बुधवार, 10 मई 2017

युवा

(यह लेख मारिस हिन्दुस की पुस्तक ‘‘ह्यूमिनिटी अपरूटेड’’ के एक अध्याय का अनुवाद है। मारिस हिन्दुस रूस में पले-बढ़े एक अमरीकी लेखक थे। क्रांति के बाद रूसी समाज में हुए बदलावों को देखने ये रूस गये और उससे काफी प्रभावित हुए। अपनी पुस्तकों में उन्होंने क्रांति के बाद हुए बदलावों का सुरूचिपूर्ण वर्णन किया है। ‘‘ह्यूमिनिटी अपरूटेड’’ पुस्तक 1930 के आसपास के रूस का वर्णन करती है  - सम्पादक)

        ‘‘यह वर्ष 107 है’’ एलेक्सेव टाॅलस्टाय के हालिया कहानियों का एक पात्र कहता है और पाठक तुरंत समझ जाता है कि लेखक और पात्र दोनों का वर्ष 107 से आशय न तो ईसा पूर्व से है और ना ही ईसवी सन से है बल्कि बोल्शेविक क्रांति के महीने अक्टूबर से, अक्टूबर पश्चात से है। कितने समान रूप से ये शब्द उस रूसी लड़की, मास्को विश्वविद्यालय की एक छात्रा से मिलती जुलती है जिसने मेरे इस सवाल का कि क्रांतिकारी युवा के जीवन की कुंजी क्या है, जवाब दिया, ‘‘हमेशा याद रखिए कि हमारे लिए दुनिया बस अब शुरू हुई है’’।

         दुनिया की बस अब शुरुआत हुई है! विज्ञान के अलावा अन्य क्षेत्रों में अब से पहले रूस में या अन्य देशों में अक्टूबर से पहले जो कुछ भी हुआ है उसका कोई खास महत्व नहीं है। इंसान ने चमत्कारों और युटोपिया को टटोला, उसने भ्रमित और रूग्ण हुआ और मदहोश हुआ। सच्ची वास्तविकता की उसको कोई समझ नहीं थी। विज्ञान ने ज्ञान के नये आयामों को उसके सामने खोला और इसके सबसे कट्टर शत्रु, प्रकृति के साथ सामंजस्य में लेकर आया। लेकिन विज्ञान की उपलब्धियां कितनी ही शानदार और महान क्यों न हो, लेकिन इंसान संपदा और आनंद की असमानताओं की निरंतरता के अधीन रहा। वास्तविक प्रबोधन और सच्चेपपन की तरफ बढ़ने के एकमात्र प्रयास -फ्रांसीसी क्रांति को खून में डुबो दिया गया। सर्वहारा, ‘‘हमारे समय का वास्तविक नायक’’ स्वतंत्र नहीं था और उत्पादन के साधन अभी तक उसके अधीन नहीं आए थे। इसलिए इंसान अन्यायों के बोझ तले दबा हुआ था पूरा अतीत आतंक और निराशा से बुना गया था। जिसमें बीच-बीच में क्रांतिकारिता की बिजली चमक जाती थी।

        जीवन के प्रति इस रुख के गहरे निहितार्थ को देखिए। दूसरे देशों के नौजवानों की आत्मा को जो भावनात्मक पोषण मिलता है उसके प्रति रूसी युवा जो उपेक्षा बरतता है उसे देखिए। धर्म, नैतिकता, परिवार, राष्ट्रवाद, सामाजिक न्याय, सभी जिस रूप में बाहरी दुनिया में देखा जाता है वह बेकार है और ये न तो प्रेरणा प्रदान करते हैं और न ही दिशा निर्देश। मापदंड, परंपराएं, नतीजे, ओज सभी चीजें जो इनके इर्द-गिर्द खड़ी होती हैं उन सबको रूसी युवा ने कूडे़ के ढेर की तरह किनारे लगा दिया है। लेनिन के इस हिदायत के बावजूद कि नए इंसान को पुराने बुर्जुआ के उपयोगी सांस्कृतिक विरासत को ग्रहण करना चाहिए, नौजवानों में अतीत के प्रति या अतीत के जीवन जीने और सोचने के तरीकों के आदी लोगों के प्रति कोई उत्साह नहीं है और मुश्किल से कोई सम्मान है। 

