बुधवार, 23 दिसंबर 2015

यूजीसी गाइडलाइनः कालेजों को जेल बनाने की साजिश

-दीपक
        कालेजों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के विकास के लिए आवश्यक है कि कालेज-कैम्पसों का माहौल पूर्ण जनवादी हो। जहां वे बिना डर के अपनी बात रख सकें, गलत का विरोध कर सकें, नये-नये विचारों पर बहस करते हुए उन्हें आत्मसात कर सकें। ऐसे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) व अन्य शैक्षिक संस्थानों का यह दायित्व बनता है कि वे इस जनवादी माहौल को और अधिक बढ़ाने की कोशिश करें। जोकि भारतीय शिक्षा-संस्थानों में कदम-कदम पर कुचला जाता है। इन सबके बजाए यूजीसी ने छात्रों के अधिकारों पर और अधिक हमला बोला है। अप्रैल 2015 में ‘‘उच्च शिक्षा संस्थानों के अंदर और बाहर छात्रों की सुरक्षा से संबंधित प्रस्ताव’’ नामक गाइडलाइन के जरिये यूजीसी ने छात्रों की सुरक्षा के नाम पर प्रस्ताव जारी किए हैं। आइये! इनमें से कुछ मुख्य प्रस्तावों को देखते हैं।

कालेजों की चाहरदीवारी को और अधिक ऊंचा कर चारों तरफ कंटीली तारबाड़ लगाई जाए। 
        इस प्रस्ताव के अनुसार ऐसी किसी भी इमारत को जिसमें छात्र रहते हैं, की चाहरदीवारी को ऊंचा कर उसमें तारबाड़ लगानी चाहिए। यही नहीं कालेज गेट पर 2-3 सुरक्षाकर्मी कालेज के अंदर और बाहर जाने वाले सभी छात्रों के निजी सामानों की भी जांच करेंगे। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कालेजों को भी जेल सरीखा बनाने की कोशिश की जा रही है। 
        इस पूरी कार्यवाही के पीछे की सोच और भी अधिक खतरनाक है। यह सोच छात्रों और अपराधियों को एक समान मानते हुए दोनों को सुधारने के लिए समान तरीके लागू करती है। छात्रों की सुरक्षा के नाम पर लागू किया जा रहा उक्त प्रस्ताव उनकी निजता पर तो हमला है ही साथ ही साथ यह यूजीसी की छात्रों के प्रति सोच को भी जाहिर करता है।

विश्वविद्यालय में पुलिस स्टेशनों की स्थापना की जाए।
        इस प्रस्ताव के अनुसार विश्वविद्यालयों में पुलिस स्टेशन खोले जाने चाहिए। यही नहीं आवश्यकता पढ़ने पर पुलिस छात्राओं को रात के वक्त एक जगह से दूसरी जगह भी छोड़ने जा सकती है। सुनने में तो ये प्रस्ताव बहुत बेहतर लगता है। परन्तु जहां पूरे समाज में महिला विरोधी विचारों को परोसा जा रहा हो तो उन विचारोें से पुलिस कैसे मुक्त रह सकती है? ऐसे तमाम उदाहरण मिलते हैं जहां खुद पुलिस महिला अपराधों में लिप्त रही है। कालेज-कैम्पसों में छात्राओं की सुरक्षा को बढ़ाने का केवल एक ही तरीका है और वह यह कि महिला विरोधी पूंजीवादी-उपभोक्तावादी संस्कृति, पितृसत्तात्मक मूल्यों को समाज से खत्म किया जाये। परन्तु यूजीसी इन सब पर चुप है। इसके बावजूद यदि वह उक्त प्रस्ताव रख रही है तो उसके कारण हैं। हालिया वर्षों में सरकारों के छात्र विरोधी फैसलों व सामाजिक समस्याओं पर छात्र सड़कों पर उतरे हैं। एफवाईयूपी, कालेजों में छेड़छाड़ के मामले, फीसवृद्धि, शिक्षा के भगवाकरण के खिलाफ छात्रों ने अपने संघर्षों से सरकारों को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया है। छात्रों का सड़कों पर उतरना ही सरकारों और यूजीसी की चिंता का कारण है, इसलिए वे पहले से ही पुख्ता इंतजाम कर लेना चाहते हैं। दीवारें ऊंची कर व पुलिस स्टेशन खोल वे छात्रों के विरोध करने के जनवादी अधिकार को ही कुचल देना चाहते हैं।

छात्र परामर्श व्यवस्था व त्रैमासिक अभिभावक-शिक्षक बैठक।
        इस प्रस्ताव के अंतर्गत प्रत्येक शिक्षक को 25 छात्रों का एक बैच दिया जायेगा तथाशक्षक को साल भर इनसे निकटता बनाकर रखनी होगी। शिक्षक, वार्डन से छात्रों की निजी जानकारियां भी हासिल कर सकता है। उक्त जानकारियों व छात्रों की समस्याओं के बारे में वे त्रैमासिक होने वाली बैठकों में अभिभावकों के साथ जानकारी साझा कर सकते हैं। उक्त प्रस्ताव के पीछे ये सोच काम करती है कि छात्रों को निरंतर शिक्षक-अभिभावकों की निगरानी में रहना चाहिए। इस पूरी चीज से छात्रों के व्यक्तित्व का विकास, अपनी जिंदगी के बारे में फैसले लेने का अधिकार तो बाधित होगा ही साथ ही ये उनकी निजता पर भी हमला है। 
        कुल मिलाकर यूजीसी के उपरोक्त प्रस्ताव छात्रों के जनवादी अधिकारों पर हमला बोलने के साथ-साथ कैम्पसों को जेल सरीखा बनाने की कोशिश है। जहां छात्र व शिक्षक कैदी होंगे तो डीन जेलर। छात्रों को अपनी मजबूत एकता से इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कैम्पसों में जनवाद के सिकुड़ने की साजिश का पर्दाफाश करना होगा। कम किये जा रहे जनवादी माहौल के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करना होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें