मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

सरकारी छात्रावासों में जगह नहीं, निजी छात्रावासों में लूट का राज

रिर्पोट

        इस साल दिल्ली विश्व विद्यालय में प्रवेश के लिए कट आॅफ हमेशा की तरह पिछले समयों से ऊंची रही। लगभग 56 हजार सीटें अलग-अलग विषयों के लिए आरक्षित हैं। जो विद्यार्थी विश्व विद्यालय के रेगुुलर कोर्सों में प्रवेश से बाहर कर दिये जाते हैं, उनके लिए एक मात्र रास्ता एस.ओ.एल. (स्कूल आॅफ ओपन लर्निंग) ही बचता है। जहां  बाहर कर दिए गये विद्यार्थी प्रवेश पा सकें। 

        बाहर से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए आने वाले विद्यार्थी यह सोचते हैं कि रेगुलर कोर्सों में प्रवेश पाने के बाद उनकी सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। लेकिन काॅलेज में प्रवेश पाने के बाद यह समझ में आता है कि यहां, दिल्ली में रहने की समस्याओं में आवास की समस्या सबसे बड़ी है। लगभग 80,000 अंडर ग्रेजुएट विद्यार्थियों के लिए मात्र 4000 कमरे ही हाॅस्टलों में हैं। बाकी विद्यार्थियों को प्राइवेट हाॅस्टलों की शरण लेनी पड़ती है। जहां छात्रों को केवल एक बैड के लिए 7000 से 18,000 रुपये हास्टल के मालिक को देने होते हैं। जिसमें बिजली का बिल अलग से देना होता है। इन हाॅस्टलों में कमरे एकदम दड़बेनुमा होते हैं। छोटे-छोटे कमरे, जिनमें धूप व हवा तक नहीं आ पाती। 
        इसके अलावा यदि हाॅस्टल के मालिक से झगड़ा हो जाए तो वे कभी भी कमरा खाली करने के लिए कह देते हैं। जिसके कारण छात्रों को हाॅस्टल मालिकों की दबंगई को भी झेलना पड़ता है। उनके सिर पर कमरा खाली करने व नया कमरा ढूंढने की तलवार लटकी रहती है। मकान मालिकों द्वारा बिजली के बिलों में हेरा-फेरी, उनको बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना सामान्य प्रचलन में है। इसका एक ताजा उदाहरण नाॅर्थ कैम्पस के हडसन लेन का हाॅस्टल (पी.जी.) है। जहां हाॅस्टल मालिकों द्वारा लड़कियों को एक महीने का 4000 से 4500 रुपये तक का बिजली का बिल थमा दिया गया। जबकि वे सभी बमुश्किल एक बल्ब, पंखा चलाती थीं तथा एक साझे का फ्रिज। जिसके बाद लड़कियों को शक हुआ और उन्होंने सारे स्विच बंद कर दिये तब उन्होंने देखा कि मीटर अब भी तेजी से भागे जा रहा था। जिसके बाद लड़कियों ने दो महीने का बिल देने से इंकार कर दिया। 
        असल बात यह है कि विश्व विद्यालय  प्रशासन की कार्यसूची (एजेण्डे) में सभी छात्रों को आवास की सुविधा उपलब्ध कराना, कभी रहा ही नहीं। विश्व विद्यालय प्रशासन द्वारा हाॅस्टल न बनाने का कारण विश्व विद्यालय के पास जमीन न होना बताया जाता रहा है, जबकि एक आर.टी.आई. के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार विश्व विद्यालय के पास केवल हाॅस्टल (पी.जी.) बनाने के लिए आठ सौ एकड़ जमीन उपलब्ध है। 
        प्रश्न यह उठता है कि 800 एकड़ जमीन हाॅस्टल के लिए उपलब्ध होने के बाद भी हाॅस्टल क्यूं नहीं बनाये जा रहे हैं? दिल्ली विश्व विद्यालय के अलग-अलग काॅलेजों में फीस लगातार बढ़ाई जा रही है। नेट क्वालिफाई न करने वाले छात्रों की स्काॅलरशिप (वजीफा) में कटौती, शिक्षा बजट कम करना, जैसे कदम यह दिखाते हैं कि केन्द्रीय विश्व विद्यालयों को निजीकरण के रास्ते पर धकेला जा रहा है।
        यह दिल्ली विश्व विद्यालय का अभिशाप है कि लम्बे समय से छात्र संघ पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) तथा नेशनल स्टूडेन्ट यूनियन आॅफ इंडिया (एनएसयूआई) का वर्चस्व है। इनकी कार्यसूची में हर बार हाॅस्टल का मुद्दा रहता है परन्तु इसके लिए कभी कोई प्रयास नहीं किए गये। और प्रयास होते भी कैसे जबकि केन्द्रीय स्तर पर इनके मातृ संगठन बीजेपी व कांग्रेस ही छात्र विरोधी नीतियों को बनाते व पारित करते हैं। ऐसे में ये छात्र संगठन छात्रों के हित में कोई ठोस कदम नहीं उठा सकते। इन छात्र संगठनों में इतना दम ही नहीं है कि ये दलाल-पुलिस-हाॅस्टल मालिकों के गठजोड़ के खिलाफ खड़े हो सकें। 
        विश्व विद्यालय स्तर पर लैंगिक भेदभाव भी बड़ी गहराई से अपनी पैठ बनाए हुए है। छात्राओं के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों पर एक नजर डालें तो विश्व विद्यालय प्रशासन के पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। छात्राओं के लिए शाम को हाॅस्टल पहुंचने का निर्धारित समय 6:30 से 8:00 बजे तक है। वहीं छात्रों के लिए ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। छात्राओं के लिए ड्रेस कोड बने हैं। जिसमें छात्राओं के लिए छोटे कपड़े न पहनना शामिल है। समय निर्धारित होने के कारण छात्रायें आवश्यक होने पर पार्ट टाइम काम करके अपनी पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पाती, न ही परिवार को कोई आर्थिक मदद पहुंचा पाती हैं। यह भेदभाव केवल सामाजिक स्तर पर ही नहीं बल्कि आर्थिक स्तर पर भी मौजूद है। जैसे हाल ही में दिल्ली विश्व विद्यालय के हिन्दू कालेज में बहुत वर्षों बाद छात्राओं के लिए एक हाॅस्टल खुला, जिसकी सालाना फीस 1,29,000 रुपये रखी गई, जबकि उसी समय छात्रों से 47,000 रुपये लिए जाते थे। इस भेदभाव का कारण काॅलेज प्रशासन द्वारा छात्राओं की सुरक्षा को बताया गया। छात्राओं द्वारा इसका विरोध करने के कारण इस फैसले को अभी पुनर्विचार के लिए रखा गया है।
        साल दर साल निजी हाॅस्टलोें का किराया हाॅस्टल मालिकों द्वारा मनमाने तरीके से बढ़ाते जाने के कारण दिल्ली विश्व विद्यालय के छात्र-छात्राओं के लिए हाॅस्टल की मांग बहुत ज्यादा प्रासांगिक है।
        बढ़ते किराये के कारण मजदूर परिवारों के बच्चे जो उच्च शिक्षा से पहले से ही दूर हैं, उनके लिए सरकारी विश्व विद्यालय के दरवाजे भी बंद हो जाएंगे। ऐसे में इस भेदभाव की मुखालफत करना छात्र आंदोलन का एक अहम कार्यभार बनता है।   

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