जबरन गर्भ गिराने की दवा खिला दी है। लगातार खून के बहने से बच्ची बेहोश हो गयी। मामला तब सामाजिक संगठनों के संज्ञान में आया। जिसमें पता चला कि बच्ची 2 माह की गर्भवती है और जीजा उसकी बहन के सामने ही उसके साथ ऐसा गंदा काम करता था। बच्ची का बाप भी जीजा के साथ ही रहता है। बहन और बाप को घटना का पता होने के बाद भी उनमें से किसी ने भी प्रतिवाद नहीं किया। जीजा अपनी पत्नी के साथ भी मारपीट करता था व उसको डराकर रखता था।
2 माह के बाद जब यह नाबालिग बच्ची अचानक अपनी एक मुंह बोली बहन के घर भागकर (बिना बताये) आयी तो पता चला कि जीजा ने, उसे जबरन गर्भ गिराने की दवा खिला दी है। लगातार खून के बहने से बच्ची बेहोश हो गयी। मामला तब सामाजिक संगठनों के संज्ञान में आया। जिसमें पता चला कि बच्ची 2 माह की गर्भवती है और जीजा उसकी बहन के सामने ही उसके साथ ऐसा गंदा काम करता था। बच्ची का बाप भी जीजा के साथ ही रहता है। बहन और बाप को घटना का पता होने के बाद भी उनमें से किसी ने भी प्रतिवाद नहीं किया। जीजा अपनी पत्नी के साथ भी मारपीट करता था व उसको डराकर रखता था।
बच्ची से बात कर पता चला कि उसका जीजा उसे अपने घर ले जाने से पहले भी उसके साथ ऐसा करता था। उसकी दीदी भी उसके साथ मारपीट करती थी। वह अपने पति से कुछ बोल सकने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। और इसके लिए अपनी छोटी बहन को ही दोषी मानकर उसको पीटती थी। घटना को और विस्तार से जानने पर पता चला कि समाज में और भी गिद्द हैं जो ऐसी घटनाओं को दबाने के लिए सौदेबाजी की नीच हरकत पर उतर आते हैं। सामाजिक संगठनों के संज्ञान में आने से पूर्व ही एक ‘पत्रकार’ ने जीजा से 30 हजार रू0 लेकर मामला रफा-दफा कराने की कोशिश की। पुलिस ने एक सादे पेपर पर साइन कराकर बच्ची और उसकी मुंह बोली बहन को घर भेज दिया।
सामाजिक संगठनों के हस्तक्षेप के कारण थाने में जाकर एफ.आई. आर. करायी गयी और आरोपी जीजा को गिरफ्तार कराया गया। पुलिस से छिपने के लिए भी ‘पत्रकार’ जीजा की मद्द करता रहा और उससे पैसे ऐंठते रहा। सामाजिक संगठनों द्वारा पुलिस पर दबाव डालकर अंततः आरोपी को पाक्सो एक्ट में जेल भेज दिया गया।
यह घटना हमारे समाज के वीभत्स यथार्थ को अच्छी तरह बयां कर देती है। पतन की ओर अग्रसर इस पूंजीवादी समाज में महिलाएं व बच्चियां कही भी सुरक्षित नहीं हैं। परिवार के भीतर ही भक्षक पैदा हो जा रहे हैं। पूंजीवादी सामाजिक संस्थाएं महिलाओं को बिल्कुल भी सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ होती जा रही है। पुलिस की भूमिका इस तरह के मामलो में जहां पीड़िता गरीब वर्ग की होती है, अपराधियों को संरक्षण प्रदान करने की होती है। चैकी पुलिस ने मामले में पीड़िता को न्याय दिलाने, अपराधी को पकड़ने के स्थान पर मामला रफ-दफा करवाने का काम किया। समाज में उक्त घटना में शामिल दलाल पत्रकारों की संख्या भी कम नहीं है। हर महिला उत्पीड़न की घटनाओं के बाद ऐसे दलालों को सक्रीय होते व अपराधी को बचाने की ‘बहादुर’ कार्यवाही करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। समाज में ऐसी असहाय बच्चियां दरिंदों की हवस का आसान शिकार बन जाने को अभिशप्त हैं। पूंजीवादी शासन-प्रशासन व संस्थाएं ऐसी असहाय बच्चियों को सुरक्षा प्रदान करने में बिल्कुल ही अक्षम हैं।
आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि लड़कियों/बच्चियों के लिए घर ही सबसे ज्यादा सुरक्षित है लेकिन इस घटना में और महिलाओं पर होने वाले अन्य अपराधों में आरोपी परिवार या पहचान वाला ही कोई सख्स होता हैं। पतनशील इस पूंजीवादी समाज में ऐसे सख्श रोज पैदा होते रहते हैं। पंूजीवादी व्यवस्था व शासक वर्ग रोज ऐसे व्यक्तित्व तैयार कर रहा है जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा में लिप्त हैं। इसके साथ ही वह ऐसे व्यक्तित्व तैयार कर रहा है जो इंसानी भावनाओं से बहुत दूर हैं। बच्ची का पिता और बहन जो इस अपमान और वीभत्स घटना को अपने सामने देखते हैं लेकिन उनकी मानवीय संवेदनाएं उनको झकझोरती नहीं। पिता और बहन का संवेदनशून्य व्यक्तित्व भी पूंजीवादी समाज की देन है। एक तरफ पूंजीवादी समाज दरिंदो को पैदा कर रहा है तो दूसरी तरफ ऐसे संवेदनशून्य मानवों को। पुलिस और दलाल पत्रकार का तो कहना ही क्या? दरअसल शासक पूंजीपति मजदूर-मेहनतकशों को इसी नजर से देखता है कि वह तो होते ही ऐसे हैं? लेकिन समाज के पतन से पूंजीपति वर्ग भी अछूता नहीं है। ढेरों उदाहरण ऐसे है जो पूंजीपति वर्ग के परिवारों में ऐसी घटनाओं के गवाह है। लेकिन अपनी पहुंच व ताकत से वह इसको छुपा ले जाता है।
महिलाओं के खिलाफ ऐसी वीभत्स घटनाएं इस बात की परिचायक हैं कि यह पूंजीवादी व्यवस्था एक व्यवस्था के बतौर आम मेहनतकशा जनता पर पीड़ा का एक औजार के अलावा और कुछ नहीं है। शासक वर्ग द्वारा महिला सशक्तिकरण, बेटी बचाओं बेटी पढा़ओं सरीखी बातें जितनी ज्यादा होती हैं महिलाओं पर हिंसा की घटनाएं उसी अनुरूप बढ़ती चली जाती हैैं। दरअसल महिलाओं की सुरक्षा की ये बातें शासक वर्ग अगर कर रहा है तो उसके पीछे यह आत्मस्वीकारोक्ती छिपी है कि वह महिलाओं पर बढ़ते अपराधों को रोक पाने में बिल्कुल असमर्थ है।
दरअसल महिला हिंसा की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए पूरे सामाजिक तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन की दरकार हैै। कोई कानून, कोई संस्था, महिलाओं पर हो रहे इन हमलों को नहीं रोक सकती। सामाजिक क्रांति ही महिलाओं को सुरक्षा प्रदान कर सकती है। और महिलाओं के लिए अनुकूल व सम्मानजनक समाज का निर्माण कर सकती है। ठीक ऐसी ही सामाजिक क्रांति आज से 100 वर्ष पूर्व रूस में हुयी थी। रूस की भांति ही भारत में भी सामाजिक क्रांति महिलाओं की मुक्ति का मार्ग बन सकती है। समाजवादी समाज ने ही महिलाओं को बराबरी व सम्मान प्रदान किया। समाजवादी समाज ही नये मानव का निर्माण कर सकता है। पूंजीवादी समाज जिस विकृत मस्तिस्क के लोगों को पैदा करता है समाजवादी समाज उसकी जमीन को निरंतर खत्म करता जाता है। इस प्रकार महिला हिंसा के खिलाफ होने वाले संघर्षों का लक्ष्य नये समाज-समाजवादी समाज का निर्माण बन जाता है। इसी संघर्ष से और आम मेहनतकशों की सामाजिक सक्रियता से ही महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है। ऐसा संघर्ष जो महिला विरोधी मूल्यों-मान्यताओं की चूलें हिला दे। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का यह फर्ज बनता है कि वह इस संघर्ष में अपने हिस्से की भागीदारी करें।
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