संपादकीय
महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति को हुये एक सदी बीत चुकी है। इस बीच में दुनिया में एक से बढ़कर एक बदलाब आ चुके हैं। जिस वक्त यह क्रांति घट रही थी उस वक्त पूरी दुनिया में साम्राज्यवादी शक्तियों की तूती बोलती थी। भारत, चीन जैसे विशाल देशों को ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, सं.रा.अमेरिका व जापान जैसी साम्राज्यवादी ताकतें अपने बूटों तले रौंद रही थीं। आज दुनिया में औपनिवेशिक शासन के नामोनिशान नहीं बचे हैं। यद्यपि साम्राज्यवाद अपनी शैतानी ताकत से साथ आक्रामक है।
महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति ने रूस सहित पूरी दुनिया मे स्थापित कर दिया था कि मजदूर-किसान न केवल अपना राज कायम कर सकते हैं बल्कि उस राज का मुकाबला दुनिया का सबसे बेहतरीन पूंजीवादी राज भी नहीं कर सकता था। रूस में पहले कायम हुये समाजवादी राज ने एक ऐसी व्यवस्था कायम की जहां गरीबी, बेरोजगारी, गैर बराबरी और गुलामी का नामोनिशान भी नहीं था। रूस में समाजवाद कायम होते ही पूरे देश को शांति, किसानों को जमीन, मजदूरों को शोषण से मुक्ति मिली। और जिन देशों पर जारशाही ने कब्जा किया हुआ था उन्हें आजादी मिली। फिनलैण्ड एक ऐसा ही देश था जिस पर जारशाही ने कब्जा किया हुआ था।
महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति का प्रभाव विश्वव्यापी था। हर देश के शोषित-उत्पीड़ित लोगों ने इस क्रांति से बहुत कुछ सीखा और अपने देश में शोषण-उत्पीड़न की लड़ाई को नये ढंग से लड़ना शुरु किया। मजदूर, किसान, नौजवान, स्त्रियां और उत्पीड़ित जनों ने रूस में समाजवाद की स्थापना के बाद अपने संघर्षों को ऐसी गति, त्वरण और दिशा दी की पूंजीपति वर्ग को लगने लगा कि अब उसके दिन पूरे हो गये हैं और जनता के लिए उसे सिंहासन खाली ही करना पडे़गा। बीसवीं सदी का चालीस-पचास का दशक तो लगभग ऐसा ही था। तब समाजवाद का तेजी से प्रसार हो रहा था और गुलाम देश एक के बाद एक औपनिवेशिक जुंए से मुक्त होते जा रहे थे। साठ का दशक बीतते-बीतते कमोवेश पूरा एशिया और अफ्रीकी महाद्वीप इस जुंए से मुक्त हो चुका था। यह था महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति से उत्पन्न हुआ प्रभाव।
महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति ने एक ऐसे देश का निमार्ण किया था जिसने मजदूर, किसानों के भीरत सोयी हुयी महान रचनात्मक शक्ति को जगा दिया था। पहले विश्व युद्ध और चार वर्ष तक चले लम्बे गृहयुद्ध से क्षत-विक्षत देश को एक दशक के भीतर ही वहां पहुंचा दिया था जहां दूसरे के शोषण, लूटपाट और उत्पीड़न से पूंजीवादी देश अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन पहुंचे हुए थे। समाजवादी रूस बाद में सोवियत संघ जीवन के हर क्षेत्र में पूंजीवाद को टक्कर दे रहा था और साबित कर रहा था कि वह श्रेष्ठ है। बेहतरीन है। और पूरी मानव जाति की आशा का आधार और भविष्य है।
समाजवाद को जहां दुनिया भर के मजदूर और किसान बेपनाह इज्जत और प्यार करते थे वहां परजीवी पूंजीपति वर्ग की आंखों में वह लगातार खटकता था। उन्होंने समाजवाद के लिए हर तरह के षड़यंत्र रचे और इसके बारे में हजारों-हजार ढंग से झूठ और भ्रम फैलाया। दूसरे विश्व युद्ध के समय तो समाजवादी सोवियत संघ का विनाश करने के लिए अमेरिका से लेकर फासीवादी हिटलर तक ने हर कोशिश की। इन्हें अपने मुंह की खानी पड़ी। हिटलर तो आत्महत्या को विवश हो गया। समाजवाद ने पूरी मानवजाति को फासीवाद के कहर से मुक्ति दिलाने के लिए पूरी ऊर्जा लगा दी। दूसरे विश्वयुद्ध में अकेले सोवियत संघ के दो करोड़ लोग मारे गये।
सोवियत संघ में समाजवाद करीब चालीस साल रहा और इसी तरह चीन, कोरिया, वियतनाम, रोमानिया आदि देशों में कुछ ही दशक रहा परंतु समाजवाद ने इन समाजों को कई मामलों में हमेशा के लिए बदल दिया। इन समाजों में मौजूद पूंजीवादी पथगामियों और साम्राज्यवाद के कारण समाज पुनः पूंजीवाद की गिरफ्त में आ गये। पूंजीवादी गिरफ्त में आने के बाद यहां के मजदूर, किसान फिर से नारकीय जीवन जीने को बाध्य हो गये हैं। और यही हाल भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ब्राजील आदि देशों की हैं, जहां समाजवाद कभी नहीं आया।
अब हालात पुनः ऐसे बन रहे हैं कि मजदूर वर्ग अपने किसान भाइयों के साथ लम्बी शीत निद्रा से जाग रहा है। पूंजीवादी नरक से मुक्ति के लिए वह छटपटा रहा है। ऐसे में महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति उसे पुनः प्रेरणा और ऊर्जा देगी। उसका शताब्दी वर्ष नयी क्रांति के लिए संकल्प वर्ष बनने जा रहा है। महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति सिर्फ इतिहास की एक मिसाल नहीं है बल्कि वह एक मशाल है जो आज भी मजदूरों, किसानों, नौजवानों, उत्पीड़ित जनों की भविष्य की राह को रोशन कर रही है।
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