किसान आंदोलनः फ़ासीवादी सरकार से जंग जारी है
’यह फसलों नहीं नस्लों को बचाने की लड़ाई है’, ’बिल वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं’ के उद्घोष के साथ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों को डटे हुए एक वर्ष पूरे होने को है। जबकि छोटे-मझोले किसान व आमजन विरोधी काले कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्ष करते हुए किसानों को एक साल से भी ज्यादा समय हो गया है। संघर्ष करते हुये बीते समय के दौरान जहाँ किसान नेतृत्व नये-नये प्रयोग करते हुए अपने संघर्ष को आगे बढ़ा रहा है, व्यापक मेहनतकश आबादी को संघर्ष से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। वहीं देश की सत्ता पर काबिज़ फ़ासीवादी मोदी सरकार अपने ही देश की जनता के खिलाफ युद्धरत है। वह जनता के आंदोलन को कुचलने-बदनाम करने के लिए नित नए तरीके खोजने में मशगूल रही है। अब सरकार किसान आंदोलन को थकाने व मौका मिलते ही नये हमले कर इसे कुचलने की दिशा में काम कर रही है।
किसान आंदोलन अब तक फ़ासीवादी मोदी सरकार के हर हमले-चुनौती का मुक़ाबला करते हुए आगे बढ़ता रहा है। टोहाना, जींद, झज्जर, करनाल और अब लखीमपुर खीरी इत्यादि सभी घटनाओं ने किसान आंदोलन को आवेग ही प्रदान किया है। केंद्र व राज्यों में काबिज़ भाजपा सरकारों ने जितना आंदोलन को कुचलना चाहा है उतना ही अभी तक उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। दमन की इन घटनाओं ने किसानों को डराने के बजाय और ज्यादा उद्देलित कर संघर्ष को फैलाने का ही काम किया है। पंजाब-हरियाणा से शुरू हुआ किसान संघर्ष अब तक यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान से होते हुए दक्षिण भारत व पूर्वोत्तर तक भी पहुँच गया है।
किसान विरोधी कृषि कानूनों की वापसी, एम.एस.पी. की गारंटी की मांगों से शुरू हुआ यह आंदोलन अब मज़दूर विरोधी नयी श्रम संहिताओं को रद्द करने, महंगाई पर रोक लगाने, बढ़ती बेरोजगारी का विरोध इत्यादि मांगों के जरिये समाज के अन्य वर्गों-तबकों को भी अपने साथ जोड़ रहा है। फादर स्टेन स्वामी की सांस्थानिक हत्या का विरोध कर यह समाज के दबे-कुचले व निचले पायदान पर मौजूद लोगों की लड़ाई लड़ रहे लोगों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर कर रहा है। अम्बानी-अडानी (कॉरपोरेट) को निशाने पर लेकर यह सरकार- पूंजीपतियों के गठजोड़ व समग्र पूंजीवादी व्यवस्था की असलियत को उजागर कर रहा है। धार्मिक एकता व साझा संघर्ष के सन्देश के साथ यह संघ-भाजपा की फ़ासीवादी परियोजना को भी चुनौती पेश कर रहा है। इस आंदोलन ने मोदी सरकार के सामने पिछले 7 सालों की सबसे मज़बूत चुनौती पेश की है। जिसका तोड़ मोदी सरकार अपनी तमाम तिकड़मों-षड्यंत्रों के वावजूद अभी तक नहीं खोज पा रही है।
किसानों की ओर से पेश इस चुनौती का परिणाम है कि भाजपाई नेता-मंत्री हैरान-परेशान हैं। वह किसानों को खालिस्तानी, माओवादी, नकली किसान, आन्दोलनजीवी आदि, आदि नामों से संबोधित कर रहे हैं। कोई किसानों को मवाली कह रहा है तो केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र ’टेनी’ किसानों को अपना अतीत (गुंडई) की याद दिला ’दो मिनट में सुधार देने’ व ’लखीमपुर छोड़कर ही भागना पड़ेगा’ जैसी धमकी दे रहे हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर तो अपने कार्यकर्ताओं को किसानों के खिलाफ लट्ठ उठा लेने व जेल जाने से न डरने जैसी बात कहकर हिंसा के लिए उकसा रहे हैं। संघ की पाठशाला (जहाँ कोई जनवाद व चुनाव नहीं होता) से शिक्षित-दिक्षित यह लोग जनता के जनवादी अधिकारों (विरोध-प्रदर्शन करने, संगठन बनाने इत्यादि) से बौखलाये हुये हैं। यह विरोध की हर आवाज़ को जबरन कुचल कर फ़ासिस्ट निज़ाम कायम करना चाहते हैं। लेकिन किसान हैं कि भाजपा के नेताओं-मंत्रियों का घेराव-विरोध जारी रखे हुये हैं।
