शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

मोदी सरकार का एक साल

पूंजीपतियों को खुली लूट व सांप्रदायिक ताकतों को बेलगाम छूट
-कैलाश
        मोदी की भाजपा सरकार को सत्ताशीन हुए 26 मई को एक वर्ष पूरा हो गया है। इस एक वर्ष में मोदी सरकार के अनुसार इसने वह काम कर दिखाया है जो देश में पिछले 60 सालों में नहीं हुआ। सरकार के अनुसार देश-विदेश दोनों ही मोर्चों पर वह सफल रही है। सरकार द्वारा किये गये यह ‘असाधारण’ कार्य जनता को दिखाई दें इसके लिए मोदी सरकार 200 प्रेस कांफ्रेंस, 200 रैलियां व 5000 जन सभाएं आयोजित कर रही है। इन कार्यक्रमों के जरिये सरकार जनता को ‘अच्छे दिनों’ का एहसास करायेगी। सरकार के दावों के इतर वास्तविक हालात का जायजा लिया जाय तो तस्वीर कुछ और ही नजर आने लगती है।
        2014 के आम चुनावों के दौरान समाज के अलग-अलग वर्ग मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर अपनी अलग-अलग समस्याओं के हल की उम्मीद कर रहे थे। देश का पूंजीपति वर्ग मोदी के लिए अपने खजाने का मुंह खोलकर उम्मीद कर रहा था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी सरकार उसके हित में तेजी से आर्थिक सुधार लागू कर उसके मुनाफे के संकट को हल करेगी। देश का मध्यम वर्ग उम्मीद कर रहा था कि मोदी काला धन वापस ला जनता में बांटेंगे, भ्रष्टाचार खत्म करेंगे व देश मोदी के नेतृत्व में तेजी से ‘विकास’ के पथ पर अग्रसर होगा। देश के मजदूर-मेहनतकश भाजपा के कहे अनुसार इन चुनावों के बाद अपने ‘अच्छे दिनों’ की उम्मीद कर रहे थे तो ‘संघ’ मोदी को सत्ता में पहुंचाकर अपने ‘हिन्दू राष्ट्र’ के सपने को साकार होने की उम्मीद कर रहा था। 
        सत्ता में आने के बाद पिछले एक वर्ष में ‘प्रधान सेवक’ ने अपने आकाओं (देशी-विदेशी पूंजीपतियों) के हितों के अनुरूप तेजी से आर्थिक सुधार लागू किये। ताबड़तोड़ अध्यादेश जारी कर अपने आकाओं को खुश करने की कोशिश की। बीमा, बैंकिंग, रक्षा आदि क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) की सीमा को बढ़ाया। रेलवे में इन्फ्रास्ट्रक्चर में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) की अनुमति दी। सभी सरकारी योजनाओं में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप माॅडल को लागू किया। सरकारी उद्यमों को ओने-पौने दामों में विनिवेशीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। भारतीय अर्थव्यवस्था के संकट को विदेशी पूंजी निवेश के जरिये हल करने हेतु एक वर्ष मंे 30 से अधिक देशों की यात्राएं कर विदेशी पूंजी को ‘रेड कार्पेट’ बिछाकर लुभाने का प्रयास किया। सट्टेबाज व गैर सट्टेबाज पूंजी के फर्क को खत्म कर दिया गया। ‘मेक इन इडिया’ के नारे के तहत देशी-विदेशी पूंजीपतियों को भारत के प्राकृतिक संसाधनों व सस्ते श्रम के दोहन के लिए आमंत्रित किया। देशी-विदेशी पूंजी की बेलगाम लूट के रास्ते में बाधक सारे अवरोधों(भूमि, श्रम सुधार आदि) को हटाया या बदला जा रहा है। 
        मोदी सरकार के इन सारे कदमों के बावजूद अर्थव्यवस्था में सुधार के कोई संकेत नहीं दिखायी दे रहे हैं। विदेशी निवेश में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। औद्योगिक उत्पादन लगातार उतार-चढ़ाव का शिकार रहा है। निर्यात लगातार गिर रहा है। जारी आर्थिक संकट के चलते अर्थव्यवस्था में हाल-फिलहाल सुधार के कोई संकेत नहीं दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में पूंजीपतियों के मुनाफे पर भी असर पड़ना लाजिमी है जिसके लिए वह कतई तैयार नहीं है। 
        बीते वर्ष में मोदी सरकार द्वारा किये गये आर्थिक सुधारों के बावजूद पूंजीपति वर्ग अपने मुनाफे की दर को बढ़ा नहीं पा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत इसमें बाधा उत्पन्न कर रही है। अब वह मजदूर-मेहनतकशों को और लूट-खसोट कर अपने मुनाफे की दर को बढ़ाना चाहता है। मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे भूमि, श्रम व टैक्स सुधार इसी दिशा में उठाये गये कदम हैं, जिसके लिए मोदी सरकार हर विरोध सहने व कुचलने को तैयार है। 
