शनिवार, 25 जनवरी 2020

बढ़ते कूड़े के ढेर और स्वच्छता का अवार्ड

मोदी महज एक नाम नहीं। यह आज एक ब्रांड बन चुका है। जैसी किसी ब्रांड की लांचिंग, प्रमोशन इत्यादी होती है, उसी प्रकार मोदी की विदेश यात्राओं व सभाओं में लौंचिंग, प्रमोशन होता है। हर छोटे-बड़े कार्यक्रम, घटना को ब्रांड की पापुलेरटी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

ऐसा ही एक कार्यक्रम था मोदी को ‘ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड’ मिलना। हिन्दी में एक कहावत है ‘‘जैसा ऊंट लंबा, वैसा गधा खवास’’। यह कहावत इस अवार्ड पर बिलकुल सटीक बैठती है। जैसा यह अवार्ड है वैसा उसे लेने वाला। न तो अवार्ड का कोई सामाजिक दायित्वों की परख से लेना-देना है और न लेने वाले का।


यह अवार्ड बिल गेट्स के मिडिंला गेट्स फाउंडेशन द्वारा दिया जाता है। इस अवार्ड को भूख, गरीबी, शिक्षा गुणवत्ता, पर्यावरण आदि 17 मामलों में से किसी में विशेष योगदान के लिए दिया जाता है। यह अवार्ड 2017 से दिये जाने शुरू किये गये और 2019 का ‘ग्लोबल गोलकीपर’ का अवार्ड नरेन्द्र मोदी को दिया गया, उनके भारत में ‘स्वच्छता’ के लिए किए गये कामों के लिए। मोदी को यह अवार्ड न दिये जाने की बात कहते हुए लगभग 1 लाख लोगों द्वारा बिल गेट्स को पत्र लिखा गया। अवार्ड देने का विरोध करने वालों ने तबरेज की हत्या, भारत में बढ़ रही मॉब लिंचिंग, कश्मीर में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाने जैसी गंभीर बातें कही। किंतु बिल गेट्स ने इन सब बातों को दरकिनार करते हुए उन्हें अवार्ड देने की बात कही। यह चीजें बता देती हैं कि बिल गेट्स के अवार्ड के मापदंड में यह सारी बातें फिजूल की हैं। हालांकि भूख, गरीबी, पर्यावरण, शिक्षा की गुणवत्ता आदि जो मापदंड भी रखे गये वे भी महज एक मुखौटे की तरह ही हैं। साम्राज्यवादी देश, कंपनियां ही इन समस्याओं के लिए मूलतः जिम्मेदार हैं। और इसके हिस्से के तौर पर दुनिया सबसे अमीरतम होने के नाते बिल गेट्स व उनका फाउंडेशन इसके लिए जिम्मेदार है। पहले ये दुनिया को लूटते हैं, जनता को भूखा, गरीब रखते हैं, तमाम तरह का प्रदूषण करते हैं और फिर कुछ पैसे खर्च कर अपने को दयावान या इन समस्याओं के प्रति संजीदा दिखाने की कोशिश करते हैं। यानी कि पहले बम गिराओ फिर मानवता की दुहाई देकर वहां रोटियां बांटो।

अवार्ड देने वालों की बात करने के बाद अब अवार्ड लेने वाले की बात करते हैं। अवार्ड लेते वक्त मोदी ने अपने भाषण में कहा- ‘5 साल में 11 करोड़ शौचालय बने। भारत 100 प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त हो गया है’ आदि-आदि। भाषण शैली के धनी मोदी के भाषण के विपरीत भारत में स्वच्छता की हकीकत क्या है? मोदी के अवार्ड लेने के कुछ ही दिन बाद मध्य प्रदेश में दो बच्चों को इसलिए मार डाला गया क्योंकि वह खुले में शौच कर रहे थे। इससे पूर्व भी देश में कई जगह संघी लंपटों द्वारा खुले में शौच करने वालों को बुरी तरह पीटा गया। जिलाधिकारियों ने गश्त लगाकर खुले में शौच करने वाले गरीबों पर जुर्माना थोप दिया। मार-पिटाई, धक्कड़शाही व झूठे आंकड़े पेश कर अंततः भारत को खुले में शौच से मुक्त देश घोषित कर दिया गया। अब आलम यह है कि जो इस झूठ को झूठ कह रहा है, संघी लंपट उस पर हमलावर हो जा रहे हैं।

मोदी के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का खूब प्रचार किया गया। इसके सबसे बड़े कलाकार मोदी ही रहे। अभी हाल में तमिलनाडु के तट में उनका कूड़ा उठाते हुए वीडियो इन्होंने खुद ही ट्वीटर पर डाला और फिर वह वायरल हुआ। अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने की यह बेहद भौंडी कसरत के सिवाय कुछ नहीं। इससे पूर्व भी मोदी इस ढंग के कई ‘रियलटी शो’ कर चुके हैं। उनकी देखा-देखी तमाम सांसद, विधायक ऐसी ही कई फूहड़, उबाऊ व हास्यास्पद नाटक करते रहते हैं। नेताओं के बीच स्वच्छता की यह होड़ देखकर यह ही कहा जा सकता है कि- ‘‘एक तवे की रोटी, क्या पतली क्या मोटी’’ ।

नेताओं की इन सब कलाबाजियों के विपरीत देश में स्वच्छता की हकीकत क्या है? गरीब बस्तियों में गंदगी से बजबजाती नालियां, शहरों के बाहर कूड़े के बदबूदार पहाड़, पीने के पानी में मिला होता सीवर का पानी, गंदे नाले में तब्दील होती नदियां किसी से भी छुपी नहीं हैं। गंगा सफाई की ड्रीम योजना को  धार्मिक भावनाओं से जोड़ने के बावजूद आज हकीकत क्या है? क्या गंगा साफ हो चुकी है? गंगा सफाई के लिए आवंटित पैसे तक को सरकार खर्च नहीं कर पाई। जो पैसा निकाला गया वह तमाम तरह के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। 

‘स्वच्छ भारत मिशन’ की हकीकत को देखने के लिए एक नजर सफाई की रीढ़-सफाई कर्मियों- को देख लेना काफी है। चुनाव प्रचार के लिए मोदी द्वारा सफाईकर्मियों के पैर जरूर धोये गये किंतु उनकी जान की सुरक्षा, दाल-रोटी की कोई व्यवस्था नहीं की। ‘तकनीकि युग’ की बातें होती हैं किंतु सफाईकर्मी आज भी बहुलांशतः सफाई का काम मैनुवली कर रहे हैं। सीवर की लाइनों में उतरते हैं और उसे साफ करते हैं। जिससे हर साल कई सफाईकर्मी मारे जाते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में हर साल 100 से अधिक सफाईकर्मी इन हालातों में मारे जाते हैं। 

सरकार सफाईकर्मियों को ठेके, संविदा में रखकर उनका भारी शोषण कर रही है। विभिन्न प्रदेशों में उन्हें ‘‘मित्र’’ नाम देकर उनका और अधिक शोषण किया जा रहा है। बेहद कम वेतन में उनसे जानलेवा काम लिया जा रहा है। 

यह सब हालत देखकर ‘ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड’ कितना फर्जी, कितना शर्मनाक है। किंतु आज के बेशर्म शासकों को इतनी भी शर्म कहां? इनका सारा ध्यान छवि चमकाने पर है। देश के चमकने की बातें तो कोरे-फिजूल के भाषणों में हैं।         (वर्ष-11 अंक-1 अक्टूबर-दिसम्बर, 2019)

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