        इसलिए रूस में नौजवान और उम्रदराज लोगों, पिताओं और पुत्रों के बीच की जीवंत टकराहट अब तक रूस में और शायद पूरी दुनिया में जितना देखा गया है उनमें सबसे तीखा है। तुर्गेनेव के ‘‘पिता और पुत्र’’ में बाजारोव के बड़े लोगों के प्रति नृशंस हमले आधुनिक नौजवानों के द्वारा बड़े लोगों पर जो हमले की बौछार की जाती रही है, उसके सामने नरम मालिश नजर आती है। रूसी क्रांतिकारी नौजवानों के द्वारा उम्र के प्रति दिखाई जा रही गहरी भावनात्मक उपेक्षा के सामने अमेरिका और यूरोप में नयी पीढ़ी के तथाकथित विद्रोह हंसी-मजाक या मौज हैं। भावना और आचरण में कोई भी दो दुनिया इतनी पराई नहीं हो सकती है जितने की आज रूस में नौजवान और बजुर्ग हैं। दोनों ही एक ही घर में रहते हो सकते हैं, एक ही मेज पर खाते हो सकते हैं, एक ही छत के नीचे सोते हो सकते हैं और संभवतः एक ही चारपाई पर भी, जैसा कि रूस में प्रायः होता है, फिर भी दोनों के बीच ऐसी खाई है जिसको पाटा नहीं जा सकता। मैं गांव या शहर के किसी भी ऐसे घर में नहीं गया जहां पिता और बच्चों के बीच चल रहे अनवरत जंग के प्रमाण न मिले हों। वास्तव में, जैसा कि रूसी नौजवान दावा करते हैं और जैसा कि उनके एक नेता ने कहा कि सर्वहारा द्वारा कब्जे का लाल अक्टूबर यह युग टेन कमांडमेंन्टस और स्वर्णिम नियम की सभ्यता को अन्तिम हद तक चुनौती और युद्ध है।

        मैं, निस्संदेह, उन नौजवानों की बात कर रहा हूं जिनके हृदय और आत्मा को इस नए धर्म ग्रन्थ ने जीत लिया है। यह नौजवान नयी पीढ़ी के जीवन का मुख्य हिस्सा हैं, लेकिन इसने सभी को आच्छादित नहीं किया है। इस दायरे के बाहर नौजवानों के दो समूह हैं जिनका कि भले ही संक्षेप में जिक्र जरूरी है। क्योंकि ये ऐसी समस्या और त्रासदी दोनों ही है जिसका अभी समाधान नहीं हुआ है। अपने सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर में  ये दोनों समूह एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। तब भी दोनों ही ‘नो मेंस लैण्ड’ में अटक गये हैं, एक अपनी मर्जी से, दूसरा मजबूरी में। दोनों ने पुरानी सभ्यता में अपनी जड़ को खो दिया है और नए के साथ नहीं जुड़ पाया है। दोनों ने ही नए शासन को इस रूप में लिया है कि ये है और रहेगा, लेकिन सामाजिक और भावनात्मक तौर पर ये उससे अलगाव में हैं। दोनों ही भटक रहे हैं, एक लंगर की तलाश में और उसको न ढूंढ पाने की वजह से और दूसरा निश्चित सामाजिक आधार से जुड़ने के प्रति हिकारत की वजह से।यह बाद वाला नौजवान है जिनसे कि लंपटों के झुंड पैदा होते हैं जिनसे आज मुख्यतया शहर का रूसी समुदाय बिंधा हुआ है। और जो कि जब- तब कोई बर्बरता, मसलन किसी महिला पर सामुहिक हमला, बरतते हैं जो कि पूरे राष्ट्र को क्रोध और भय में डुबो देता है। एक चीज जिसकी इसने क्रांतिकारी युवा से नकल की है वह है सामुहिक जीवन, लेकिन भेडियों की झुंड की तरह आचरण करता है। यह एकजुट होकर हमला करता है। मेरे सामने किताबों का गठ्ठर है जो इन नौजवानों द्वारा पिछले सालों में बरते गये अत्याचारों का वर्णन करता है। इनको पढ़ना कष्टदायक होता है। ये नौजवान न सिर्फ घर, स्कूल और चर्च की पहुंच से बाहर हैं बल्कि ये क्रांतिकारी जनता की राह के पहुंच के बाहर भी। ये तात्कालिक आवेगों की लहर पर सवार रहते हैं, न तो काई जिम्मेदारी महसूस करते हैं, न ही कोई नियंत्रण। सभी देशों में निस्संदेह ऐसे असामाजिक नौजवान पाए जाते हैं लेकिन अन्य स्थानों की तुलना में यह रूस में ज्यादा साफ दिखाई देता है और शायद इसका कारण यह है कि पुरानी दुनिया और उसकी सीमा रेखाएं मिट गयी हैं।

