बुधवार, 10 मई 2017

घटते रोजगार बढ़ते वादे: आकड़ों की जुबानी

-महेन्द्र

        2015 में छत्तीसगढ में चपरासी की 368 पदों के लिए 23 लाख लोगों ने अपना आवेदन किया। चैकाने वाली बात यह है कि इनमें से मात्र 30 चपरासी के पदों के लिए 7500 इंजीनियरिंग व अन्य स्नातक थे जबकि 255 पीएचडी घारक थे। जबकि पद के लिए अर्हता 5वीं पास थी। ये बात भारत में बेरोजगारी खासकर पढ़े लिखे डिग्रीधारी युवाओं के मध्य बेरोजगारी की भयावहता को बयां कर देती है।

        2014 में जब लोकसभा के चुनाव हो रहे थे तो सपनों के सौदागर नरेन्द्र मोदी ने हर साल 2.5 करोड नौकरियां देने का सपना बेचा था अपने भाषणों में भारत को युवाओं का देश कहकर संबोधित करने वाले सौदागर ने युवाओं के वोटों को हासिल करने के लिए युवाओं को रोजगार देने का सपना दिखाया। आज मोदी सरकार को तीन साल होने जा रहे हैं। इन तीन सालों में रोजगार की क्या स्थिति है? इन तीन सालों में रोजगार बढ़ने के बजाय कम हुए हैं। 2017 में बेरोजगारी के और बढ़ने के आसार बताये जा रहे हैं।

        इस वर्ष जनवरी में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने वैश्विक रोजगार व सामाजिक दृष्टिकोण नामक रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया कि 2017 में पूरे वर्ष में न सिर्फ बेरोजगारी बढ़ेगी बल्कि सामाजिक असमानता भी बढ़ेगी यह रिपोर्ट आंकलन करती है कि भारत में गत वर्ष 1.77 करोड़ लोग बेरोजगार थे जो 2017 में 1.78 करोड़ हो जायेगें और 2018 में 1.80 करोड़ हो जायेंगे।

        अगर मोदी सरकार के शासन के पिछले वर्षों पर रोशनी डाले तो रोजगार वृद्धि तो दूर की बात रही पहले से रोजगार कर रहे लोगों को भी अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा है। 2014-15 की तीसरी तिमाही में भारत के 8 सैक्टरों में रोजगार की कमी आयी। ये सेक्टर आटो मोबाइल, टेक्सटाइल, ट्रांसपोर्ट, हैंडलूम, पावरलूम, जवाहरात, आईटी-बीपीओ, मेटल व लैदर हैं। आटो व मेटल सेक्टर में 43 हजार नौकरियां खत्म हुई हैं।

        2015  में ही केयर रेटिंग्स के चीफ इकोनामिस्ट मदन सबनविरा और अनुपा शाह ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की इस रिपोर्ट में कंपनियों द्वारा अपनी बैलेंस शीट पर दर्शायी गयी नौकरियों को आधार बनाया गया था। इस रिपोर्ट में भी कहा गया कि 2015 में कन्सट्रक्शन क्षेत्र में 43.7 प्रतिशत केबल क्षेत्र में 20.6 प्रतिशत, डायमण्ड व जूलरी में 28.4 प्रतिशत, इंजी. में 26.4 प्रतिशत, अस्पताल व हेल्थकेयर में 20.5 प्रतिशत नौकरियां कम हुई हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि 2015 में मात्र 12,760 नई नौकरियां पैदा हुई हैं। केयर रेटिंग का ही कहना है कि वर्ष 2015 में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में रोजगार दर 5.2 रही है जबकि बैकिंग में वृद्धि दर 2.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि रही है।

        अक्टूबर 2016 में दिल्ली की एक संस्था ‘प्रहार’ ने एक रिपोर्ट जारी की। जिसके अनुसार पिछले 4 साल से हर दिन 550 नौकरियां खत्म होती चली गयी हैं। किसान, छोटे खुदरा वेंडर, दिहाड़ी मजदूर और इमारती मजदूरों के सामने जीवन का संकट खड़ा होता जा रहा है। यह रिपोर्ट दावा करती है कि वर्ष 2015 में सिर्फ 1 लाख 35 हजार नौकरियां का सृजन हुआ है।

        लेबर ब्यूरो के द्वारा अप्रैल से दिसंबर 2015 के मध्य 1 लाख 60 हजार परिवारों के 7 लाख 80 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल कर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी। इसमें कहा गया कि भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु के कामगार आबादी 45 करोड़ बैठती है। इन 45  करोड़ लोगों में से 2 करोड 30 लाख लोग बेरोजगार हैं जो लोग काम कर रहे हैं उनको भी साल भर काम नहीं मिलता। ऐसे लोगों की संख्या भी 16 करोड़ है इनको लेबर ब्यूरो ने अंडर एम्पलाइमैंट कैटेगरी में रखा है।

