-दीपक
केन्द्र में मोदी सरकार आने के बाद से शिक्षा-संस्थानों और छात्रों पर हमले तेज हुए हैं। अभी हाल में डीयू के रामजस कालेज में आरएसएस के छात्र संगठन ने एक सेमिनार पर हमला बोला था। सेमिनार में आए छात्रों-शिक्षकों के साथ उक्त संगठन द्वारा मारपीट की गयी। अगले दिन इस घटना का विरोध कर रहे छात्रों-शिक्षकों पर पत्थरों से हमला किया गया। एबीपीपी सेमिनार में जेएनयू के शोध छात्र उमर खालिद को बुलाए जाने का विरोध कर रहा था। उसका कहना था कि उमर एक देशद्रोही है इसीलिए उसे सेमिनार में नहीं बुलाया जाना चाहिए। यही नहीं एबीवीपी की गुण्डागर्दी का विरोध कर रहे डीयू के सभी शिक्षकों को उक्त संगठन देशद्रोही के तमगे से नवाज रहा था।
रामजस की घटना केवल एक मामला नहीं है बल्कि भाजपा सरकार बनने के बाद से ‘देशद्रोही’, ‘हिन्दू विरोधी’ आदि-आदि आरोप लगाकर छात्रों और शिक्षा संस्थानों पर इस सरकार द्वारा हमला किया गया है। अपने तीन सालों में ही ये सरकार देश के कई प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों व उसके छात्रों को देशद्रोही घोषित कर चुकी है। हर जगह इनके तरीके व कुतर्क भिन्न-भिन्न होते हुए भी उनमें समानता थी और हर जगह उन ताकतों को देशद्रोही घोषित किया गया जो सरकार की जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश कर रहे थे। जो सच बोलने की हिम्मत दिखा रहे थे। जो लगातार सिकुड़ते जनवादी स्पेस को विस्तारित करने की कोशिश कर रहे थे।
इन तीन वर्षों में मोदी सरकार द्वारा हमले की मार झेलने वाले कुछ शिक्षा-संस्थानों का जिक्र लेख में किया जा रहा है।
आईआईटी मद्रास- अब तक अपनी शिक्षा के चलते प्रसिद्धी पाने वाला ये संस्थान उस समय सुर्खियों में आया जब इसके एक छात्र संगठन ‘अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल (एपीएससी) को प्रशासन ने बैन कर दिया। एपीएससी आईआईटी मद्रास के छात्रों के बीच मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश करने का काम करता था। साथ ही अंबेडकर पेरियार आदि लेखकों के लेखों पर स्टडी सर्किल भी आयोजित करवाता था। मोदी सरकार जिसे सत्ता में आए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था, ने इसे जातिवादी-हिन्दू विरोधी घोषित कर इस पर बैन लगवा दिया। हुआ यूं कि इस संगठन के खिलाफ एक बेनामी चिट्ठी तत्कालीन एमएचआरडी मंत्री के कार्यालय में पहुंची। इस चिट्ठी के आरोपों की जांच करने के बजाए मंत्री महोदया ने तत्काल आईआईटी प्रशासन से उक्त संगठन पर कार्यवाही के आदेश दिए। जिसके बाद आईआईटी प्रशासन ने उक्त संगठन पर बैन लगा दिया।
अपने कार्यकाल में मोदी सरकार का देश के छात्रों को ये पहला तोहफा था। इस कदम के माध्यम से ये साफ बताया जा रहा था कि अब सरकार की आलोचना करना, विभिन्न लेखों-विचारों पर वाद-विवाद करना छात्रों को बंद कर देना चाहिए। क्योंकि अब सत्ता में ऐसी सरकार आ चुकी है जो अपनी आलोचना से घबराती है। कि जिसके पास ‘हिन्दू विरोधी’, ‘देशविरोधी’ आदि हथियार मौजूद हैं। खैर एपीएससी के छात्रों को देशद्रोही के तमगों से नहीं नवाजा गया। सरकार ने ये हथियार बाद के लिए छुपा कर रखे थे।