        यह नौजवान जनता की राय के प्रति अभेद्य हैं, इसलिए अपने तरीके से प्रसन्न है। यह अपने आप में और अपने लिए जीता है। दूसरे समूह के धारा से अलग नौजवान का भाग्य ज्यादा त्रासद है। सिर्फ इसलिए क्यांेकि बाहर की दुनिया से प्रतिक्रिया के संबध में यह जरूरत से ज्यादा संवेदनशील है। इसमें सामाजिक जिम्मेदारी की एक भावना है और अगर दुनिया का नहीं भी तो यह रूस का सबसे ज्यादा दुखी नौजवान है। यह सोच रहा है कि कब इसकी व्याकुलता का अंत होगा। यह क्रांति को नियति के बतौर स्वीकार करता है। यह इसके साथ दोस्ती को मजबूर है, लेकिन इसे किनारे लगा दिया जाता है। इसे जुलूस में कोई जगह नहीं मिलती। इसे पर्याप्त पवित्र नहीं माना जाता। इसकी विरासत क्रांतिकारियों की नजर में दागदार है। यह ज्यादातर बुद्धिजीवियों या पुराने संपत्तिधारक या पेशेवर वर्गों से आया है और क्रांतिकारियों के लिए यह अपने परिवेश की वजह से कुछ ‘‘बिगडा हुआ और पिलपिला’ है, एक ऐसा आरोप जो कि पूरी तरह निराधार नहीं है। यह युवा भले ही अपने बड़ों से बौद्धिक तौर पर भिन्न हो लेकिन इसने अभी उनसे अपना सम्बंध विच्छेद नहीं किया है। इसका जीवन के प्रति भय और मोह इतना ज्यादा है कि यह इसे अपने हाथ में नहीं ले सकता और पेड़ से सूखे ठूंठ को जैसा तोड़ा जाता है, वैसे नहीं तोड़ सकता। यह अपने बड़ों की चिंताओं और द्वंद्वों के प्रति संवेदनशील है और उनके लिए और उनके साथ घुलता रहता है। इस नौजवान के पास बौद्धिकता, महत्वकांक्षा, कल्पनाशीलता है। यह अपने लिए कुछ करना चाहता है। पसंदीदा स्वर्ग  के लिए इसकी चाहत संभवतः क्रांतिकारी नौजवानों की तुलना में ज्यादा गहरी है लेकिन उससे ज्यादा यह अपनी क्षमताओं का विकास करना चाहता है। लेकिन यह रास्ते बंद देखता है। यह उसके लिए नहीं है। यह विदेश भागना चाहता है लेकिन उसके पास साधन नहीं हैं और उसे हमेशा इसकी इजाजत नहीं मिलती। जब इसको शिक्षा की उच्चतर संस्थानों में दाखिला मिलता है तो यह अपने आप को निर्वासित सा, एक नितांत अजनबी की तरह महसूस करता है। क्रांतिकारी संगठन इसको अपने आतंरिक जीवन से बाहर रखते हैं। इसको अपने संसाधनों पर छोड़ दिया जाता है, इसकी अपनी आंतरिक ताकत और कभी-कभी धैर्य गिर जाता है और साहस टूट जाता है। यह अपने खोल में चला जाता है इसकी संवेदनशीलता इसको डंसती है, मरणशीलता हावी होती है और ‘‘जीवन जीने के लिए कुछ भी अच्छा नहीं है’’ नतीजा आत्महत्या होता है, गोली मारकर, जहर द्वारा और कभी-कभी फांसी लगाकर।

        फिलहाल इस अध्याय में मैं क्रांतिकारी युवा के बारे में बात करना चाहता हूं; वह युवा जो कि क्रांति का एकीकृत और जीवंत हिस्सा है। यह देश का रचनाशील युवा है। यह रूस के भविष्य का शासक है और यह बात इसे पता है। वस्तुतः यह आश्चर्यजनक रूप से देश के शासकीय उपकरण का एक हिस्सा अभी ही बन चुका है। नौजवानों की सत्ता में विस्मयकारी वृद्धि आज के रूस में प्रभावित करने वाली कोई कम बड़ी विशेषता नहीं है। राज्य के न्यायिक प्रशासनिक और आर्थिक कार्यों में नौजवान जिम्मेदारी की जितनी ऊंची स्थितियों में हैं उतना किसी भी देश में नहीं है। परिपक्व उम्र को उनके तथाकथित अनुभव और समझ की गहराई के लिए दुनिया के दूसरे देश नेतृत्व के स्थानों पर नियुक्ति के लिए नीति के रूप में स्वीकार करते हैं उसे ही रूस से खारिज कर दिया है। वे पूरी तरह से तकनीकी क्षेत्रों के अलावा अन्य कहीं भी पुराने दिनों में पले-बढ़े लोगों की ‘‘निर्णय की गहराई’’ को रखते हैं। वे इसकी बजाए अनुभवहीन नौजवानों के जोखिम को स्वीकार करते हैं जिनके पास कम से कम क्रांति की भावना तो समाई हुई है।

        क्रांतिकारी नौजवान अपने आप में अलग दुनिया है जो कि मजबूती से गठा हुआ है, दृढ़तापूर्वक अनुशासित है और जिसकी अभिव्यक्ति जीवंत और स्पष्ट है। सोलह साल के चैबीस साल के बीच के नौजवानों के लिए कोस्मोसोल (युवा कम्युनिस्ट) है। छह साल से सोलह साल के बीच के किशोरों के लिए पायोनियर है। सात साल के छोटे बच्चों के लिए अक्टूबरवादी है। कोस्मोसोल जो कि सबसे बड़े नौजवानों से बना हुआ है, सभी नौजवानों का नेता है। हर जगह इसके अपने भवन, पुस्तकालय, स्कूल, क्लब-गृह, खेल के मैदान, छोटे सिनेमाघर, पार्क और कई जगह अपने न्यायालय हैं। इसका अपन प्रकाशन है जिसका आधार व्यापक, गहरा और मजबूत है। इसका मास्को का दैनिक मुखपत्र कोस्मोसोलस्काया प्रावदा रूस के समाचार पत्रों में सबसे जीवंत, सबसे साहसी, सबसे स्पष्टवादी और सबसे सुखद है। यह एक मात्र समाचार पत्र है जिसमें हास्य का पुट है। इसका मासिक समाचार पत्र दि यंग गार्ड चुनौती और आक्रामकता से लबालब रहता है। इसके पुस्तक प्रकाशन गृहों ने क्रांति के सबसे सनसनीखेज उपन्यास दिए हैं जो सभी नौजवानों की समस्याओं और कठिनाईयों से संबंधित हैं।

        इन बहुपक्षीय माध्यमों से और बैठकों में चर्चाओं के माध्यम से नौजवान बाहरी दुनिया के सामने अपने को खोलते हैं, अपनी आशाओं और हताशाओं को, अपनी सफलताओं और उससे ज्यादा अपनी असफलताओं को। इसकी आवाज रूस में सबसे ज्यादा तेज, सबसे ज्यादा स्पष्ट और सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं।

        नौजवानों का मुख्य उद्देश्य कम्युनिस्ट समाज के जीवन के लिए अपने को तैयार करना है। इसलिए यह अपने आप को ऐसे आचरण और मापदंडों का आदी बनाने का प्रयास कर रहा है जो वैसे समाज के अनुकूल हो। सबसे पहले यह नयी राजनीतिक आस्था से अपने आप को सराबोर कर रहा है। यह आस्था इसके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है, इसका दिशा-निर्देशन और प्रेरणा है, इसका रोमांच है। इसीलिए राजनीतिक शिक्षा पूरे रूसी शिक्षा की इतनी महत्वपूर्ण विशेषता है। रूसी स्कूलों में सबकुछ राजनीतिक है, विशेष तौर पर छोटी कक्षाओं में। यहां तक कि भूगोल, भूगर्भ विज्ञान, जीव विज्ञान में भी। दुनिया के किसी भी देश में यहां तक की फासीवादी इटली में भी युवा राजनीतिक विचारों और राजनीतिक उत्साह में उतना ओत-प्रोत नहीं रहता जितना कि रूस में। नौजवानों को नयी राजनीतिक आस्था में सिर्फ भरोसा करना नहीं सिखाया जाता, बल्कि इसमें आनंद उठाना इसके लिए संघर्ष करना और इसके लिए मर जाना भी सिखाया जाता है।
          
अगले अंक में भी जारी..........

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