        लेबर ब्यूरो का ही कहना है कि 15 से अधिक उम्र के लोगों में बेरोजगारी पिछले 5 वर्षों में सर्वाधिक है। काम करने वाली आबादी का एक तिहाई बेरोजगार है व 68 प्रतिशत कामगार परिवारों की मासिक आय 10,000 रू0 से अधिक नहीं है। लेबर ब्यूरो द्वारा जारी सालाना हाउसहोल्ड सर्वे के आकंड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी दर पिछले 5 वर्षों में सर्वाधिक है। पांचवी सालाना रोजगार-बेरोजगारी सर्वे रिर्पार्ट भी मोदी शासन में बेरोजगारी बढ़ने को स्वीकार करती है। खासकर गांवों में रिपोर्ट में महिलाओं में बेरोजगारी दर 2013-14 में 7.7 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 8.7 प्रतिशत हो गयी है। सर्वे में स्वरोजगार करने वालों तथा वेतनमान पर नौकरी करने वालों की संख्या भी घटी है। मनरेगा के तहत जहां वित्त वर्ष 2013-14 में 24.1 प्रतिशत परिवारों को रोजगार मिला था वहीं यह वित्त वर्ष 2015-16 में घटकर 21.9 परिवार हो गया है। लेबर ब्यूरो की ही रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 42 प्रतिशत कामगारों को पूरे साल काम नहीं मिलता है।

        जिन युवाओं की नरेन्द्र मोदी बातें करते हैं। उनकी हालत रोजगार के मामले में और भी बुरी है। युवा बेरोजगारों को मोदी द्वारा बुरी तरह ठगा गया है। मोदी शासन के वर्ष युवाओं के लिए अंधकार व बेकारी के वर्ष रहे हैं। पढ़े-लिखे, प्रशिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर सर्वाधिक है। आज भारत में इंजी. व अन्य उच्च शिक्षा ग्रहण किये हुए तीन में एक बेरोजगार है।

        यू तो सरकार द्वारा बेरोजगारी का कोई ठोस आंकड़ा पेश नहीं किया जाता। अगर बेरोजगारी के आंकडे़ पेश भी किये जाते हैं तो वह वास्तविक बेरोजगारी से बहुत-बहुत कम होते हैं। लेकिन बेरोजगाराी की भयावहता इतनी व्यापक है कि सरकार के आंकड़ों से स्वतंत्र आम जीवन में यह आसानी से देखी जा सकती है। हालांकि 2015 में भारत सरकार ने स्वीकार किया कि भारत में बेरोजगारी दर 11 प्रतिशत है यानि भारत में 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। सरकार का कहना है कि 20 से 24 आयु वर्ग के 25 प्रतिशत तथा 25 से 29 आयु वर्ग के 17 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं। 20 वर्ष से अधिक आयु के 14.30 करोड़ युवा नौकरी की तलाश में हैं। 2011 की जनगणना को आधार बनाकर सरकार कहती है कि इनमें से आधी महिलाएं बेरोजगार हैं। तकनीकि शिक्षा हासिल किये हुए 16 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। बेरोजगारों में 10वीं व 12वीं तक पढे़ युवाओं की संख्या 15 प्रतिशत है। क्योंकि सरकार की नजर में रोजगार दफ्तर में नाम दर्ज किये हुए बेरोजगार हैं। इसलिए यह आंकडे़ वास्तविक तस्वीर पेश नहीं करते। हालांकि ये आकड़े भी भयावह हैं लेकिन वास्तविक बेरोजगारी इससे भी ज्यादा है।

        बिजनेस स्टैण्डर्ड अखबार की रिपोर्ट के आधार पर कैंपस नौकरियों में 20 प्रतिशत की कमी आयी है। क्योंकि देश और दुनिया में छाया आर्थिक संकट आज भी जारी है इसलिए कंपनियां कैपसों में कम आ रही हैं। इंफोसिस, विप्रो व टीसीएस जैसी चोटी की तीन कंपनियां हर वर्ष 3 लाख नये इंजीनियरों को काम पर रखती थीं लेकिन अब यह संख्या 70 से 80 हजार के बीच रह गयी है। आर्थिक संकट से बैंकिंग, फाइनेंस व बीमा क्षेत्र ठहराव में हैं और ये कंपनियां इन क्षेत्रों में सेवा प्रदान करती हैं

