शिक्षा जगत
पुलिसिया दमन के खिलाफ छात्र आंदोलन
पिछले माह में भारत के दो राज्यों (प.बंगाल एवं हि.प्रदेश) में छात्रा से छेड़छाड़ के एवं फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन हुए। इन आंदोलनों में व्यापक छात्रों ने राज्य सरकार, प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाई। सरकार द्वारा इन छात्र आंदोलनों का लाठीचार्ज एवं मुकदमे लगाकर दमन किया गया।
16 सितम्बर को जादवपुर विश्वविद्यालय कलकत्ता की छात्रा के साथ कुछ लम्पट तत्वों द्वारा छेड़छाड़ की गयी और छात्रा के पुरुष मित्र की पिटाई की गयी। इस घटना के खिलाफ छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन से घटना की निष्पक्ष जांच कराने, दोषियों को सजा देने जैसी मांगों को लेकर धरने पर बैठे हुए थे। धरने पर बैठे छात्रों पर पुलिस प्रशासन ने तृणमूल कांग्रेस के गुण्ड़ों के साथ मिलकर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया। अनेक छात्रों को जेल में डाल दिया गया। इस घटना के अगले ही दिन हजारों छात्रों ने पुलिसिया दमन के खिलाफ जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों के समर्थन में कलकत्ता में प्रदर्शन किया। 20 सितम्बर को शहर के सामाजिक, राजनैतिक संगठनों ने मिलकर सरकार एवं प्रशासन के विरूद्ध बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया। पूरे शहर के लोगों से प्रदर्शन में आने का आह्वान किया गया था, प्रशासन द्वारा तमाम रोक लगाने के बावजूद 27 सितंबर को भी प्रदर्शन किया गया।
हिमाचल प्रदेश मंे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सभी कोर्सों की फीसों में कई गुना वृद्धि की गयी। शिक्षा के निजीकरण की नीति के तहत वि.वि. प्रशासन यह कर रहा है। 12वीं पचंवर्षीय योजना में एवं यूजीसी के निर्देशों के तहत वि.वि. को ‘आत्मनिर्भर’ बनने को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है। हिमाचल प्रदेश वि.वि. में फीस वृद्धि के खिलाफ तथाकथित वामपंथी संगठनों का नेतृत्व रहा है। इस आंदोलन का भी दमन किया गया।
इन दोनों ही आंदोलनों में छात्रों द्वारा पुलिसिया दमन का विरोध किया गया। आज परिसरों में पुलिस प्रशासन का हस्तक्षेप लगातार बढ़ता जा रहा है, छात्र संघ चुनाव में तो कैम्पस पुलिस छावनियों में बदल दिये जाते हैं। परिसरों के जनवादीकरण के लिए छात्रों का आंदोलन सकारात्मक रहा है। हालांकि इसकी भी अपनी सीमाएं हैं।
इन आंदोलनों में नेतृत्व मुख्यतः संशोधनवादी पार्टियों के छात्र संगठनों व अन्य पूंजीवादी छात्र संगठनों के हाथ में रहा है। यह छात्र संगठन छात्रों को पंूजीवादी व्यवस्था के दायरे में ही समेटे रखने को कृत संकल्पबद्ध हैं। चुनाव के समय यह अपनी भ्रष्ट व पूंजीपतियों की सेवा में लगी पार्टियों के वोट बैंक बढ़ाने का काम करती हैं। इन छात्र संगठनों की लम्पटाई छात्रों से छुपी नहीं है। छात्रों की समस्या के एक मात्र हल क्रांतिकारी बदलाव के सामने यह पूंजीवादी छात्र संगठन एक रोड़ा बनकर खड़े हैं। जिन्हें बेनकाब करके ही छात्र समुदाय के क्रांतिकारी संघर्ष आगे बढ़ सकते हैं। मौजूदा छात्र आंदोलन में छात्रों की भूमिका छात्रों के उत्साह व अपने अधिकारों के प्रति सचेत होने को दिखाती है। वहीं दूसरी तरफ पूंजीवादी छात्र संगठनों द्वारा छात्रों को पूंजीवादी व्यवस्था में बांधे रखने को दिखाती है। दीपक, दिल्ली