        इजारेदार पूंजीपति वर्ग का एक धड़ा अपने मन मुताबिक परिणाम हासिल होता न देख दीपक पारेख के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष के काम से असंतोष जाहिर कर रहा है, तो दूसरा धड़ा रतन टाटा के नेतृत्व में धैर्य रखने की सलाह दे रहा है। मोदी भी अपने आकाओं की सेवा में जी-जान से जुटे हैं। जहां वह अपने चहेते अडाणी पर सरकारी खजाने से 6000 करोड़ रुपये लुटाते हैं तो वहीं उनके कार्यों से खुश हो देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी उनकी पीठ पर हाथ धरे नजर आते हैं। 
        मोदी द्वारा किये गये चुनावी वायदे और ‘विकास’ के नारे के वशीभूत हो देश का मध्यम वर्ग लालायित होेकर मोदी को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता था। पूंजीपतियों के जरखरीद बुद्धिजीवियों व प्रचार माध्यमों द्वारा गढ़ी गयी ‘विकास पुरुष’ की छवि उसे लुभा रही थी। जीत के पश्चात मोदी के सिपाहसालार व वर्तमान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा काला धन को चुनावी जुमला घोषित कर दिया गया। अपने एक वर्ष के कार्यकाल को भ्रष्टाचार रहित घोषित करने वाले मोदी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने का नायाब तरीका खोज निकाला। उन्होंने मुख्य केन्द्रीय सर्तकता आयुक्त, लोकपाल आदि पदों पर या तो नियुक्ति ही नहीं की या फिर बेहद देर से की ताकि किसी मामलेे की निगरानी व जांच न हो सके। 
        मोदी राज में विकास के बरक्स ‘हिन्दू राष्ट्र’ व सांप्रदायिक विचारों का शोर सुनकर यह वर्ग असमंजस में पड़ गया। मोदी का विकास उसे कहीं नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में जहां एक तरफ उसका ‘विकास पुरुष’ के ‘विकास’ से मोह भंग होने लगा है तो दूसरी तरफ वह यह सोच कर अपने मन को बहलाने की कोशिश कर रहा है कि मोदी तो विकास चाहते हैं परंतु उनके बड़बोले मंत्री उनकी राह में रोड़े अटका रहे हैं। हालांकि एकछत्र मोदी राज में उसके अदने मंत्रियों की यह हिम्मत नहीं है कि वह मोदी की सहमति के बिना लगातार सांप्रदायिक विषवमन करते रहें, लेकिन पूंजीवादी प्रचार माध्यमों व बुद्धिजीवियों के प्रभाव में ‘विकास’ का चश्मा लगाये मध्यम वर्ग यह देख पाने में असमर्थ है। 
        ‘अच्छे दिनों’ की आस लगाये मजदूर-मेहनतकशों के लिए मोदी सरकार का पहला साल सबसे ज्यादा कड़वे फैसले लेकर आया। मोदी सरकार के जनविरोधी फैसले मजदूर-मेहनतकशों के जीवन को और कठिन परिस्थितियों में धकेल रहे हैं। मोदी सरकार द्वारा मजदूर वर्ग पर बोले गये तीखे हमलों के तहत कार्य दिवस व ओवरटाइम बढ़ाने, महिलाओं से रात की पाली में काम कराने, यूनियन बनाने की प्रक्रिया को और कठिन करने, छंटनी-तालाबंदी को सरल बनाने, अप्रेंटिस एक्ट के तहत सस्ता व कुशल श्रम पूंजीपतियों को उपलब्ध कराने, कुछ उद्यमों में पूंजीपतियों को रजिस्टर रखने से छूट, श्रम कानूनों के अनुपालन में स्वीकृति आदि श्रम सुधार पूंजीपतियों के पक्ष में किये जा रहे हैं। श्रम सुधारों की यह प्रक्रिया अभी जारी है। मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे यह श्रम सुधार मजदूर वर्ग को पूंजीपति वर्ग के सामने असहाय बना देंगे। यह मजदूरों के खून-पसीने की आखिरी बूंद को भी निचोड़ कर पूंजीपतियों के सिक्कों में ढाल देंगे। नौजवानों के बेहतर रोजगार के सपनों को धूल-धूसरित कर ‘रखो और निकालो’ की नीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
        देशव्यापी चैतरफा विरोध के बावजूद मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव पर आमादा है। संसद में वह कानून पास न करा पाने के बावजूद निर्लज्जता से लगातार अध्यादेश जारी कर इसे लागू करा रही है। यह कानून किसानों की जमीन को कौड़ियों के दाम लूट-खसोट को कानूनन सुगम बना देगा। मोदी सरकार जन विरोधी नीतियों को इतनी तेजी से आगे बढ़ा रही है कि खुद उसके मातृ संगठन(भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ) भी इन नीतियों का विरोध कर रहे हैं। 
