पहचान
यह जो सड़क पर खून बह रहा है कारखानों में जूते बनाते हैं
खेतों में बीज डालते हैं
इसे सूंघकर तो देखा पुस्तकें लिखते, खिलौने बनाते हैं
और पहचानने की कोशिश करो और शहर की
यह हिन्दू का है या मुसलमान का अंधेरी सड़कों के लैम्प-पोस्ट जलाते हैं
किसी बहन का या भाई का।
सड़क पर इधर-उधर पड़े लैम्प-पोस्ट तो मैं भी जला सकता हूं
किसी सिख का या ईसाई का लेकिन
पत्थरों के बीच में दबे स्कूल से कभी न लौटने वाली बच्ची की
टिफिन कैरियर से मां के आंसुओं का धर्म नहीं बता सकता
जो रोटी की गंध आ रही है जैसे
वह किसी जाति की है?
क्या तुम मुझे सब बता सकते हो जख्मियों के घावों पर
इन रक्त सेन कपड़ों, फटे जूतों, टूटी साइकिलों, मरहम तो लगा सकता हूं
किताबों और खिलौनों की कौम क्या है? लेकिन उनकी चीखों का मर्म नहीं बता सकता।
क्या तुम मुझे बता सकते हो ( साभारः ‘यह ऐसा समय है’, कविता संकलन)
स्कूल से कभी न लौटने वाली
बच्ची की प्रतीक्षा में खड़ी
मां के आंसूओं का धर्म क्या है
और हस्पताल में दाखिल
जख्मियों की चीखों का मर्म क्या है
हां, मै बता सकता हूं
यह खून उस आदमी का है
जिसके टिफिन में बंद
रोटी की गंध
उस जाति की है
जो घर और दफ्तर के बीच
साइकल चलाती है
और जिसके सपनों की उम्र
फाइलों में बीत जाती है
ये रक्त सने कपड़े
उस आदमी के हैं
जिसके हाथ
मिलों में कपड़ा बुनते हैं
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