रास्ता क्या? फासीवाद या क्रांति
भारत का छात्र-नौजवान बेहद चुनौतीपूर्ण समय में जी रहा है। केन्द्र में भाजपा-मोदी सरकार गठिन होने के बाद, यह चुनौतियां पहले से कहीं अधिक बढ़ गयी हैं। एकाधिकारी पूंजीपतियों के रोड मैप पर सरपट दौड़ता मोदी का रथ देश के छात्रों-नौजवानों, मजदूर-मेहनतकशों को कुचल कर आगे बढ़ रहा है। एकाधिकारी पूंजीपति की इच्छानुसार मोदी एल.पी.जी. की जन विरोधी नीतियों को धड़ल्ले से लागू कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप देश में बेरोजगारी महंगाई गरीबी तेजी से बढ़ रही है। शिक्षा के निजीकरण की रफ्तार को भी बढ़ाया जा रहा है। पूंजीपतियों के हितों के अनुरूप श्रम सुधारों को लागू किया जा रहा है। मजदूरों द्वारा इतिहास में पूंजीपति वर्ग से छीने इन अधिकारों को खत्म करने में मोदी सरकार आमादा है। छात्र नौजवान जो मेहनतकश परिवारों के बेटे-बेटियां हैं, उन्हें यह श्रम सुधार अप्रत्यक्ष तौर पर गहरे से प्रभावित कर दे रहे हैं। आज का छात्र-नौजवान जो कल का मजदूर-कर्मचारी है, उसे यह श्रम सुधार भविष्य में प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करेंगे।
पूंजीवादी व्यवस्था और मोदी सरकार एक हाथ से तो छात्रों-नौजवानों के जीवन को अंधकार से भर रही है, दूसरे हाथ से उसके दिमाग में साम्प्रदायिकता का जहर भर रही है। सोशल नेटवकिगं साइट्स (फेसबुक, ट्वीटर) जिनमें छात्र-नौजवान बेहद सक्रिय है को साम्प्रदायिकता के प्रचार-प्रसार का साधन बना दिया जा रहा है। घृणित व उग्र साम्प्रदायिक मिथक इनके द्वारा पहुंचाये जा रहे हैं। ढ़ेरों छात्र-नौजवान सही समझदारी व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में साम्प्रदायिक विचारों के आसान शिकार बन भी रहे हैं।
युवा मतदाता और देश की आबादी को बेवकूफ बनाते हुए लोक सभा चुनावों में विकास और साम्प्रदायिकता की अद्भुत खिचड़ी पकायी गयी। कारपोरेट मीडिया ने इसका आक्रामक प्रचार किया। भाजपा ने सपना विकास का दिखाया और चुनाव जीतते ही साम्प्रदायिकता का खंजर घोंप दिया।
संघ परिवार के अनुषांगिक छात्र-नौजवान के संगठन लम्बे समय से छात्रों-युवाओं के बीच सक्रिय हैं, जिनकी सक्रियता चुनाव के वक्त और बाद में खासी बढ़ गयी है। ये संगठन छात्र-युवाओं को साम्प्रदायिकता का चश्मा बांट रहे हैं। शहर-गली कि हर छोटी-बड़ी घटना को साम्प्रदायिक रंग दे रहे हैं। चाहे वह मोटरसाईकिल की मामूली सी टक्कर ही क्यों ना हो।
सत्ताशीन होने के बाद भाजपा मोदी सरकार शिक्षा का तेजी से साम्प्रदायिकरण कर रही है। नैतिक शिक्षा के नाम पर संघी नायकों का महिमामंडन किया जा रहा है। सरकार की तरफ से ऐसी किताबों को स्थापित व पाठ्यक्रम में अनिवार्य किया जा रहा है। जो संघी सोच से लिखी गयी है। महत्वपूर्ण पदों पर संघी सोच के व्यक्तियों को विराजमान किया जा रहा है। वैसे शिक्षा का साम्प्रदायिकरण कोई नयी चीज नहीं है, विद्या भारती के स्कूलों का जाल पूरे भारत में फैला हुआ है। पहले से भी भारतीय पाठ्यक्रमों में साम्प्रदायिक विचारों की भरमार रही है, किन्तु साम्प्रदायिक सोच की सरकार बनने के बाद इन सब में बहुत तेजी आ गयी है।
छात्रों-नौजवानों के जीवन व भविष्य पर यह हमला बेहद गंभीर है। छात्रों-नौजवानों पर कम-ज्यादा साम्प्रदायिक विचारों का प्रभाव आज का सच हो सकता है; हमेशा का नहीं। छात्र-नौजवानों का इतिहास साम्प्रदायिकता से संघर्ष का इतिहास रहा है। भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी, बिस्मिल-अशफाक आदि नौजवान क्रांतिकारी आज भी हमें साम्प्रदायिकता के जहर से आगाह करते हुए संघर्ष करने का आह्वान कर रहे हैं।
हम छात्रों-नौजवानों को समझने की जरूरत है कि साम्प्रदायिकता हमें घृणा देती है। हमारे जीवन के अंधकार को और बढ़ा देती है। सही रास्ता भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी विचारों का रास्ता है। वह हमें तार्किक व वैज्ञानिक समझदारी की शिक्षा देता है।
हम छात्रों-नौजवनों को आगे आकर साम्प्रदायिक व फासीवादी विचारों, साम्प्रदायिक तत्वों की घृणित साजिशों के खिलाफ समाज में खुलकर उतरना चाहिए। पूरे देश में मेहनतकशों की एकता को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। भारत के मजदूरों, किसानों व अन्य मेहनतकशों के बीच क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करना चाहिए। गहराता पूंजीवादी संकट आज जनता के जीवन को बद से बदतर बना रहा है। ऐसे में शासक जनता की आकांक्षाओं संघर्षों को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। और वे फासीवादी समाज की ओर भी बढ़ सकते हैं। हम नौजवानों को; इस देश को फासीवाद की अंधी गली में घकेलने की कोशिशों को रोकना होगा। इंकलाब की तलवार को विचारों की शान पर तेज करना होगा। भारतीय समाज में समाजवाद की स्थापना के लिए कमर कसनी होगी। ××
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