बुधवार, 10 मई 2017

सीट कटौतीः छात्रों पर बड़ा हमला!

-जावेद

        यूजीसी के 5 मई 2016 की अधिसूचना कहती है कि सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शोध में प्रवेश वहां के शिक्षकों की संख्या के आधार पर ही होने चाहिए। इसके अनुसार प्रोफेसर, ऐसोसिएट प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसर के अंतर्गत क्रमशः 3 एमफिल- 8 पीएचडी, 2 एमफिल- 6 पीएचडी एवं 1 एमफिल-4 पीएचडी छात्र ही आने चाहिए। जेएनयू प्रशासन ने हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद शिक्षक-छात्र संख्या के अंतर को आधार बनाकर शोध सीटों में भारी कटौती कर दी।

        जेएनयू में इस वर्ष एमफिल/पीएचडी में हाने वाले प्रवेश में सीटों की संख्या 1406 से घटकर 194 कर दी गयी है। यानि इस साल एमफिल/पीएचडी के लिए मात्र 194 सीटों पर ही प्रवेश होंगे। इस फैसले के बाद जेएनयू के कई सेंटरों में शोध की एक भी सीट पर प्रवेश नहीं होगा। जेएनयू प्रशासन की प्रवेश प्रक्रिया के खिलाफ जेएनयू के छात्रों-शिक्षकों ने हाईकोर्ट मे याचिका दायर की थी। जिस पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने यूजीसी को ही सही ठहराया।

        जेएनयू प्रशासन ‘प्रत्येक शिक्षक पर अधिक छात्र’ के तर्क पर कोई भी समझदार व्यक्ति सवाल उठा सकता है कि शिक्षक-छात्र अनुपात में सामंजस्य बिठाने के लिए वि.वि. में शिक्षकों की संख्या को क्यों नहीं बढ़ाया जा रहा है? इस सवाल के जवाब में जेएनयू प्रशासन कहता है कि हम जल्द ही 300 शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकालेंगे। शिक्षकों की भर्ती होने तक सीटों में कटौती जारी रहेगी। है ना मजेदार तर्क, यानि सीटों में कटौती कर के छात्रों से शिक्षा का अधिकार पहले छीन लिया जायेगा। उसके बाद शिक्षकों की भर्ती के बारे में सोचा जाएगा। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि नए शिक्षकों की भर्ती आसानी से नहीं की जायेगी। क्योंकि सरकार खुद ही शिक्षकों के पदों में कटौती कर रही है। 

        ऐसा नहीं है कि यूजीसी की ये अधिसूचना केवल जेएनयू में लागू हुई है बल्कि सभी 43 केन्द्रीय विवि को इसे लागू करना पडे़गा। गुजरात, हैदराबाद, पाण्डीचेरी आदि वि.वि. ने इसे लागू भी कर दिया है और यहां भी शोध छात्रों की सीटों में जर्बदस्त कटौती की गयी है। इस हमले का असर देश के लाखों छात्रों पर पड़ना तय है हमारे देश में पहले से ही शोध क्षेत्र का सरकारी लापरवाही व शिक्षा संस्थानों के बुरे हाल के चलते निम्न स्तर बना हुआ है। सरकार के इस फैसले के बाद शोध का स्तर और अधिक गिर जाएगा। सरकार का ये फैसला दिखाता है कि आज व्यवस्था को शोध छात्रों की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाए बाजार पर आधारित विषयों को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। उच्च शिक्षा को तेजी से बाजार की मांग के आधार पर ढाला जा रहा है। शोध छात्रों की सीटों में कटौती भी इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है।

        यूजीसी अधिसूचना पर बोलते हुए एमएचआडी मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने कहा कि जेएनयू में एक शिक्षक के अंर्तगत 20/25 छात्र रजिस्टर्ड हैं इसलिए शिक्षकों से भार हटाने के लिए छात्रों की संख्या कम कर देनी चाहिए। मजेदार बात ये है कि जेएनयू के शिक्षक जावेड़कर जी के तर्कों का खंडन करते हुए बताते हैं कि हमें मौजूदा छात्र संख्या को पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है। जहां तक जेएनयू में छात्र-शिक्षक अनुपात की बात है तो 2015-16 में यहां 565 शिक्षकों पर 4990 शोध छात्र थे। जिसका अनुपात 8.83 बैठता है। ये बात सच है कि ये आकडे़ यूजीसी के मौजूदा नियमों से कुछ ज्यादा हैं परंतु जावेड़कर जी के दिए गए आंकड़ों से बेहद कम। साफ है कि हमारे शिक्षा मंत्री जेएनयू के बारे में झूठ बोलकर अपनी छात्र विरोधी नीति को लागू करना चाहते हैं।

        अब तक की सभी सरकारें शिक्षा बजट में निरंतर कटौती करती रही है। मौजूदा बीजेपी सरकार तो पिछली सरकारों से भी दो कदम आगे है। इसने शिक्षा बजट को कम करने के साथ-साथ लगभग डेढ़ साल पहले शोधार्थी छात्रों की छात्रवृत्ति को भी बंद करने की कोशिश की थी। दरअसल यूजीसी द्वारा एमफिल व पीएचडी छात्रों को क्रमशः 5 व 8 हजार प्रतिमाह छात्रवृत्ति दी जाती है। जिसे डेढ़ साल पहले बीजेपी सरकार ने खत्म करने की कोशिश की थी। उस समय छात्रों के ‘आक्यूपाई आंदोलन’ के बाद सरकार इस कदम को लागू नहीं कर पायी थी। परंतु अब सीटों में कटौती के जरिए दूसरे तरीके से इस प्रक्रिया को लागू किया जा रहा है। जब पढ़ने वाले छात्र ही नहीं रहेंगे तो छात्रवृत्ति भी किस को दी जाएगी। इस तरह सीटों में कटौती के जरिए सरकार द्वारा शिक्षा पर किया जा रहा खर्च और कम हो जाएगा।

        सीटों में कटौती छात्रों को प्राइवेट कालेजों की ओर भी धकेलेगी।एमफिल/पीएचडी करने की चाहत रखने वाले छात्र अब केन्द्रीय वि.वि. में प्रवेश नहीं ले पायेंगे। मजबूरीवश उन्हें शोध के लिए प्राइवेट संस्थानों की ओर रुख करना पडे़गा। इसकी मार सबसे अधिक गरीब मेहनतकश परिवारों से आने वाले छात्रों पर पडे़गी। जो छात्र सरकारी मदद के चलते अब तक उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी लेते थे वे अब सीधे उच्च शिक्षा से बाहर हो जाएंगे।

        यूजीसी की अधिसूचना कहती है कि ‘नेट क्वालीफाई करने वाले छात्रों के पीएचडी में प्रवेश के लिए परीक्षा के नियमों को संस्थान तय कर सकते हैं? इससे पहले नेट क्वालीफाई छात्रों को एमफिल/पीएचडी में प्रवेश के लिए कोई परीक्षा नहीं देनी पड़ती थी। एक अतिरिक्त परीक्षा का भार इन छात्रों को भी प्राइवेट संस्थानों की ओर जाने को मजबूर करेगा। इस प्रकार इस पूरी प्रक्रिया का नतीजा अन्ततः उच्च शिक्षा के निजीकरण को बढ़ाएगा।

        कुल मिलाकर यूजीसी का ये कदम उच्च शिक्षा में सरकारी खर्च को कम करके उसे प्राइवेट हाथों में सौंपने की प्रक्रिया का हिस्सा है जिसके खिलाफ आम छात्रों को सड़कांे पर उतरना ही पड़ेगा।

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