सूर्यप्रकाश, बीटेक छात्र बरेली
इन कालेजों में ज्यादातर देखा गया है कि एक क्लास की अवधि 1 घंटे होती है। परंतु एक वैज्ञानिक खोज के अनुसार एक मानव मस्तिष्क अधिकतम 45 मिनट तक ध्यान लगाकर पढ़ सकता है। मगर विज्ञान को सिखाने वाले कालेज तक इस खोज का इस्तेमाल व्यवहार में करते नहीं दिखते हैं। अधिकतम कालेजों में अनुशासन के नाम पर फाइन लेना एक परम्परा है। अनुशासन के नाम पर कालेज प्रशासन द्वारा अजीब-अजीब से नियम बना दिये हैं जैसे कि हॉस्टल में मोबाइल प्रतिबंधित होना, 10 बजे के बाद कालेज कैम्पस में न दिखाई पड़ना, कालेज टाइम में कैन्टीन न जाना, यहां तक कि कालेज टाइम में लाइब्रेरी में भी पाए जाने पर फाइन लगने का डर होता है। बरेली के एक कालेज में मोबाइल पकड़े जाने पर 20,000 का फाइन लगाया गया था। और जब कोई विद्यार्थी फाइन देने से मना करता है, तो उसको परिक्षा में कम नम्बर दिये जाने का डर पैदा किया जाता है।
इन कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की स्थिति भी चिन्ताजनक है। जब कोई नया शिक्षक नियुक्ति के लिए आता है, तो उससे उनकी रूचि पूछे बगैर ही, उसकी स्ट्रीम का कोई भी विषय पढ़ाने को दे देते हैं। ऐसे में कालेज में पढ़ रहे विद्यार्थियों के जीवन के साथ किस तरह खेला जा रहा है। ये अब किसी से छुपा नहीं है। क्लास में अच्छे से ना पढ़ा पाने के कारण विद्यार्थी और शिक्षक के बीच घृणा का भाव उत्पन्न हो जाता है। और शिक्षण के प्रति समर्पण का भाव दूर-दूर तक नहीं दिखता। गर्मियों की छुट्टी के दौरान, शिक्षकों को छुट्टी नहीं मिलती और इस दौरान कालेज प्रशासन द्वारा सभी सुविधाएं हटा लेने का गंदा खेल रचा जाता है। कुछ शिक्षकों से बात करके ये पता चला कि छुट्टी के दिनों में वाटरकूलर बंद हो जाते हैं। सभी लैबों में ए.सी. भी बंद करवा दिये जाते हैं। कालेज में काम खत्म हो जाने पर भी वापस नहीं जाने दिया जाता और अगर, कोई शिक्षक आवाज उठाता है तो उसे नौकरी से निकाल देने की धमकी दी जाती है।
इन्हीं प्राइवेट कालेज के पाठ्यक्रम की बात करें तो उसमें भी बहुत कमियां हैं। कुछ वर्षों पूर्व से, इंजी. के पाठ्यक्रम में कुछ मैनेजमैंट के विषय डाल दिये गये थे। और ये परिवर्तन इस बात को कह कर हुआ कि एक इंजीनियर को कंपनी कैसे मैनेज करनी होती है ये मालूम होना चाहिए। परंतु असलियत में एक इंजी. का विद्यार्थी इस विषय को एक बोझ समझ कर पढ़ता है क्योंकि वह जानता है कि जो कुछ भी वह पढ़ रहा है उसे जब तक अपने आप से कर के नहीं देखा जाता तब तक ये ज्ञान बेकार है। और वह इसे सिर्फ परीक्षा में सफल होने के लिए पढ़ता है।
