सड़ांध से बजबजाते पूंजीवाद का कुरूप चेहरा
-महेन्द्र
सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की कसमें खाने वाली मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने इतना बड़ा घोटाला अंजाम दिया है कि जिसका कोई ओर-छोर ही नजर नहीं आ रहा है। मंत्री, अफसर, दलाल की बात ही छोड़िये स्वयं राज्यपाल व मुख्यमंत्री आरोपों के घेरे में आ गये हैं। कोई इसे मध्यप्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बता रहा है तो कोई इसे मध्यप्रदेश के लिए कोलगेट, टूजी व सी.डब्लू.जी. कह रहा है।
मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) मध्यप्रदेश में प्री मेडिकल टेस्ट, प्री इंजीनियरिंग टेस्ट के अलावा कई सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षाएं करवाता है। इन परीक्षाओं में जमकर और बहुत बड़े स्तर पर गड़बड़ घोटाला हुआ। पिछले कई वर्षों से हर वर्ष सरकारी सीटें और सरकारी नौकरियां बेची जाती रहीं। सीमित सरकारी नौकरियों के लिए तथा मेडिकल में प्रवेश हेतु होड़ के चलते यह धंधा काफी संपत्ति इकट्ठी कर लेने वाला है। हर कोई चाहता है कि उसकी सरकारी नौकरी लगे इसीलिए वह मोटी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाता है।
यह घोटाला इतना व्यापक है कि इसमें अभी तक 2000 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और 700 और होने हैं। जांच अभी जारी है। भविष्य में आरोपियों की संख्या में और इजाफा होना निश्चित है। इस भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्री से लेकर अधिकारी तक, प्रिंसिपल, छात्र, दलाल आदि की एक के बाद एक गिरफ्तारियां हो रही हैं। लेकिन घोटाला इतना बड़ा है कि इसका कोई ओर-छोर अभी नजर नहीं आ रहा है। एक बहुत बड़ा नेटवर्क इस घोटाले के पीछे सक्रिय है। कुछ बड़े लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और बाकियों की होना बाकी है। इसके अतिरिक्त भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी, कई सरकारी अफसर, कई नेताओं व कई अफसरों के रिश्तेदारों के नाम अभियुक्तों की सूची में हैं। नाम तो पुलिस अधिकारियों, आई.ए.एस. और उनके रिश्तेदारों के भी सामने आ रहे हैं।
16 जून को मध्यप्रदेश के पूर्व उच्च शिक्षामंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जो आरएसएस के करीबी हैं। इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं। लक्ष्मीकांत शर्मा बतौर उच्च शिक्षामंत्री व्यापम के मुखिया थे। इनके ही साये में और इनके द्वारा ही कई सालों से सरकारी भर्तियों में यह गोरखधंधा चल रहा था।
मेडिकल कालेजों के 514 मामले शक के घेरे में हैं। वहीं स्वयं मुख्यमंत्री विधानसभा में 1000 सरकारी नौकरियों में भर्ती की गड़बड़ी को स्वीकार कर चुके हैं। यही नहीं 2008 से लेकर 2010 के बीच सरकारी नौकरियों की 10 परीक्षाओं पर भी धांधली के आरोप लगे हैं। मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों के एडमिशन का सीधा जिम्मा उच्च शिक्षा मंत्रालय के पास था साथ ही सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं भी इसी विभाग से करवायी जाती थीं।
यह घोटाला प्रकाश में तब आया जब 7 जुलाई 2013 को म.प्र. के इंदौर में पीएमटी की प्रवेश में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गये। इनसे पूछताछ में जगदीश सागर का नाम सामने आया। 12 वीं में ही शादी कर लेने वाले जगदीश सागर ने अपनी पत्नी का मंगलसूत्र बेचकर डाॅक्टरी की पढ़ाई की थी। देखते ही देखते मेडिकल प्रवेश परीक्षा में फर्जीबाड़े के जरिए उसने काफी संपत्ति बना ली। उसके घर पर छापेमारी में गद्दों के भीतर 13 लाख की नगदी मिली। इतना ही नहीं 20 प्रापर्टी और करीब 4 किलो सोने के गहने मिले। पढ़ाई हेतु पत्नी का बेचा गया मंगलसूत्र भ्रष्टाचार के जरिए 4 किलो सोने में सूद समेत वापस आ गया। जगदीश सागर से पूछताछ के बाद मंत्री से लेकर अधिकारियों, दलालों, प्रिंसिपल का बड़ा नेटवर्क सामने आया। पता चला कि व्यापम के परीक्षा विभाग के कम्प्यूटर पर जो रोल नम्बर मिले थे वो खुद लक्ष्मीकांत शर्मा ने ही भेजे थे।