मोदी सरकार के पहले हमले व मीडिया में उक्त खबर के आने के बाद देशभर में इस फैसले के विरोध में चलते एपीएससी से बैन हटा दिया गया। परंतु उक्त मामले ने इस बात के साफ संकेत दे दिए थे कि देश के छात्रों के लिए आगे की राह कठिन होने वाली है।
एफटीआईआई- मोदी सरकार द्वारा दूसरा बड़ा हमला पुणे के ‘फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट’ (एफटीआईआई) पर बोला गया। यहां हमले का तरीका भिन्न था। जून 2015 में सरकार ने गजेन्द्र चैहान की नियुक्ति इस संस्थान के अध्यक्ष पद पर कर दी। इसके साथ ही 4 अन्य आरएसएस के सदस्यों की नियुक्ति इसकी गवर्निंग कमेटी में कर दी गयी। गजेन्द्र चैहान की अध्यक्ष पद पर भर्ती करने के लिए सरकार ने सारे नियम कानूनों को किनारे रख दिया। यही नहीं आरएसएस से जुड़े होने के अलावा चैहान के पास इस पद के लिए आवश्यक कोई योग्यता नहीं थी। संस्थान को भगवा रंग में रंगने की साजिश के तहत चैहान की नियुक्ति की गयी थी। जिसे छात्र बेहतर तरीके से समझ रहे थे। इसलिए चैहान व अन्य लोगों की नियुक्ति के खिलाफ सारे छात्र 11 जून से हड़ताल पर चले गये।
पूरे देश के छात्र-शिक्षक, फिल्मकार, अभिनेता आदि एफटीआईआई के छात्रों का समर्थन कर रहे थे तो दूसरी तरफ सरकार बहादुर छात्रों के आंदोलन को तोड़ने-बदनाम करने की हर संभव कोशिश कर रही थी। एक तरफ सरकार आंदोलन का दमन कर रही थी तो दूसरी तरफ आंदोलनकारी छात्रों को ‘हिन्दू विरोधी’, ‘माओवादी’ आदि विशेषणों से नवाज रही थी। तमाम दमन को झेलते हुए भी छात्रों ने 139 दिन तक लंबी हड़ताल को चलाया परंतु मोदी सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटी। गजेन्द्र चैहान व अन्य अपने-अपने पदों पर बने रहे। एक तरह से ये आंदोलन मांगों को मनवा पाने में नाकाम रहा लेकिन शिक्षा के भगवाकरण के खिलाफ संघर्ष की जो मशाल एफटीआईआई के छात्रों ने जलायी वो इस फासिस्ट दौर में लंबे समय तक भारत के छात्र आंदोलन को राह दिखाती रहेगी।
हैदराबाद विश्वविद्यालय- पिछले साल भी शुरुआत में ही संघी सरकार के हमलों का गवाह हैदराबाद वि.वि. बना। ये हमला इतना तीखा था कि इसके चलते एक दलित छात्र रोहित वेमुला को आत्म (हत्या) करनी पड़ी। रोहित की आत्महत्या के बाद पूरे देश के छात्र एक बार फिर से सड़कों पर उतरने लगे। वे शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी, भाजपा सांसद बंडारू दत्तात्रेय व एबीवीपी को रोहित की मौत का जिम्मेदार मानते हुए तीनों पर कार्यवाही की मांग कर रहे थे। दरअसल अगस्त 2015 में एबीवीपी के नेता सुशील कुमार ने रोहित समेत अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन (एएसए) के 5 छात्रों पर मारपीट करने का आरोप लगाया था। सबूत के तौर पर उन्होंने मेडिकल रिपोर्ट भी प्रस्तुत की थी। बाद की जांचों ने साबित किया कि ये मेडिकल रिर्पोट फर्जी थी और सुशील कुमार का दावा झूठा था। खैर सुशील कुमार के आरोपों को आधार बनाकर भाजपा मंत्री दत्तात्रेय ने एक चिट्ठी एमएचआरडी को लिखी। दत्तात्रेय लिखते हैं- ‘पिछले कुछ समय से हैदराबाद वि.