अफवाएं फैलाकर ली जा रही जानें
कोई अफवाह उड़ती है, भीड़ उन्मादी होती है और किसी को भी पीट-पीटकर मार डालती है। बूढ़े, स्त्री, नौजवान इन हत्याओं के शिकार हो रहे हैं। इस तरह की मॉब लिचिंग (भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएं) बीते वर्षों में काफी देखी गयी हैं। कभी अफवाह गौ हत्या के नाम पर उड़ाकर मुसलमान-दलितों को निशाना बनाती है तो कभी लव जिहाद या बच्चा चोरी के नाम पर किसी को भी कत्ल कर दिया जा रहा है। यदि सिर्फ गौ हत्या की अफवाहों के आकड़ों को ही लें तो स्थिति काफी भयानक है। 2010 से 2018 अप्रैल तक के समय के दौरान कुल 80 ऐसी घटनाएं घटी जब भीड़ द्वारा किसी को पीटा गया। जिसमें 29 लोग मारे गये 152 लोग गंभीर तौर पर घायल हुए और 80 लोग घायल हुए। यानी इन कुल 80 घटनाओं में कुल 261 लोग या तो मारे गये या घायल हुए। इन तथ्यों में यदि लव जिहाद और बच्चा चोरी की अफवाहों के कारण मारे गये या घायलों की संख्या भी जोड़ दी जाये तो स्थिति बेहद भयानक हो जाती है।
2015 में गौ मांस की अफवाह फैलाकर हुई अखलाख की मॉब लिचिंग तक पहुंच चुकी है। फर्जी वीडियो, फर्जी खबरों को फैलाने का तंत्र बेहद मजबूत हो चुका है। कैसे भीड को उन्मादी बनाना है इस मामले में फासीवादी गिरोह बेहद पारंगत हो चुके हैं।
महाराष्ट्र के धुले जिले में बच्चा चोरी गिरोह के शक में 5 लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया। असम में एक मानसिक रूप से कमजोर महिला को इसी शक में खम्बे से बांधकर पीट-पीट कर मार डाला गया। गुजरात में भी बच्चा चोर गिरोह की फैली अफवाह से कई शहरों में लोगों को पीटा गया। अहमदाबाद में तो एक 40 वर्षीय महिला को पीट-पीट कर मार डाला गया। ऐसी घटनाएं मध्यप्रदेश, त्रिपुरा, प.बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों में घटीं जिसमें कई लोग मारे गये।
गौ हत्या की अफवाह फैलाकर भी मॉब लिंचिग बदस्तूर जारी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के हापुड़ में भीड़ द्वारा पुलिस के सामने ही दो युवकों की पिटाई कर दी जिसमें एक युवक वहीं मर गया तो दूसरा गंभीर रूप से घायल हुआ। पुलिस द्वारा अमानवीय ढंग से घायल को ले जाने की वीडियो और फोटो भी सामने आयी। झारखंड में भी गौ मांस शादी में पकाये जाने की अफवाह से उन्मादी भीड़ द्वारा दो युवकों की पिटाई कर दी जो गंभीर रूप से घायल हो गये। ऐसी ही घटनाएं मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश आदि स्थानों में भी घटी।
संघी फासीवादियों द्वारा अफवाह फैलाकर भीड़ को उन्मादी कर दलितों-अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। अन्य अफवाहों में भी आम तौर पर क्षेत्रीय, भाषाई या पूर्वाग्रहों को ही हवा दी जाती है। इस तरह की अफवाहों को फैलाने का पूरा तंत्र विकसित किया जा चुका है। फर्जी वीडियो व खबरों के जरिये लगातार माहौल बनाकर मॉब लिचिंग के लिए उन्माद पैदा किया जा रहा है। भीड़ द्वारा उन्मादी होकर की गयी हत्या भीड़ होने की वजह से कानूनों से बच जाती है और इसकी आड़ में अफवाएं उड़ाने वाले भी बच निकलते हैं। सरकार और प्रशासन भी उन्माद पैदा करने वाले इन लम्पटों के साथ खड़ी रहती है या इनके आगे बौनी साबित हो रही होती है।
हत्या के छोटे-छोटे गिरोह हों या भीड़ को उन्मादी कर घटनाओं को अंजाम देना हो यह दो ही तरीके फासीवाद के चिर- परिचित हैं। भारतीय फासीवादी भी इन तरीकों को अंजाम देते देते काफी पारंगत हो गये हैं। इसलिए यह और भी खतरनाक हो जाते हैं।
देश के मेहनतकशों को संघी फासीवादियों की इन अफवाहों में फंसकर अपने ही वर्ग के लोगों का लहू बहाने के स्थान पर सचेत होने की आवश्यकता है। अपनी वर्गीय एकता को पहचानते हुए अपने शत्रुओं के खिलाफ एक होने की आवश्यकता है। मॉब लिंचर नहीं बल्कि एक क्रांतिकारी समूह बनने की आवश्यकता है।
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