बुधवार, 10 मई 2017

उच्च शिक्षा के निजीकरण की ओर एक और कदम

डीयू में स्वायत्त कालेजों का मामला
-राकेश

         पिछले एक माह से डीयू में स्वायत्त कालेजों के मामले के बाद से छात्रों-शिक्षकों-कर्मचारियों में भारी रोष है। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब डीयू के सेंट स्टीफेंस कालेज की गवर्निंग बाॅडी ने कालेज को स्वायत्त घोषित किये जाने पर अपनी सहमति जता दी। गवर्निग बाॅडी की मीटिंग के दौरान व इसके बाद भी सैकड़ों छात्रों-शिक्षकों ने कालेज के इस फैसले पर विरोध दर्ज कराया। कालेज के 500 से अधिक छात्रों ने इस फैसले का विरोध किया। बढ़ते हुए विरोध को देखते फिलहाल कालेज के प्रिंसीपल ने इस फैसले को रोक लिया है। परंतु कालेज प्रशासन व सरकार की मंशा से साफ जाहिर होता है कि निकट भविष्य में इस मामले पर तेजी से आगे बढ़ा जाएगा।

         दरअसल पिछले साल नवंबर माह में यूजीसी द्वारा डीयू के सभी कालेजों को अधिसूचना जारी की गयी थी। जिसमें डीयू से स्वायत्ता से सम्बंधित नियमों को दिशा-निर्देश (गाइडलाइन) में शामिल करने को कहा गया था। यूजीसी के स्वायत्ता संबंधित इन नियमों के अनुसार नेक (एनएएसी) द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दर्जा पाया हुआ कोई भी ट्रस्ट- कालेज स्वायत्ता के लिए आवेदन कर सकता है। कालेजों के आवेदन के बाद यूजीसी द्वारा उन्हें डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया जायेगा। जिसके पश्चात पाठ्यक्रम, फीस, संरचना आदि का निर्धारण करने में ये कालेज स्वतंत्र हो जाएंगे। यही नहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी की मान्यता के बाद ये देश में अपनी शाखाएं भी खोल सकते हैं।

        यूजीसी की इस अधिसूचना के बाद डीयू ने एक कमेटी का निर्माण किया। इस कमेटी का काम डीयू के विभिन्न कालेजों में जाकर उनसे स्वायत्ता के आवेदन संबंधित फार्म को भरवाना था। गाइडलाइन के अनुसार इच्छुक कालेजों को आवेदन के लिए खुद डीयू प्रशासन के पास आना था परंतु डीयू प्रशासन सरकार की इस उच्च शिक्षा विरोधी नीति को लागू करने में इतना लालायित है कि वो खुद कालेजों के पास फार्म भरवाने पहुंच गया। इस कमेटी ने अब तक डीयू के सेंट स्टीफेंस, हिन्दू, हंसराज, श्री वेंकेटेश्वर, लेडी श्रीराम कालेज आॅफ कामर्स तथा पीजीडीएवी कालेजों की गवर्निंग बाॅडी के अध्यक्षों से मुलाकात की है। कमेटी की इस मुलाकात के बाद ही सेंट स्टीफेंस की गवर्निंग बाॅडी ने स्वायत्ता के पक्ष में सहमति जताई थी। जिसका डीयू में भारी विरोध हो रहा है।

        उपरोक्त 6 कालेज डीयू से जुडे़ होने के बावजूद ट्रस्ट का हिस्सा हैं। डीयू के लगभग 70 कालेजों में से 24 विभिन्न ट्रस्टों से जुडे़ हुए हैं। अब तक इनकी कुल ग्राण्ट में 95 प्रतिशत हिस्सा यूजीसी द्वारा तथा 5 प्रतिशत ट्रस्ट द्वारा दिया जाता है। ट्रस्टों की हमेशा से लालसा रही है कि वो इन कालेजों के जरिए भारी मुनाफा कमाए। और जब ये कालेज एक हद तक ख्याती हासिल कर चुके हैं तो ये ट्रस्ट इनके नामों का इस्तेमाल और अधिक मुनाफा कमाने में करना चाहते हैं। नए नियमों के मुताबिक स्वायत्ता का दर्जा प्राप्त करने के बाद ये अपनी शाखाएं भी खोल सकते हैं। स्पष्ट है कि स्वायत्ता के जरिए ये ट्रस्ट अपने कालेजों के नामों का इस्तेमाल कर और अधिक मुनाफा पीटना चाहते हैं।

