शुक्रवार, 20 मार्च 2015

पाठको की कलम से


                                            दिमागी रूप से गुलाम बनाती एन.सी.सी.

   इंटर पास आउट होते ही मैंने कालेज में बीएससी में एडमिशन लिया। सभी छात्रों की तरह मेरा भी एन.सी.सी. से बहुत लगाव था। इसीलिए मैंने कालेज में एन.सी.सी. ली ताकि एन.सी.सी. के द्वारा कुछ नई-नई चीजंे सीख सकू। जैसे कि पर्वतारोहण, पैरा ग्लाइडिंग, फायरिंग आदि जैसे एडवेंचर कार्यों में भाग लूं। जंगल में अकेले जीवनयापन करने के तरीके सीखना, अफसर सरीखी गुणवत्ता को विकसित करना, इत्यादि। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरे सपने धीरे-धीरे टूटते गये। एनसीसी में कैडेटों को मुख्यतः परेड करनी होती है तथा इसी परेड के आधार पर उन्हें तोला जाता है। नये कैडेटों को अपने नियंत्रण में रखना वरिष्ठ कैडेटों के उस व्यवहार को दर्शाता है जैसे किसी अफसर का अपने चपरासी या मालिक का अपने नौकर से होता है। एक तरह से तानाशाह जैसा रुख करना किसी प्रकार यूनियन बनने से रोकना आदि एनसीसी का हिस्सा है। एन.सी.सी. का उद्देश्य ‘एकता और अनुशासन है’ मेरे ख्याल से एन.सी.सी. या सुरक्षाबल के लिए ‘अनुशासन केवल किसी एक व्यक्ति का कहना मानना है’, चाहे वह गलत ही क्यों ना हो। एन.सी.सी. या सुरक्षाबल केवल दिमागी रूप से किसी व्यक्ति को गुलाम बनाती है। इन सब को देखते हुए मुझे यह लगता है कि एन.सी.सी. केवल एक तानाशाह नेता या किसी दूसरे के आदेशों में काम करने वाला गुलाम बना सकती है। वह एक और वास्तविक नेता नहीं बना सकती।                                                                                                         

                                                                                 सुनील, बीएससी द्वितीय वर्ष एमबीपीजी कालेज हल्द्वानी

                                                                                                                                                                  
                                                          महिला उत्पीड़न का एक रूप
  15 अगस्त के दिन जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, उसी दिन राजकीय इंटर कालेज बिन्दुखेड़ा (नैनीताल) में 12 वीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा छेड़छाड़ की घटना का विरोध कर रही थी। छेड़खानी करने वाला कोई और नहीं बल्कि इसी स्कूल का अध्यापक जगत सिंह मेवाड़ी था। रिटायरमेंट की कगार पर खड़ा यह अध्यापक कई दिनों से इस छात्रा से छेड़छाड़ कर रहा था। रोज लड़की से अश्लील बातें करता था। छुट्टी के समय सभी बच्चों की छुट्टी कर देता था, लेकिन उस लड़की को रोक लेता था। लड़की नहीं रुकना चाहती थी, पर टीचर की बात को मना कैसे करती? इसी से डर कर, लड़की कई दिनों तक इस अपमान को चुपचाप सहती रही। हद तो स्वतंत्रता दिवस से 2 दिन पहले 13 अगस्त को हो गयी। जब अध्यापक ने एक रात के लिए पैसे देने की बात की और अपने साथ घूमने की बात की और लड़की का हाथ पकड़कर अपने साथ चलने के लिए, घसीटने लगा। इससे परेशान होकर लड़की ने सारी घटना प्रधानाचार्य को बतायी और उस अध्यापक की शिकायत की। लेकिन इस शिकायत का प्रधानाचार्य पर कोई असर नहीं हुआ और न ही कोई कार्यवाही की गयी। छात्रा ने अपने अभिभावकों को भी पूरी घटना बतायी आक्रोशित अभिभावकों ने और कालेज के छात्रों ने आकर अध्यापक की बर्खास्तगी की मांग की। लेकिन कालेज प्रशासन ने किसी कार्यवाही को करने के बजाए अध्यापक को कालेज में ही छिपा दिया। पुलिस के आने पर अध्यापक को बाहर निकाला गया और फिर पुलिस उसे पकड़कर लालकुआं थाने में ले गयी। लगभग 60 से 70 लड़के-लड़कियां और अभिभावक कोतवाली पहुंचे और अध्यापक की बर्खास्तगी की मांग करने लगे।