पूरे घोटाले व इसके लिए नेटवर्क बनाने की तैयारी बहुत पहले से चल रही थी। लक्ष्मीकांत शर्मा के शिक्षा मंत्री रहते हुए उनके पास व्यापम आ गया। शर्मा ने आरोपी ओ.पी.शुक्ला को अपना ओएसडी (आॅफिसर आॅन स्पेशल ड्यूटी) तैनात किया, यह जानते हुए कि इनके खिलाफ लोकायुक्त में भ्रष्टाचार करने की शिकायत दर्ज है। शायद शुक्ला की भ्रष्टाचार करने की काबिलियत के कारण ही उन्हें इस पद पर रखा गया। शर्मा के कहने पर ही पंकज त्रिवेदी को व्यापम का नियंत्रक बना दिया गया। त्रिवेदी ने अपने करीबी नितिन महिंद्रा को व्यापम के आनलाइन विभाग का प्रमुख बनाया। इस प्रकार सारे चोर एक सूत्र में बंधकर भ्रष्टाचार का नेटवर्क बना घोटाले में लिप्त हो गये। यह सब कुछ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के नाक के नीचे हो रहा था। ऐसा हो नहीं सकता कि उनकी इसमें कोई भागीदारी न हो या वह इस सब से वे पूरी तरह अनभिज्ञ रहे हों। सालों के चल रहे इस घोटाले का विस्तार देखकर तो यह और भी मुश्किल है कि वे इससे अपरिचित रहे हों। यह है पूंजीवाद और पूंजीवादी सरकारों की महिमा कि ‘‘पर्दों के आगे भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रवचन करना और पर्दे के पीछे भ्रष्टाचार के दलदल में लोट-पोट करना’’।
बात अगर मंत्रियों, अधिकारियों तक की होती तो भी गनीमत थी। लेकिन इसमें राज्यपाल का नाम आना व्यवस्था के प्रति जुगुप्सा व घृणा भर देता है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव केवल इसलिए अभियुक्तों की सूची में आने से बच गये क्योंकि अदालत ने कहा कि उन्हें पद के कारण अभियुक्त नहीं करार दिया जा सकता है। राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर हाईकोर्ट ने मई 2015 में यह कहकर रद्द करवा दी कि राज्यपाल को पद के नाते संवैधानिक सुरक्षा मिली हुयी है।
सबसे हैरतअंगेज बात यह है कि इस घोटाले से जुड़े लोगों में से कईयों की मौत भी हो चुकी है। ये सभी मौते संदिग्ध हालत में हुई हैं। घोटाले की जांच की निगरानी कर रहे जस्टिस चंद्रेश भूषण का कहना है कि अब तक 30 से अधिक मौतों की जानकारी एसटीएफ नेे दी है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि अब तक इस घोटाले से जुड़े 32 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। पुलिस ने इन्हें ‘‘रैकेटियर्स’’ कहा है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि अब तक 156 लोगों की मौत हो चुकी है। मौत के आंकड़े जो भी सच हों, यह आश्चर्य में डालने वाले हैं। मरने वालों में नम्रता डामोर इंदौर के सरकारी मेडिकल कालेज में पढ़ती थी, उनकी लाश 7 जनवरी 2012 को रेलवे ट्रेक के पास मिली। नम्रता का नाम गलत ढंग से मेडिकल कालेज में प्रवेश लेने वालों में था। राज्यपाल के बेटे का नाम भी आरोपियों में शामिल था, जो फरार चल रहे थे, उनकी लाश राज्यपाल के उ.प्र. स्थित सरकारी आवास पर संदिग्ध परिस्थितियों में मिली। मरने वालों में कुछ बड़े नाम नरेन्द्र सिंह तौमर, सहायक पशु अधिकारी (28 जून, 2015), राजेन्द्र आर्या मेडिकल कालेज प्रोफेसर (28 जून 2015), 4 जुलाई 2015 को टीवी पत्रकार अक्षय सिंह (जो इस घोटाले की रिपोर्टिंग कर रहे थे), 5 जुलाई 2015 को अरूण शर्मा मेडिकल कालेज डीन, 6 जुलाई 2015 अनामिका सिकरवार (प्रशिक्षु सब-इंस्पेक्टर) आदि हैं। इसके अलावा जेल में बंद अरोपियों की भी संदिग्ध मौतें हो रही हैं। इस प्रकार समझा जा सकता है कि इस घोटाले के सबसे बड़े और असली खिलाड़ी अभी भी पर्दे के पीछे हैं। उनसे पर्दा न उठ जाए इसलिए ये हत्याएं इतने व्यापक स्तर पर की जा रही हैं। इन हत्याओं से घोटाले के रैकेट की ऊंची पहुंच और व्यापकता भी उजागर हो जाती है।