        मजदूर- किसान विरोधी इन नीतियों के साथ-साथ मोदी सरकार ने पिछले एक वर्ष में जनता को मिलने वाली सब्सिडी व सामाजिक कल्याण की मदों में भी कटौती की है। (देखें तालिका) 
    
        मोदी सरकार जनविरोधी नीतियां लागू कर ही नहीं, बल्कि सरकारी खजाने को भी पूंजीपतियों पर लुटा कर उनकी सेवा कर रही है। एक तरफ जनता को मिलने वाली सब्सिडी व जनकल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती कर रही है तो दूसरी तरफ पूंजीपतियों पर लगने वाले कारपोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत व वैल्थ टैक्स को खत्म ही कर दिया गया।
        पूंजीपतियों की चाकर पार्टियों व सरकारों से इससे अलग अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है। पूंजीपतियों के विकास का रास्ता मजदूर-मेहनतकशों की तबाही-बर्बादी-बदहाली से होकर ही जाता है। पूंजीपतियांे के मालामाल होने की शर्त ही है कि मजदूर-मेहनतकश कंगाल हों। मोदी सरकार अपनी पूंजीपरस्ती में समाज को तेजी से इसी दिशा में धकेल रही है।
        मोदी सरकार का पिछला एक साल सांप्रदायिक वैमनस्य को तेजी से बढ़ाने वाला रहा है। मोदी-शाह की सरपरस्ती में सांप्रदायिक ताकतें लगातार सक्रिय रही हैं। पिछले वर्ष सांप्रदायिक दंगों व तनाव की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। मोदी सरकार के मंत्री व संघ-भाजपा के नेता खुलेआम सांप्रदायिक बयानबाजी कर रहे हैं। खुद मोदी हिन्दू धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल व मध्ययुगीन मूल्य मान्यताओं की वकालत कर रहे हैं। हिन्दू धर्मग्रंथ व तौर-तरीके समाज पर जबरन लादने के प्र्रयास जारी हैं। अल्पसंख्यक समुदाय(विशेषकर मुस्लिम, ईसाई) के प्रतीकों व धार्मिक स्थलों पर हमले तथा उनके खिलाफ सांप्रदायिक जहर उगला जा रहा है। ‘लव जिहाद’, ‘घर वापसी’, ‘धर्मान्तरण’, ‘गौ रक्षा’ आदि मुद्दों के जरिये समाज में लगातार सांप्रदायिक माहौल को गरमाया जा रहा है।
        संघ अपने ‘हिन्दू राष्ट्र’ के सपने को साकार करने का यह सुनहरा मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता है। इसके लिए सेना-पुलिस संस्थानों को भगवा रंग में रंगने के प्रयास जारी हैं। शिक्षण संस्थाओं के प्रमुुख, सरकारी संस्थाओं के प्रमुख, न्यायालय, पाठ्यक्रम सभी जगह भगवा सोच व उससे जुड़े व्यक्तियों को बढ़ावादिया जा रहा है। संघ अपने लक्ष्य ‘हिन्दू राष्ट्र’ को जल्द से जल्द पूरा कर समाज को मध्ययुगीन स्थिति में धकेल तानाशाही पूर्ण राज्य कायम करना चाहता है। परंतु पूंजीपति वर्ग अभी इसके लिए तैयार नहीं है। किसी क्रांतिकारी संकट या आर्थिक-राजनैतिक संकट में ही वह फासीवाद की ओर जायेगा। लेकिन संघ-भाजपा भारतीय समाज को तेजी से भगवा रंग में रंगकर मेहनतकशों की वर्गीय एकता को कमजोर कर फासीवाद की आहट को संभव बनाने में जी-जान से जुटे हैं।
        कुल मिलाकर मोदी सरकार का एक साल पूंजीपतियों के अच्छे दिन, मजदूर-मेहनतकशों के दुर्दिन तथा सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ाने वाला रहा है। मोदी सरकार अपनी पूंजीपरस्त नीतियों व तबाही-बदहाली के चलते मेहनतकशों के उपजे आक्रोश को कमजोर करने के लिएसांप्रदायिक वैमनस्य को लगातार बढ़ावा दे रही है। भारत के मजदूर-मेहनतकशों को अपने अच्छे दिन लाने के लिए मोदी सरकार की पूंजीपरस्त नीतियों व सांप्रदायिक चेहरे को पहचानकर बेनकाब करने की जरूरत है। मजदूर-मेहनतकशों की अटूट वर्गीय एकता बनाने की जरूरत है जिसके दम पर ही पूंजीवादी-फासिस्ट ताकतों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंककर मजदूर-मेहनतकशों का राज समाजवाद कायम किया जा सकता है। मजदूर-मेहनतकशों का राज समाजवाद ही उनके अच्छे दिन ला सकता है।               

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