इस संघर्ष में किसान नये-नये तरीकों के साथ ही अपनी क्रांतिकारी विरासत के प्रतीक दिनों (उधम सिंह शहादत दिवस, प्रेमचंद जयंती, भगत सिंह जन्म दिवस इत्यादि) को भी मनाते हुये व अपने पुरखों को याद करते हुए शहीदों के संघर्ष-त्याग से प्ररेणा हासिल कर अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।
पिछले 3 माह के दौरान घटी महत्वपूर्ण घटनाएं-
- 30 जून को गाज़ीपुर बॉर्डर में मंच के पास ही मुख्य सड़क पर भाजपाई लम्पटों द्वारा एक भाजपाई दलित नेता के स्वागत के बहाने किसान आंदोलन के खिलाफ नारेबाजी कर माहौल को तनावपूर्ण बनाने का कार्य किया गया। 1-1/2 घंटे तक भी इनके न जाने व प्रशासन के मूकदर्शक बने रहने पर किसानों ने इनके खिलाफ गोलबंदी शुरू की तो यह भाग खड़े हुए। भागने की आपा-धापी में कुछ लम्पट चोटिल हुए व 2-3 गाड़ियां भी कुछ क्षतिग्रस्त हो गयी। इस घटना को संघ-भाजपा मंडली व ’गोदी मीडिया’ ने मौके की तरह भुनाना शुरू कर किसान आंदोलन के विरोध में तथा किसानों के दलित विरोधी होने का प्रचार शुरू कर दिया। स्थानीय आबादी को किसानों के खिलाफ खड़ा करने के लिए भाजपाई लम्पटों ने पास ही स्थित खोड़ा मोहल्ले में किसान आंदोलन का विरोध करते हुए किसान नेताओं का पुतला दहन भी किया। लेकिन 5 जुलाई को ही आस-पास के सैकड़ों लोगों व दलित संगठनों ने आंदोलन स्थल पर आकर मंच से किसान आंदोलन को अपना समर्थन देकर इनके षड़यंत्र को विफल कर दिया।
- 8 जुलाई को बढ़ती महंगाई व डीजल-पेट्रोल-रसोई गैस की बढ़ती कीमतों के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चे ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। इस दिन दिल्ली के बॉर्डरों पर तथा देशभर में बढ़ती महंगाई के विरोध में पोस्टर-बैनर लेकर प्रदर्शन किए गए। सरकार से मांग की गयी कि बढ़ती महंगाई पर रोक लगायी जाये व महंगाई बढ़ाने वाली नीतियां रद्द की जायें।
- 22 जुलाई से 9 अगस्त तक किसानों ने सयुंक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर संसद के मानसून सत्र के समानांतर किसान संसद का आयोजन जंतर-मंतर, दिल्ली में किया। किसान संसद में देश के कई राज्यों से रोज 200 किसान बदल-बदलकर भागीदारी करते रहे। इस किसान संसद में पूंजीवादी लोकतंत्र की संसद की तरह ही सत्र चलाने के लिए किसानों के बीच से स्पीकर, डिप्टी स्पीकर व मंत्री चुने गये। किसान संसद में तीनों कृषि कानूनों पर विस्तार से चर्चा कर इन्हें किसान व आमजन विरोधी बताते हुए रद्द कर दिया गया।
इस अनूठे प्रयोग में महिलाओं की भी शानदार भागीदारी रही। 26 जुलाई व 9 अगस्त को महिला संसद का आयोजन किया गया था। 9 अगस्त को महिला संसद ने ’अंग्रजो भारत छोड़ो’ की तर्ज पर ’मोदी गद्दी छोड़ो- कॉरपोरेट भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद किया।
पूंजीवादी संसद के मानसून सत्र से पहले किसान आंदोलन के नेतृत्व ने एक और अनोखा प्रयोग करते हुए सभी विपक्षी पार्टियों के लिए ’जनता व्हिप’ जारी किया कि वह संसद के अंदर कृषि कानूनों का विरोध करें। अन्यथा भाजपा की तरह उनके भी नेताओं का विरोध किया जायेगा।