ये सभी समस्यायेें, हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था से तभी दूर हो सकती है जब शिक्षा का व्यापार होना बंद हो जाएगा और जब शिक्षा को पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि ज्ञान अर्जन के लिए अपनाया जाएगा और हम ये जानते हैं कि ऐसा होना, इस मुनाफे पर बनी पूंजीवादी व्यवस्था में संभव नहीं है। इसके लिए हम सभी को पूंजीवादी व्यवस्था को हटा कर एक समाजवादी व्यवस्था कायम करनी होगी। इस व्यवस्था में, शिक्षा और समाज दोनों को मिला के, विद्यार्थी ज्ञान अर्जन करेंगे। विद्यार्थी अपना योगदान समाज के कार्यों में दे सकें, इसके लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न की जाएंेगी। इस व्यवस्था के नौजवान, सिर्फ समाज का भविष्य ही नहीं बल्कि वर्तमान भी बनेगें।
शिवानी, इंजी.छात्रा, दिल्ली
हिमाचल प्रदेश मंे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सभी कोर्सों की फीसों में कई गुना वृद्धि की गयी। शिक्षा के निजीकरण की नीति के तहत वि.वि. प्रशासन यह कर रहा है। 12वीं पचंवर्षीय योजना में एवं यूजीसी के निर्देशों के तहत वि.वि. को ‘आत्मनिर्भर’ बनने को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है। हिमाचल प्रदेश वि.वि. में फीस वृद्धि के खिलाफ तथाकथित वामपंथी संगठनों का नेतृत्व रहा है। इस आंदोलन का भी दमन किया गया।
इन दोनों ही आंदोलनों में छात्रों द्वारा पुलिसिया दमन का विरोध किया गया। आज परिसरों में पुलिस प्रशासन का हस्तक्षेप लगातार बढ़ता जा रहा है, छात्र संघ चुनाव में तो कैम्पस पुलिस छावनियों में बदल दिये जाते हैं। परिसरों के जनवादीकरण के लिए छात्रों का आंदोलन सकारात्मक रहा है। हालांकि इसकी भी अपनी सीमाएं हैं।
इन आंदोलनों में नेतृत्व मुख्यतः संशोधनवादी पार्टियों के छात्र संगठनों व अन्य पूंजीवादी छात्र संगठनों के हाथ में रहा है। यह छात्र संगठन छात्रों को पंूजीवादी व्यवस्था के दायरे में ही समेटे रखने को कृत संकल्पबद्ध हैं। चुनाव के समय यह अपनी भ्रष्ट व पूंजीपतियों की सेवा में लगी पार्टियों के वोट बैंक बढ़ाने का काम करती हैं। इन छात्र संगठनों की लम्पटाई छात्रों से छुपी नहीं है। छात्रों की समस्या के एक मात्र हल क्रांतिकारी बदलाव के सामने यह पूंजीवादी छात्र संगठन एक रोड़ा बनकर खड़े हैं। जिन्हें बेनकाब करके ही छात्र समुदाय के क्रांतिकारी संघर्ष आगे बढ़ सकते हैं। मौजूदा छात्र आंदोलन में छात्रों की भूमिका छात्रों के उत्साह व अपने अधिकारों के प्रति सचेत होने को दिखाती है। वहीं दूसरी तरफ पूंजीवादी छात्र संगठनों द्वारा छात्रों को पूंजीवादी व्यवस्था में बांधे रखने को दिखाती है। दीपक, दिल्ली
रूहेलखंड विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्र संघ के प्रति नकारात्मक रुख
पिछले दिनों में बरेली कालेज तथा रूहेलखंड विश्वविद्यालय में, छात्र संघ का माहौल चल रहा था। इसके साथ-साथ पूंजीवादी छात्र संघों द्वारा छात्र संघ चुनाव की मांग को लेकर आंदोलन व छिटपुट विरोध भी किया गया परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन का छात्र संघ चुनाव के प्रति कोई संतोषजनक जवाब छात्र प्रतिनिधियों को नहीं मिल पाया था। वर्तमान समय में छात्र संघ को लेकर छात्रों के बीच तमाम तरह के दुष्प्रचार होने की वजह से छात्रों की बड़ी संख्या छात्र संघ चुनाव के प्रति निष्क्रिय भाव में पहुंचती जा रही है। ऐसा छात्रों के साथ क्यों घटित हो रहा है?