        उच्च तकनीकी शिक्षा हासिल किय जो इंजी.नौकरी पा भी रहे हैं उनकी भी सेलरी में गिरावट आ रही है। मतलब वे अपनी योग्यता से कम सेलरी पा रहे हैं। आइटी में पिछले 6 वर्ष से बेसिक आफर 3 से 3.50 लाख प्रति वर्ष बना हुआ है। मध्यवर्ती इंजी. कालेजों में इसी तनख्वाह पर ज्यादातर को नौकरी मिलती है। 90 प्रतिशत कंपनियां पूर्व वर्ष की ही सेलरी इन इंजी. को दे रही हैं। जबकि पिछले 6 सालों में फीस व पढ़ाई का खर्च बढ़ा है लेकिन वेतन पुराना ही बना हुआ है।

        जहां मोदी ने विदेश निवेश को आकर्षित करने के लिए पूरी दुनिया का चक्कर लगाया वहीं भारत से निर्यात लगातार कम होता गया है। मोदी के ही राज में निर्यात में कमी आने के कारण न सिर्फ रोजगार घटे हैं बल्कि पहले से काम पर लगे लोगों को भी अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ गया है। पिछले वर्षों में भारत से पेट्रोलियम, चमड़ा, रसायन, इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात में कमी आयी है। इसी तरह सेवाओं के निर्यात में भी कमी आयी है। 2015-16 की दूसरी तिमाही में ही निर्यात में गिरावट के कारण 70,000 नौकरियां खत्म हो गयी थीं। इसका सर्वाधिक असर कपड़ा क्षेत्र पर पड़ा है। वित्त वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार पहली तीन तिमाही में निर्यात में करीब 18 प्रतिशत की गिरावट आयी। जिसमें निर्यात क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र अधिक प्रभावित हुआ। भारतीय श्रम मंत्रालय द्वारा 2015 में किये गये सर्वेक्षण में 43,000 नौकरियों की गिरावट देखने को मिली। इसमें 26,000 नौकरियां निर्यात करने वाली कंपनियों से जुड़ी थीं।


        उपरोक्त तथ्यों से यह बात साफ हो जाती है कि मोदी का हर वर्ष 2.5 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा भी काला धन वापस लाने के वादे जैसा ही एक जुमला था। मोदी का मेक इन इंडिया, कौशल विकास, स्टार्ट अप सरीखी ढेरों योजनाएं सरकारी फाइलों में ही दम तोड़ रही हैं। यह सरकार उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों को भी कुशल नहीं मानती है और कहती है कि पहले स्किल इंडिया के तरह कुशलता हासिल करो तब आपको रोजगार देंगे। लेकिन इन योजनाओं के बाद भी रोजागर के अवसर न सिर्फ सीमित हैं बल्कि और भी कम होते गये हैं।

        स्टार्ट अप योजना के तहत वर्ष 2015 में 10,000 करोड़ का फंड था जिसमें से मात्र 5.66 करोड ही खर्च हुए। वर्ष 2016 में भी फंड की कमी के कारण देश में 212 स्टार्ट अप बंद हो गये हैं। यह मोदी सरकार की रोजगार देने के वादे की कलई खोल देता है।

        यू तो पूंजीवादी समाज में बेरोजगारी एक आम बात है। बेरोजगारी को बनाये रखना पूंजीपति वर्ग के फायदे की बात है क्योंकि बेरोजगारी से ही भीषण प्रतियोगिता पैदा होती है और पूंजीपति को सस्ता श्रम उपलब्ध होता है। किसी भी पूंजीवादी पार्टी की तरह भाजपा व मोदी भी पूंजी की सेवा में समर्पित हैं। पूंजीपति वर्ग के मुनाफे को बढ़ाने के लिए बेरोजगारी का इस्तेमाल वे करते रहते हैं। लेकिन मौजूदा आर्थिक संकट बेरोजगारी को आम पूंजीवादी बेरोजगारी की तुलना और भीषण रूप प्रदान करता जा रहा है। मोदी द्वारा ऐड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी अर्थव्यवस्था व विदेशी निवेश में जरा भी सुधार नहीं आ रहा है। इसी के परिणामस्वरूप बेरोजगाारी बढ़ती जा रही है।

        पूंजीवादी समाज में बेरोजगारी आम है। कोई भी पूंजीवादी पार्टी, पूंजीवादी नेता या मोदी बेरोजगारी को खत्म करने का माद्दा नहीं रखते। बेरोजगारी के खात्मे तथा योग्यातानुसार रोजगार के लिए मुनाफे व पूंजी पर आधारित समग्र ताने-बाने को, समग्र समाज को क्रांति के जरिये बदलने की जरूरत है। और यह भी जरूरी है कि मोदी सरकार की जनविरोधी व बेरोजगारी बढ़ाने वाली योजनाओं का पर्दाफाश किया जाये और बेरोजगारी के खिलाफ प्रचंड आंदोलन खड़ा किया जाये।

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