-हेमा
मुजफ्फर नगर में खतौली के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में 70 छात्राओं को सामूहिक रूप से कई घंटे निर्वस्त्र रखा गया। छात्राओं के अनुसार विद्यालय के शौचालय में खून के धब्बे मिलने पर वार्डन ने कक्षा में 70 छात्राओं को निर्वस्त्र कर एक-एक छात्रा का परीक्षण किया। इस दौरान सभी छात्रायें रोती बिलखती रहीं। और जैसे इतना ही काफी नहीं था बड़ी मैडम (सम्भवतः ये बड़ी वार्डन या प्रिंसीपल हों) ने उनमें से दो छात्राओं को काफी देर तक निर्वस्त्र कर कक्षा में खड़ा रखा और वे उन पर हंस रही थी।
गांव के गरीब और मजदूर परिवार की बेटियों के लिए शुरु की गई आवासीय शिक्षा योजना के तहत ये लड़कियां यहां शिक्षा ले रही थीं। इस घटना के बाद उनमें से 35 से अधिक छात्राओं के अभिभावक लड़कियों को विद्यालय से घर वापस ले गये। अब शायद ही इन लड़कियों में से कोई वापस शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल का रुख करे।
गांव के गरीब और मजदूर परिवार की बेटियों के लिए शुरु की गई आवासीय शिक्षा योजना के तहत ये लड़कियां यहां शिक्षा ले रही थीं। इस घटना के बाद उनमें से 35 से अधिक छात्राओं के अभिभावक लड़कियों को विद्यालय से घर वापस ले गये। अब शायद ही इन लड़कियों में से कोई वापस शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल का रुख करे।
इस तरह की अवांछित अमानवीय घटनायें आये दिन समाचारों की सुर्खियां बनती हैं। दरअसल महिलाओं व लड़कियों के साथ इस तरह की बर्बरता करने वाले लोग मानसिक विकृति के शिकार व वाहक हैं। ये वे लोग हैं जो महिलाओं की सुरक्षा के बहाने महिलाओं की यौनिकता व निजता पर नियंत्रण करते हैं तथा जब महिलायें इसका विरोध करती हैं तो उनको चरित्रहीन करार दिया जाता है, उनका उत्पीड़न किया जाता है और उन पर यौन हमले किये जाते हैं।
महिलाओं को होने वाले मासिक चक्र को इतना गोपनीय, गंदा व घृणित चीज के रूप में चित्रित किया जाता है कि इसके कारण महिलाओं में हीनभावना पैदा होती है। इसके कारण जैसा व्यवहार कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की छात्राओं के साथ किया गया है, यह हो सकता है कि वे मासिक चक्र के दौरान होने वाली समस्याओं व परेशानियों के संबंध में किसी से बमुश्किल ही कोई बात करें, क्योंकि इसके साथ उनके बहुत बुरे अनुभव जुड़ गये हैं।
महिलाओं को नैतिकता व सुचिता के सारे पुरुषकृत मानदण्डों पर कसा जाता है। इन्हीं पुरुषकृत प्रतिमानों के तहत महिलाओं का रजस्वला होना, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया है और जीवन के पुनर्सृजन के लिए प्रकृति द्वारा निर्मित है, भी अपने आप में महिलाओं के लिए एक वर्जना और पवित्रता का एक पर्याय बना दिया गया है। यह बात समाज में इतनी ज्यादा पैठी हुई है कि इसको लेकर महिलायें हीनता व कुण्ठा की शिकार होती हैं। इन पुरुषकृत प्रतिमानों के वाहक पुरुष ही नहीं बल्कि बड़ी तादात में महिलायें भी हैं।
जिस वार्डन ने इन छात्राओं के साथ उनकी यौनिकता का निरीक्षण करने का घृणित, अमानवीय व गैर जनवादी कृत्य किया, उस वार्डन को बर्खास्त कर शासन सत्ता ने अपने कर्तव्य की इतिश्रति कर ली। लेकिन पुरुषकृत उन प्रतिमानों, मूल्यों व विचारों का क्या होगा, जो प्रतिदिन ऐसी विकृत मानसिकता के लोगों को पैदा करती है। इन्हीं पुरुषकृत प्रतिमानों, मूल्यों, विचारों में ढले लोग प्रतिदिन महिलाओं की यौनिकता का निरीक्षण व निगरानी करते हैं। बेटी बचाओ व लव जिहाद के बहाने महिलाओं की आजादी, प्रेम व यौनिकता को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। हाल ही में भाजपा सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में लागू एंटी रोमियो स्क्वायड इसी भावना से परिचालित है। जो कार्य पहले लम्पट गुण्डा वाहिनियां करती थीं। अब वह राजकीय कार्यभार बन चुका है तथा इसके विरोध के स्थान पर कई महिलायें भी समर्थन करती नजर आ रही हैं।
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