आज पूंजीवादी पार्टियांे के छात्र संगठन सक्रिय भूमिका निभाकर छात्रों की मूल समस्याओं के प्रति नकारात्मक रुख रखते है यह भी इसका कारण है। क्योंकि आजादी के बाद तमाम पूंजीवादी क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय पार्टियां सत्ता में काबिज हो चुकी हैं, छात्रों की तमाम आशाओं के बावजूद बहुलांश छात्र आबादी के विरोध में नीतियां बनाई गयी, जिसके कारण अधिकतर छात्र आबादी अपनी शिक्ष पूरी करने से पहले ही शिक्षण संस्थानों से बाहर हो जाती है। जो अपनी पढ़ाई सुचारू रूप से चला पाते हैं, वह रोजगार के लिए दर-दर भटकते हुये नजर आ रहे हैं। इन समस्याओं के प्रति पूंजीवादी पार्टियों के छात्र संगठनों का कोई सक्रिय विरोध नहीं करते हैं। वर्तमान समय में कालेज परिसरों में पूंजीवादी कैरियरवादी छात्र राजनीति, गुण्ड़ागर्दी तथा अपने वर्चस्व बनाने वाली छात्र राजनीति भी छात्रों के बीच में छात्र संघ के प्रति नकारात्मक या निष्क्रिय भाव पैदा कर रही है। यदि आज वर्तमान समय में छात्र आबादी को छात्र संघ या छात्र राजनीति के प्रति संक्रिय भूमिका करानी है, तब यह विचार लेकर जाना चाहिए कि छात्र संघ छात्रों का एक जनवादी मंच है और इसे छात्र हितों के संघर्षों को आगे बढ़ाने के लिए समाज में तमाम समस्याओं (भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद इत्यादि) के प्रति भी छात्र संघ को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। यह सब करने के लिए वर्तमान समय में सबसे पहले पूंजीवादी कैरियरवादी, गुण्डागर्दी, व्यक्तिवादी तथा स्वयं के वर्चस्व वाली राजनीति को छात्रों के बीच से अलगाव में डालना होगा। यह सब कैसे होगा? इस सम्बन्ध में मेरा मानना है कि वर्तमान समय में कालेज परिसरों में छात्रों की मूल समस्याओं को उठाकर (जैसे शिक्षा का निजीकरण, बेरोजगारी इत्यादि) उनका क्रांतिकारी तरीके से हल करने के लिए छात्र आबादी की भूमिका करानी चाहिए। उसे बताना चाहिए कि आपकी समस्याओं का हल क्रांतिकारी राजनीति के द्वारा ही हल किया या सकता है। अर्थात छात्रों की मूल समस्याओं का हल पूंजीवादी व्यवस्था में न होकर मजदूरों की सत्ता समाजवादी व्यवस्था में ही हो सकता है। ऐसा ही आह्वान छात्रों के लिए तमाम क्रांतिकारियों ने किया था कि आपकी समस्याओं का हल तभी सम्भव होगा, जब क्रांतिकारी छात्र राजनीति पूंजीवादी राज को ध्वस्त करने में; मजदूर वर्ग की सत्ता समाजवाद को लाने में; अपनी क्रांतिकारी भूमिका निभाये। वर्तमान समय में रूहेलखंड वि.वि. तथा तमाम बरेली के कालेजों में या पूरे देश के कालेजों में क्रांतिकारी छात्र राजनीति को केन्द्र बिन्दु बनाया जाये तभी छात्रों की भूमिका भी छात्र संघों के प्रति निष्क्रिय नहीं रहेगी। सूर्यप्रकाश, बीटेक छात्र बरेली
इंजीनियरिंग कालेजों की सच्चाई
1991 में एलपीजी लागू होने के बाद, प्राइवेट कालेजों की तो जैसे बाढ़ सी आ गयी। हर क्षेत्र में इसका असर देखने को मिलता है। अगर हम इंजी.कालेजों की ही बात करें तो 600 से अधिक कालेज सिर्फ यूपी राज्य में ही खुल चुके हैं। इनमें से अगर टाप 10 कालेजों को हटा दिया जाए, तो बाकी सभी कालेजों में अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। ऐसा पाया जाता है कि इन कालेजों में कालेज टाइम बहुत लम्बा होता है। बरेली के एक कालेज में 8-4ः30 तक कालेज लगता है। और इस दौरान सिर्फ एक घंटे का ब्रेक मिलता है। हास्टल में रहने वाले विद्यार्थियों को, हॉस्टल दूर होने की वजह से 20 मिनट तो आने-जाने में ही लग जाते हैं। मैस में, एकदम से आयी हुई भीड़ की वजह से कई बार तो विद्यार्थियों को भूखे ही कालेज वापस जाना पड़ता है। इतना अधिक समय कालेज में बीत जाने के बाद खुद की पढ़ाई करने के लिए विद्यार्थी के पास बहुत कम समय बचता है। और ऐसे में हम देखते हैं कि एक नौजवान जिस पर देश और समाज दोनों का भविष्य टिका हुआ है, उसके लिए ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि वो सिर्फ खुद के बारे में ही सोच पाता है। और एक व्यक्तिवादी स्वभाव का वाहक बना जाता है।