वि. जातिवादी, चरमपंथी व राष्ट्रविरोधी राजनीति का अड्डा बनता जा रहा है।’ एएसए पर इस राजनीति को करने का आरोप लगाकर दत्तात्रेय द्वारा स्मृति ईरानी से इनके खिलाफ ठोस कदम उठाने की मांग की गयी थी। जिसके जवाब में एमएचआरडी ने वि.वि. प्रशासन पर रोहित व उनके साथियों पर कार्यवाही करने का दबाव बनाया तथा प्रशासन ने बिना किसी सबूत के रोहित समेत 5 छात्रों को निलंबित कर दिया। रोहित इस आघात को सह नहीं पाया और 17 जनवरी को उसने आत्म (हत्या) कर ली। रोहित द्वारा गले में लगाए गये फंदे को तैयार करने का काम मोदी सरकार द्वारा किया गया। उसे राष्ट्रविरोधी घोषित कर उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया।
रोहित की मौत के बाद उपजे गुस्से में लाखों छात्र देश के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर उतरे। हत्या के आरोपियों को सजा देने के बजाए ये बेशर्म सरकार हत्यारों को पुरस्कृत करती रही। सुशील कुमार का सफेद झूठ पकडे़ जाने के बावजूद उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अप्पा राव को दोबारा वीसी बना दिया गया। इस आंदोलन ने एक हद तक संघियों को पीछे धकेलने का काम किया परंतु एक संगठित आंदोलन ना बन सकने के कारण ये अपनी परिणती तक नहीं पहुंच सका।
जेएनयू- रोहित की मौत की आंच में झुलसती सरकार ने खुद को बचाने के लिए छात्रों पर नया हमला बोल दिया। अबकी बार संस्थान बदल चुका था। फरवरी 2016 में देश के सबसे प्रतिष्ठित व अपनी गुणवत्ता के लिए कई बार राष्ट्रपति पुरस्कार जीत चुके जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को हमले का निशाना बनाया गया।
9 फरवरी 2016 को जेएनयू छात्रों के एक हिस्से द्वारा अफजल गुरू की बरसी पर सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया था। एबीवीपी के छात्रों ने कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाने का आरोप लगाकर कार्यक्रम में हंगामा किया। इस घटना के बाद संघी सरकार व मीडिया द्वारा ऐसा माहौल बनाया गया कि जेएनयू में छात्र नहीं बल्कि आतंकवादी तैयार होते हों। खुद को देशभक्त कहने वाली ये सरकार एक तरफ अफजल के नाम पर सामान्य छात्रों की आवाजों को कुचल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ अफजल को शहीद घोषित करने वाली पीडीपी के साथ कश्मीर में सरकार बना रही थी। इस सरकार के अनुसार जेएनयू छात्रों का अफजल की बरसी मनाना ‘देशद्रोही’ जबकि पीडीपी के साथ सरकार बनाना ‘राष्ट्रवादी’ गतिविधि है।
पूरे डेढ़ माह तक जेएनयू के नाम पर समाज में साम्प्रदायिक जहर घोलने के बाद सरकार इस मामले में चुप्पी लगाकर बैठ गयी। लेकिन छात्रों ने भी सरकार के हर दमन का मुंह तोड़ जवाब दिया। कन्हैया की गिरफ्तारी से लेकर सरकार के हर दमनकारी कदम के जवाब में हजारों छात्र सड़कों पर उतर रहे थे। पूरी दुनिया के विभिन्न वि.वि. से छात्र जेएनयू के छात्रों के समर्थन में संदेश भेज रहे थे। इतने बड़े छात्र आंदोलन के बावजूद ये आंदोलन जनता तक अपनी पहुंच नहीं बना पाया और सरकार संघी प्रचार तंत्र का इस्तेमाल कर जनता के बीच जेएनयू के खिलाफ जहर घोलने में एक हद तक कामयाब रही।
हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय- पिछले साल 21 सितंबर को एबीवीपी के हरियाणा केन्द्रीय वि.वि. में जमकर उत्पात मचाया। विश्वप्रसिद्ध कहानीकार व उपन्यासकार महाश्वेता देवी की मौत के बाद वि.वि. के अंग्रेजी विभाग ने महाश्वेता देवी को श्रद्धांजली देने के लिए एक नाटक का मंचन किया। नाटक महाश्वेता देवी की कहानी ‘द्रोपदी’ पर आधारित था। इस कहानी में भारतीय राजसत्ता द्वारा आदिवासियों पर ढाए जा रहे जुल्म व उनके संघर्ष का वर्णन था। नाटक के मंचन के बाद एबीवीपी के सदस्यों द्वारा इसका वीडियो पास के सभी इलाकों में दिखाया गया और इनके द्वारा अफवाह फैलायी गयी कि नाटक में भारतीय सैनिकों का अपमान किया गया है। नाटक का मंचन करवाने वाले शिक्षकों को देशद्रोही घोषित कर दिया गया। एबीवीपी द्वारा शिक्षकों की बर्खास्तगी की मांग के समय नाटक की तारीफ करने वाला वि.वि. प्रशासन भी शिक्षकों के विरोध में खड़ा हो गया। प्रशासन द्वारा शिक्षकों पर माफी मांगने का दबाव बनाया जाने लगा। निर्भीक शिक्षक व छात्र अपनी बातों पर डटे रहे और उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया।
महाश्वेता देवी को देश के कई सम्मानित पुरस्कारों से नवाजा गया है। यही नहीं उनकी मौत पर अमित शाह व सुषमा स्वराज तक ने उनके काम की सराहना करते हुए ट्वीट किये थे। फिर उनकी ही कहानी पर आधारित नाटक देशद्रोही कैसे हो सकता है?
ये बात संघियों की समझ से परे है। उनकी बातें तर्क और वैज्ञानिकता से कोसों दूर हैं। उन्हें तो बस इन सारे बहानों से देश का ध्रुवीकरण करना है।
कैम्पसों में छात्र अधिकारों पर संघी हमलों के गवाह इलाहाबाद, जादवपुर वि.वि. बीएचयू, बरेली कालेज आदि भी रहे हैं। यहां भी एबीवीपी द्वारा संघी सोच से वशीभूत होकर छात्रों पर हमले किये। कार्यक्रमों में तोड़फोड से लेकर छात्रों के साथ मार पिटाई इनके द्वारा की गयी। यहां तक की छात्राओं के साथ भी बदसलूकी इनके द्वारा की गयी। इन सभी कार्यवाहियों में इन्हें कालेज प्रशासन व शहर प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला।
इन सारे विश्वविद्यालयों में छात्रों पर हमले के तरीके अलग-अलग हों परंतु ये एक समानता को लिए हुए हैं। सभी जगह 20-25 साल के सामान्य छात्रों को देश के लिए खतरा घोषित कर दिया गया। क्या वास्तव में इन छात्रों से देश को खतरा है?
इनमें से कई जगह बीजेपी सफल रही तो कुछ जगह उसे आंशिक सफलता मिली। परंतु इन आंदोलनों को जनता से काटने व जनता के दिमागों में अंधराष्ट्रवाद व साम्प्रदायिकता का जहर भरने में उसे पूरी सफलता मिली।
समाज में फैलते इस जहर का जवाब क्रांतिकारी संघर्ष ही है। फासीवादी ताकतों का कदम ब कदम मुकाबला करना होगा। छात्रों को अपने आंदेालनों को जनता के बीच ले जाने के प्रयास करने होंगे। साथ ही जनता के संघर्षों को कैम्पसों में लाना होगा। इस प्रकार स्थापित क्रांतिकारी फौलादी एकता ही समाज को और हमारे कैम्पसों को फासीवादी हमलों से सुरक्षित रख सकती है।
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