        लम्बे समय से लगभग सभी सरकारें शिक्षा बजट को निरंतर कम करते जा रही हैं। मौजूदा मोदी सरकार भी इसी दिशा में तेजी से बढ़ रही है। जन सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य में कटौती कर सरकार (जनता) के पैसे को पूंजीपतियों पर लुटाना इसके प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल हैं। इसलिए भी इस स्वायत्त कालेज की योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है। स्वायत्ता का दर्जा मिलने के बाद सरकार इन कालेजों को दी जा रही ग्राण्ट से मुक्त हो जाएगी। तब ये कालेज अपने खर्चों को छात्रों से ही उगाहेंगे। विभिन्न कोर्सो की फीसें बढ़ाकर सभी खर्चों को छात्रों की जेबों से ही निकाला जाएगा। ऐसे में सरकार भी खुश होगी और ट्रस्ट भी। परंतु छात्र जो अब तक इन कालेजों में शिक्षा पा भी ले रहे थे वो भी शिक्षा से दूर हो जायेंगे। डीयू का हिस्सा होने के बावजूद इन कालेजों की फीसें अन्य कालेजों की तुलना में ज्यादा हैं। स्वायत्ता ग्रहण करने के बाद इनकी फीसें कितनी बढ़ चुकी होंगी इसका पता सहज अंदाज से लगाया जा सकता है। स्पष्ट है कि सरकार का ये कदम ‘सबको शिक्षा’ उपलब्ध कराने के बजाए शिक्षा को कुछ पैसों वालों के हाथों की ही बपौती बनाएगा।

         वामपंथी व जनवादी सोच से जुड़े कई शिक्षक-छात्र पहले से ही कैम्पसों की स्वायत्ता का मुद्दा उठाते रहे हैं। इस स्वायत्ता का मतलब हमेशा से कैम्पसों की एकेडमिक स्वतंत्रता से रहा है। यानि कि कैम्पसों में बोलने, पढ़ने, अभिव्यक्ति आदि मामलों में सरकार की घुसपैठ ना हो। कालेज-संबंधित चीजों को तय करने में छात्रों-शिक्षकों कर्मचारियों की भी भूमिका हो। परंतु यूजीसी का मौजूदा कदम इस स्वायत्ता को नकारता है। वे आर्थिक स्वायत्ता को लागू करना चाहते है और बौद्धिक स्वतंत्रता का और अधिक कुचलना चाहते हैं। इस अधिसूचना को लागू करने में डीयू प्रशासन द्वारा अपनाया गया गैरजनवादी कदम भी इन बातों को सही साबित करता है।

         सरकार द्वारा शिक्षा पर बोले जा रहे हमले को मात्र संगठित छात्र-शिक्षकों-कर्मचारी आंदोलन द्वारा ही रोका जा सकता है। मौजूदा कदम के विरोध में भी ये एकता दिखायी दी है। इस एकता के पीछे ‘डीयू’ की पहचान काम करती रही है। स्वायत्ता प्राप्त करने के बाद इन कालेजों से जुड़े छात्रों-शिक्षकों में ये पहचान कमजोर होगी। जो इन कालेजों के आंदोलन के साथ-साथ पूरे देश के आंदोलन को भी कमजोर करेगा। 

        आज सरकार से जुड़े वि.वि. में ही जनवाद के सिकुड़ते जाने की प्रक्रिया को हम तेजी से महसूस कर रहे हैं। कल ये स्वायत्त कालेज एक हद तक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बाद इस प्रक्रिया को और तेजी से आगे बढ़ाएंगे। छात्र-शिक्षक-कर्मचारी आंदोलनों का दमन व उनकी आवाजों को दबाना निजी कालेजों की तरह एक स्वभाविक प्रक्रिया बन जाएगा। और तब हम इसे स्वीकार करने के लिए मजबूर होंगे।

        इसलिए जरूरी हो जाता है कि हम सरकार की मौजूदा योजना की आड़ में छिपे शिक्षा विरोधी फैसले को बेनकाब करें। एक संगठित आंदोलन के जरिए शिक्षा को बेचे जाने के खिलाफ लड़ाई का आगे बढ़ाएं।

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