इन कालेजों में ज्यादातर देखा गया है कि एक क्लास की अवधि 1 घंटे होती है। परंतु एक वैज्ञानिक खोज के अनुसार एक मानव मस्तिष्क अधिकतम 45 मिनट तक ध्यान लगाकर पढ़ सकता है। मगर विज्ञान को सिखाने वाले कालेज तक इस खोज का इस्तेमाल व्यवहार में करते नहीं दिखते हैं। अधिकतम कालेजों में अनुशासन के नाम पर फाइन लेना एक परम्परा है। अनुशासन के नाम पर कालेज प्रशासन द्वारा अजीब-अजीब से नियम बना दिये हैं जैसे कि हॉस्टल में मोबाइल प्रतिबंधित होना, 10 बजे के बाद कालेज कैम्पस में न दिखाई पड़ना, कालेज टाइम में कैन्टीन न जाना, यहां तक कि कालेज टाइम में लाइब्रेरी में भी पाए जाने पर फाइन लगने का डर होता है। बरेली के एक कालेज में मोबाइल पकड़े जाने पर 20,000 का फाइन लगाया गया था। और जब कोई विद्यार्थी फाइन देने से मना करता है, तो उसको परिक्षा में कम नम्बर दिये जाने का डर पैदा किया जाता है।
इन कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की स्थिति भी चिन्ताजनक है। जब कोई नया शिक्षक नियुक्ति के लिए आता है, तो उससे उनकी रूचि पूछे बगैर ही, उसकी स्ट्रीम का कोई भी विषय पढ़ाने को दे देते हैं। ऐसे में कालेज में पढ़ रहे विद्यार्थियों के जीवन के साथ किस तरह खेला जा रहा है। ये अब किसी से छुपा नहीं है। क्लास में अच्छे से ना पढ़ा पाने के कारण विद्यार्थी और शिक्षक के बीच घृणा का भाव उत्पन्न हो जाता है। और शिक्षण के प्रति समर्पण का भाव दूर-दूर तक नहीं दिखता। गर्मियों की छुट्टी के दौरान, शिक्षकों को छुट्टी नहीं मिलती और इस दौरान कालेज प्रशासन द्वारा सभी सुविधाएं हटा लेने का गंदा खेल रचा जाता है। कुछ शिक्षकों से बात करके ये पता चला कि छुट्टी के दिनों में वाटरकूलर बंद हो जाते हैं। सभी लैबों में ए.सी. भी बंद करवा दिये जाते हैं। कालेज में काम खत्म हो जाने पर भी वापस नहीं जाने दिया जाता और अगर, कोई शिक्षक आवाज उठाता है तो उसे नौकरी से निकाल देने की धमकी दी जाती है।
इन्हीं प्राइवेट कालेज के पाठ्यक्रम की बात करें तो उसमें भी बहुत कमियां हैं। कुछ वर्षों पूर्व से, इंजी. के पाठ्यक्रम में कुछ मैनेजमैंट के विषय डाल दिये गये थे। और ये परिवर्तन इस बात को कह कर हुआ कि एक इंजीनियर को कंपनी कैसे मैनेज करनी होती है ये मालूम होना चाहिए। परंतु असलियत में एक इंजी. का विद्यार्थी इस विषय को एक बोझ समझ कर पढ़ता है क्योंकि वह जानता है कि जो कुछ भी वह पढ़ रहा है उसे जब तक अपने आप से कर के नहीं देखा जाता तब तक ये ज्ञान बेकार है। और वह इसे सिर्फ परीक्षा में सफल होने के लिए पढ़ता है।
ये सभी समस्यायेें, हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था से तभी दूर हो सकती है जब शिक्षा का व्यापार होना बंद हो जाएगा और जब शिक्षा को पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि ज्ञान अर्जन के लिए अपनाया जाएगा और हम ये जानते हैं कि ऐसा होना, इस मुनाफे पर बनी पूंजीवादी व्यवस्था में संभव नहीं है। इसके लिए हम सभी को पूंजीवादी व्यवस्था को हटा कर एक समाजवादी व्यवस्था कायम करनी होगी। इस व्यवस्था में, शिक्षा और समाज दोनों को मिला के, विद्यार्थी ज्ञान अर्जन करेंगे। विद्यार्थी अपना योगदान समाज के कार्यों में दे सकें, इसके लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न की जाएंेगी। इस व्यवस्था के नौजवान, सिर्फ समाज का भविष्य ही नहीं बल्कि वर्तमान भी बनेगें।
शिवानी, इंजी.छात्रा, दिल्ली
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