- 26-27 अगस्त को किसान आंदोलन के 9 माह पूरे होने पर सिंघु बॉर्डर पर एक राष्ट्रीय कन्वेंशन किया गया। इसमें 22 राज्यों के लगभग 2000 प्रतिनिधि शामिल रहे। कन्वेंशन के अलग-अलग सत्रों में मज़दूरों, छात्रों व महिला संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। कन्वेंशन में किसानों के आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए राज्यों के स्तर पर भी ’संयुक्त किसान मोर्चा’ की कमेटियां बनाने व नौजवानों के बीच व्याप्त भीषण बेरोजगारी को भी संघर्ष का मुद्दा बनाने का निर्णय लिया गया।
- 28 अगस्त को करनाल के बसताड़ा टोल प्लाजा पर हरियाणा के मुख्यमंत्री का विरोध करने के लिए जा रहे किसानों पर पुलिस-प्रशासन द्वारा निर्मम तरीके से लाठीचार्ज किया गया। इसमें कई किसानों को गंभीर चौटे आयीं तथा इलाज के दौरान एक किसान की मौत हो गयी। हरियाणा सरकार तथा प्रशासन ने किसानों पर बर्बर लाठीचार्ज के दोषी पुलिस कर्मियों व अफसरों पर कार्यवाही के स्थान पर किसानों पर ही मुकदमें लाद दिये। साथी किसान की मौत तथा एस. डी. एम. आयुष सिन्हा का ’किसानों का सिर फोड़ने’ का आदेश देने वाला वीडियो वायरल होने पर किसानों ने आयुष सिन्हा की बर्खास्तगी, मृतक किसान के परिजनों को 25 लाख मुआवजा व सरकारी नौकरी व घायल किसानों को 2 लाख मुआवजा तथा किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लेने के लिए हरियाणा सरकार को 6 सितंबर तक का समय दिया।
तय समय तक किसानों की मांगें पूरी न होने पर किसानों ने 7 सितंबर को महापंचायत कर करनाल मिनी सचिवालय के घेराव का ऐलान किया तथा मांगें न माने जाने तक वहीं डटे रहने का फैसला किया। किसानों की जायज मांगें मानने के बजाय सरकार ने किसानों को मिनी सचिवालय में जाने से रोकने के लिए शहर को छावनी में तब्दील कर दिया। किसानों के बढ़ते सैलाब को पुलिस-प्रशासन के बैरिकेड, वाटर कैनन, आंसू गैस इत्यादि रोक नहीं पाये और किसानों ने मिनी सचिवालय पर लंगर डाल दिया। अंततः सरकार को किसानों के सामने झुकना पड़ा और किसानों की मांगें माननी पड़ी। ’सिर फोड़ने’ का आदेश देने वाले एस.डी.एम. को छुट्टी पर भेज दिया गया।
- 5 सितंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने मुजफ्फरनगर में ऐतिहासिक किसान महापंचायत का आयोजन किया। किसान महापंचायत में यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान सहित कई राज्यों से लाखों लोग शामिल हुए। इस महापंचायत ने किसान आंदोलन में जबरदस्त ऊर्जा का संचार किया। किसान महापंचायत ने 2013 में भयानक दंगों की आग में झुलसे मुजफ्फरनगर से ही धार्मिक सौहार्द व एकता का संदेश प्रसारित कर संघ-भाजपा के धार्मिक वैमनस्य की राजनीति को ख़ारिज किया।
- 27 सितंबर को किसानों के नेतृत्व द्वारा भारत बंद का आह्वान किया गया। किसानों द्वारा आहूत यह भारत बंद सफल रहा। देश के कई हिस्सों में इसका व्यापक असर देखने को मिला। देश के कई मज़दूर, छात्र, नागरिक, महिला, व्यापारिक संगठनों व जनपक्षधर लोगों तथा विपक्षी दलों का साथ किसानों के भारत बंद को मिला।