   दोस्तों! इतना ही नहीं हुआ। जब छात्र-छात्राएं और अभिभावक इस घटना के खिलाफ महिला हिंसा व अश्लील संस्कृति के खिलाफ नारे लगा रहे थे, तो देश के रक्षक कहे जाने वाले पुलिस प्रशासन द्वारा उनके मनोबल को तोड़ने के लिए उन पर मुकदमा लगाकर उनके भविष्य को खराब करने की धमकी दी जा रही थी। छात्र-छात्राएं पुलिस के रवैये से डर कर शांत हो गए और जाने लगे लेकिन यह मांग जायज थी इसलिए परिवर्तनकामी छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा कहे जाने पर कि जायज मांग पर हमें पीछे नहीं हटना चाहिए। छात्र फिर से उत्साहित हो कर जोर-जोर से नारे लगाने लगे और कड़ी कार्यवाही की मांग पर डटे रहे। हालांकि अध्यापक पर 506 और 354 ए के तहत मुकदमा लगाया गया। लेकिन अध्यापक को जल्द ही जमानत मिल गयी।

    दोस्तों! यह घटना बेहद शर्मनाक है और यह हमें बताती है कि अब महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। चाहे वह विद्या का मंदिर ही क्यों ना हो। जहां छात्र-छात्राओं को शिक्षा देनी चाहिए वहां आज खुद शिक्षक द्वारा ही इस तरह की घटना को अंजाम दिया जा रहा है। हम इस पूंजीवाद के चरित्र को लगातार देख रहे हैं कि किस तरह से महिलाओं के वजूद को लगातार तार-तार कर रहा है। उसे यह अहसास करा रहा है कि तुम महिला हो और महिला की तरह रहो वरना तुम्हारा वही हस्र होगा जो दिल्ली में हुआ, भगाणा में हुआ और बदायूं में हुआ। अगर तुम इसके खिलाफ आवाज उठाते हो तो दोस्तों मेरा सवाल है कि क्या हमें इस डर से चुप होकर बैठ जाना चाहिए?

   दोस्तों! हमें चुप होकर नहीं बैठना चाहिए। हमें इस सोच के खिलाफ इस अश्लील संस्कृति के खिलाफ और दृढ़ता से खडे़ होकर इस पूंजीवादी व्यवस्था जिसमें महिलाओं को केवल मुनाफे के नजरिये से देखा जाता है और पेश किया जाता है, को ही उखाड़ फेंकना होगा। आज महिलायें आजाद हैं लेकिन केवल पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए। जब महिला नौकरी के लिए जाती है तो वहां भी उसे गैर बराबरी की तनख्वाह देकर पुरुष प्रधान मानसिकता का सामना करना पड़ता है। हर क्षेत्र में महिलाओं को केवल माल के रूप में ही देखा जाता है। दोस्तों! हमें इस पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एकजुट होकर गैर बराबरी की व्यवस्था को समाप्त कर नये समाज का निर्माण करना होगा, जहां बराबरी का अधिकार किसी महिला को अपमान ना सहना पड़े और हमें समाजवाद की ओर कदम बढ़ाना होगा। और इस नये समाज के निर्माण के लिए एकजुट होना होगा।

                                                                                                                रूपाली, लालकुआं (उत्तराखंड)

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