गौरतलब है कि पूर्व में इस घोटाले को दबाने की पूरी कोशिशें की गईं। आज भी तमाम हो हल्ले के बाद भी इसकी जांच राज्य की पुलिस कर रही है। हाईकोर्ट ने इस घोटाले की जांच स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम को सौंपी है, इस जांच की निगरानी जस्टिस चंद्रेश भूषण कर रहे हैं। तीखी मांग होने के बाद भी भाजपाई मुख्यमंत्री ने इसकी सीबीआई जांच नहीं करवाई। जाहिर है कि इसके पीछे यह डर काम कर रहा था कि जो कुछ भी अभी छिपा हुआ है वह भी सामने आ जायेगा। भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले पर मुख्यमंत्री की चुप्पी और कोई ठोस कदम न उठाना उनकी नीयत की असलियत को सामने रख देता है। भाजपा की भ्रष्टाचार के खिलाफ खोखली प्रतिबद्धता को यह उद्घाटित कर देता है।
सबसे बड़ी बात यह कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘धर्मयुद्ध’ का ऐलान करने वाली, पूरा आसमान सर पर उठा लेनी वाली संघी-मोदी सरकार इस घोटाले पर कोई एक्शन लेना तो दूर, कोई बात भी नहीं बोलती। तमाम राज्यों के राज्यपालों को उनके पद से जबरन और कार्यकाल पूरा करने से पहले ही मुक्त करने वाली मोदी सरकार, इस घोटाले में राज्यपाल का नाम आने के बाद भी अपना सिर रेत में दबाये हुए है। एक के बाद एक हो रही मौतों के बाद जब हर तरीके से इसको रोकने की हर कोशिश नाकाम रही तो मजबूरी में सीबीआई को जांच सौंप दी गयी है। जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब व्यापम और संदिग्ध मौतों की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा जा चुका है।
यह घोटाला एक बार फिर सड़ांध से बजबजाती पूंजीवादी व्यवस्था और उसकी राजनीतिक पार्टियों के घृणित चेहरे को सामने ले आया है। यह इस बात को भी सामने ले आया है कि राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की चाहे जितनी भी कसमें खायें लेकिन शासन सत्ता पर आसीन होने पर वे भ्रष्टाचार के कीचड़ में लोट-पोट करती हुयी नजर आती हैं। यह इस बात को भी स्पष्टता से बताता है कि निजी संपत्ति पर आधारित इस पूंजीवादी व्यवस्था में, चाहकर भी भ्रष्टाचार, अपनी संपत्ति में तेजी से और आसानी से इजाफा करने का एक अन्य साधन होता है। ठीक ऐसे ही पूंजीवादी राजनीतिक दलों के मुंह से भ्रष्टाचार से मुक्ति संभव नहीं है। पूंजीपति वर्ग के लिए भ्रष्टाचार की रामनामी बातें हैं तो व्यवहार में वे भ्रष्टाचार के छुरे का ताबड़तोड़ प्रयोग करते हैं। यह एक बार फिर यह दिखा गया कि भाजपा भी भ्रष्टाचार जैसे मामले में कांग्रेस के ही समान है। बातों में चाहे अपने आप को जितना पवित्र बताया जाए। व्यवहार इसकी पोल खोल देता है कि भाजपा और कांग्रेस में भ्रष्टाचार के मसले पर कोई भेद नहीं है।
भ्रष्टाचार से मुक्ति पूंजीवाद से मुक्ति के साथ ही जुड़ी है। भ्रष्टाचार से मुक्ति समस्त पूंजीवादी व्यवस्था, उसकी मशीनरी, उसकी राजनीतिक पार्टियों से मुक्ति के साथ ही संभव है। किसी राजनीतिक दल, उसकी खूबसूरत बातों और पूंजीवाद से भ्रष्टाचार की मुक्ति की आशा पालने के बजाय इन सबसे मुक्ति के लिए प्रचंड संघर्ष के लिए उठ खड़े होने की जरूरत है।
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