शुक्रवार, 20 मार्च 2015

चौपाल


इस अंक की परचम पढ़ी। सभी साथियों का जो वर्णन समाचारों के द्वारा सचित्र किया गया वह एक नई चीज दिखी। जो सकारात्मक प्रभाव निश्चित ही डाल रही है। साथी चन्दन का लेख ‘रोजगार पर पड़ती वैश्विक मंदी की मार’ पढ़ा। उसमें दिये गये इस लेख में वर्तमान विश्व आर्थिक मंदी और बेरोजगारी में उल्लेख बहुत ही बढ़िया था। इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट भी बहुत तथ्य परक लगी व इसके द्वारा बेरोजगारी की दर साल दर साल बदलती हुई जानने में अच्छा सहयोग मिलेगा। साथी श्रीनिवास द्वारा जारी की गयी इलाहाबाद रोजगार दफ्तर में बेरोजगारी की पंक्ति भी बढ़िया वर्णन है। इस अंक में कुछ अन्य पार्टियों की ओर भी ध्यान जाना चाहिए था, जो नहीं देखने को मिला है। उम्मीद है आगे पढ़ने को मिलेगा। साथ ही परचम के पृष्ठ (कवर) पर भगतसिंह की एक तस्वीर होना चाहिए थी, और साथ में कवर की तस्वीर का रंगानुपात ठीक होना चाहिए था। जिसमें ब्राइटनेस (चमक) कम की जानी चाहिए थी। उम्मीद है कि अगले अंक में यह नहीं देखने को मिलेगा।                  गौरव बरेली

परचम’ वर्ष-5 अंक-4 का मुख्य पृष्ठ ठीक था।

नजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों के फलस्वरूप जो परिणाम सामने आ रहे हैं, वह वर्तमान में व्यापक असर लिए हुए हैं। ‘यह अच्छे दिनों की शुरूआत नहीं है’ लेख में 16 वीं लोक सभा में गठित मोदी सरकार का मूल्यांकन ठीक है। पूंजीपति वर्ग व उसे मीडिया के द्वारा जो प्रचार मोदी के बारे में किया जा रहा है, वह भ्रामक है। मोदी साम्प्रदायिकता को परोसने वाला एक शासक वर्गीय व्यक्ति है, यह लेख इस तस्वीर को साफ उजागर करता है। मोदी द्वारा श्रम कानूनों में सुधार मजदूर व मेहनतकश जनता के ऊपर शोषण को बढ़ायेगा।

   ‘‘दक्षिणपंथी राजनीति और देश के मेहनतकश’’ लेख भारतीय पंूजीपति वर्ग द्वारा साम्प्रदायिक छवि वाले मोदी के लोकसभा चुनाव में प्रचार-प्रसार के पीछे उनके अपने हित छिपे हैं। साथ ही साथ जनता को आपस में बांटने के लिए तथा पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने के लिए यह सारा नाटक खेला गया है, इस बात को खोलकर बताता है।

   आवरण कथा में पंूजीवादी उत्पादन प्रणाली और बेरोजगारी लेख में बेरोजगारी के पीछे पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली को कारण बताता है। इस पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में बेरोजगारी बढ़ाने से मुनाफा बढ़ाने की प्रवृत्ति को बहुत स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है।

   ‘रोजगार बनाम सामाजिक भूमिका’ लेख पूंजीवाद में रोजगार की स्थिति और समाजवाद में रोजगार की स्थिति में अंतर को स्पष्ट किया गया है।

   ‘नई आर्थिक नीतियां और बेरोजगारी’ लेख नई आर्थिक नीतियां जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी को बढ़ाने में तेजी ला रहे हैं, इस बात को लेख उजागर करता है।

   ‘समाजवाद ही बेरोजगारी का समाधान’ लेख समाजवादी उत्पादन प्रणाली कैसे बेरोजगारी का अंत करेगी, इस बात को स्पष्ट रूप से बताता है। विज्ञान से सम्बन्धित लेख हर अंक में दिया जाना चाहिए।

                                                                                                                 जयप्रकाश, हल्द्वानी, उत्तराखंड



 मैनें वर्ष 5 अंक 4 की परचम पढ़ी। परचम में अच्छाईयां भी दिखी जैसे कि गोरख पाण्डेय द्वारा लिखित कविता ‘‘हमको फांसी दे दोे’’ काफी अच्छी लगी जो मौजूदा व्यवस्था का चरित्र हमारे सामने लाती है। तथा परचम में राजनैतिक लेख ‘पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली’, ‘समाजवाद ही बेरोजगारी का हल’ और अज्ञात नामक लेख वर्तमान समय की जरूरत को देखते हुए बहुत अच्छे लगे। तथा परचम टीम को आपस में सामंजस्य बनाते हुए विशेषांक पर लिखना चाहिए नहीं तो तमाम लेखों में बातों का रिपिटेशन होता है। जो इस अंक में भी नजर आया तथा इस अंक में बेरोजगारी से जुडे़ मौजूद लेख मिथक-यथार्थ नहीं था, जिससे कि समाज में फैलाये तमाम मिथकों को परास्त किया जाये। तथा आगामी अंकों में मिथक-यथार्थ नामक लेख भी लिखा होना चाहिए तथा परचम का कवर पृष्ठ और ज्यादा रोचक या भद्दापन दूर किया जाना चाहिए था।                                                                                                               सूर्यप्रकाश बीटेक छात्र, बरेली



परचम’ का नया अंक; वर्ष 5 अंक 4 प्राप्त हुआ। ‘परचम’ का एक लेख ‘‘नई आर्थिक नीतियां और बेरोजगारी’’ को बहुत ही स्पष्ट तरीके से लिखा गया। इस लेख में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की उत्तम परिभाषा दी गयी है। मुझे ये देख कर और पढ़ कर बहुत अच्छा लगा कि छोटी कक्षा के छात्र और छात्रायें भी लेख लिखते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि बचपन से ही अपने विचारों को व्यक्त करने का मौका नहीं मिलने के कारण, बड़े होने पर हमें कई जगहों पर हताशा मिलती है। मगर ‘परचम’ के माध्यम से अब हर उम्र के लोग अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। 28 सितंबर को भगत सिंह का जन्मदिन था। इसलिए मैं आशा करती हूं कि अगले ‘परचम’ में उनके जीवन परिचय पर और उनके उद्देश्य की व्याख्या करते हुए एक लेख आये।

                                                                                                                                        शिवांगी, दिल्ली

(प्रिय साथी, इस अंक में तो नहीं परंतु अगले वर्ष के प्रथम अंक में हम आपकी भावना के अनुरूप एक लेख अवश्य प्रकाशित करेंगे।- सम्पादक)



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