- 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी के तिकुनियां में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र ’टेनी’ के बेटे आशीष मिश्र व अन्य भाजपाई गुंडों ने अपनी गाड़ी से रौंदकर 4 किसानों की हत्या कर दी। घटना में 1 पत्रकार व 3 भाजपा कार्यकर्ता भी मारे गए। किसानों में कुछ दिन पूर्व ही केंद्रीय मंत्री द्वारा किसानों को धमकाने व अपमानजनक टिप्पणी को लेकर नाराजगी थी। वह केंद्रीय मंत्री के कार्यक्रम में शामिल होने को आ रहे यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे।
इस जघन्य हत्याकांड के बाद किसानों का गुस्सा फूट पड़ा है। साथ ही पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। किसान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री की बर्खास्तगी व साजिश में गिरफ्तारी, मंत्री के बेटे पर हत्या का मुक़दमा दर्ज कर गिरफ्तार करने, मृतकों के परिजनों को मुआवजा व सरकारी नौकरी तथा घायलों को भी मुआवजे तथा घटना की न्यायिक जांच को लेकर आंदोलनरत हैं। आंदोलन के दबाव में किसानों की अन्य मांगे मान ली गयी हैं जबकि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र ’टेनी’ की बर्खास्तगी व गिरफ़्तारी को लेकर आंदोलन अभी जारी है।
किसान आंदोलन ने मोदी सरकार को झुकाया
किसान व आमजन विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के एकजुट संघर्ष ने अंततः फासीवादी मोदी सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। किसानों के एकजुट संघर्ष व मजदूर वर्ग सहित छात्रों, महिलाओं, दलितों-अल्पसंख्यकों के समर्थन ने मोदी सरकार के ‘56 इंची सीने’ की हवा निकाल दी।
19 नवम्बर को राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। यह घोषणा करते वक्त भी मोदी इतने बेशर्म बने रहे कि, संघर्ष में शहीद हुए लगभग 700 किसानों पर उनके मुंह से एक शब्द नही निकला। इसी तरह संघर्षरत किसानों की अन्य मांगों एम. एस. पी का कानून, बिजली विधेयक 2021 वापस लेने, किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लेने इत्यादि पर भी मोदी ने चुप्पी साध ली। मुँह की खाने के बाद भी धूर्त मोदी ‘किसानों का मसीहा’ बनने की कोशिश करना नही भूले।
किसानों ने मोदी की घोषणा का स्वागत करते हुए संसद से कानूनों के रद्द होने तक संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया है। किसान बड़बोले मोदी की बातों पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। साथ ही किसान अपनी अन्य मांगों पर भी सकारात्मक हल चाहते हैं।
मोदी सरकार को उम्मीद थी कि लगातार कुत्सा प्रचार, फासीवादी हमलों- षड्यंत्रों व लंबे आंदोलन से थक कर किसान घर चले जायेंगे। किसान आंदोलन के लगातार फैलने व इनके जहरीले सांप्रदायिक प्रचार की धार को कुंद कर देने से इनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। अब यह कानून वापसी के जरिये किसान आंदोलन को खत्म कर, आगामी चुनावों में जोर-शोर से सांप्रदायिक प्रचार के जरिये जीत हासिल कर, मजदूरों- किसानों पर नये सिरे से हमलों की फिराक में हैं।
किसानों के संघर्ष ने समाज के अन्य वर्गों- तबकों के अंदर भी यह बात बैठा दी है कि फासीवादी मोदी सरकार को हराया जा सकता है। कि जनता के एकजुट संघर्षों के आगे बड़े से बड़े तानाशाह भी घुटने टेक देते हैं। किसान आंदोलन से प्रेरणा लेकर मजदूर विरोधी नयी श्रम संहिताओं के खिलाफ मजदूरों के, शिक्षा के निजीकरण-भगवाकरण को बढ़ावा देने वाली छात्र विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के खिलाफ छात्रों के व अन्य शोषित- उत्पीड़ित तबकों के आंदोलनों की समाज को सख्त आवश्यकता है।
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